मुख्यपृष्ठस्तंभसटायर : मुझे भी दादासाहेब फाल्के एवार्ड दिला दो

सटायर : मुझे भी दादासाहेब फाल्के एवार्ड दिला दो

— डाॅ रवीन्द्र कुमार

आजकल किसी न किसी एवार्ड की घोषणा होती रहती है कभी पद्मश्री, कभी भारत रत्न, कभी संगीत के, कभी नाटक के, कहीं फिल्मों के, कहीं टी.वी. के, कहीं खिलाड़ियों को मिल रहे हैं कहीं एक्टरों को। इस बरस अगर मुझे दादासाहेब फाल्के न मिला तो मेरी बात हो रखी है। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता में मोमबत्ती बेचने वाले और ‘लेडिस’ लोग तैयार बैठे हैं कब वे केंडल मार्च निकालें और टी.वी. पर ‘लाइव’ कवरेज में दिखें।

मैं सोच रहा हूँ अभी तो माला सिन्हा, वैजयंतीमाला, चेतन आनंद, विजय आनंद, महेश भट्ट, कामिनी कौशल, धर्मेन्द्र, शर्मीला टेगोर, सायरा बानो, मुमताज़, रेखा, गुलज़ार, विश्वजीत एक से बढ़ कर एक निर्देशक, गीतकार, संगीतकार वेटिंग लिस्ट में चल रहे हैं। आर.ए.सी. भी नहीं हुआ है। आर.ए.सी. बोले तो ‘रनिंग आफ्टर कमेटी’। कमेटी के भाई लोग पहले अपने-अपने पति-पत्नी के लिए फाल्के एवार्ड चाहते हैं। सच ही तो है ! नहीं तो ‘चैरिटी बिगिन्स एट होम’ कहावत झूठी न पड़ जाएगी। वो तो अच्छा है हाई-कमांड से नाम आ जाता है, इसके बाद उनकी कोई सिरदर्दी नहीं रह जाती।

अपने लिए सफेद झूठ बोलना शुरू-शुरू में थोड़ा मुश्किल मालूम देता है। ज्यादा प्रैक्टिस नहीं, फिर भी कोशिश करता हूं। भूल चूक लेनी देनी।
मैं भारत का एक अदना सा नागरिक हूं। बड़ा ही शांति प्रिय जीव हूं। हमेशा ट्रैफिक पुलिस को भी कमिश्नर पुलिस समझता हूं और वैसी ही इज़्ज़त देता हूं। जब जितने पैसे ट्रैफिक सिगनल पर, रोड ब्लॉक पर या फिर फ्लाई ओवर पर मांगे हैं मैंने बगैर चूं-चां किये दे दिए। इनकम हो न हो ये बैरी ऑफिस वाले सीधे-सीधे टैक्स काट लेते हैं। सच पूछो तो जितना खर्चा पानी दादासाहेब फाल्के एवार्ड बनवाने में आएगा उससे कई गुना अधिक टैक्स मेरे खाते में जमा हो गया होगा अब तक।

मैं इस मंहगाई के दौर में बच्चों को पढ़ा रहा हूं और जहां ज्यादा पढ़ गये हैं उन्हें वापिस ‘लाइन’ पर ला रहा हूं। अब भला आप ही बताओ! है कोई मुझ से बड़ा एक्टर, डाइरेक्टर जो इस फाल्के एवार्ड का मुझ से अधिक पात्र हो? अब अगर मैं चूक जाऊंगा तो इसी बात से चूक सकता हूं कि मेरी बॉडी, मेरे मसल्स, मेरे सिक्स पैक नहीं हैं। अब घर-गृहस्थी चलाऊँ या जिम में साइकिल। मेरी जानकारी में कोई एम.पी., एम.एल.ए भी नहीं है जो मेरे हक़ में सिफारिश के दो हरफ मुफ्त में लिख दे। देश भक्त तो हूँ पर किसी फिल्म में रोल नहीं मिला। मैं ‘रियल लाइफ’ का देशभक्त हूँ। न मैं आपके लिए वोट बटोर सकता हूं। मैं तो हद से हद अपना वोट आपको दे सकता हूं।

अब आप ही सोचो इतनी विकट परिस्थिति में भी मैं ज़िंदा हूं और ज़िंदा ही नहीं खुशहाल होने की कित्ती अच्छी एक्टिंग कर रहा हूं. मेरे हँसी कितनी नैचुरल है। मेरा रोना उससे भी अधिक रियल है। बिलकुल ऑफ-वेव फिल्म के पात्र की तरह। मेरे बाल-बच्चे भी सूखाग्रस्त इलाके पर बनी डॉक्युमेंट्री में दिखाये बच्चों से मेल खाते हैं। भला इससे बढ़ कर दादासाहेब फाल्के के लिये आपको और क्या क्वालीफिकेशन दरकार है ?. अब एक मैडल के लिये छोरे की जान लोगे क्या ? मैंने भी ठान ली है अब के बरस आपने दादासाहेब फाल्के नहीं दिया तो मैंने हलफनामा दे कर अपने नाम के आगे दादासाहेब फाल्के लिखवा लेना है।

लौटती डाक से खबर देना जी, नया शॉल खरीदना है फिर उसे बुद्धिजीवियों की तरह लपेटने की प्रेक्टिस भी करनी है। इन सबसे बढ़ कर शून्य में देर तलक ताकते रहने की आदत डालनी है। अभी तो थेंक्स गिविंग स्पीच भी लिखनी है, कितना काम पड़ा है ! सी यू एट विज्ञान-भवन।

अन्य समाचार