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रोखठोक : गायों के लिए निधि; बच्चे बुखार से तड़प रहे हैं! … स्वास्थ्य विभाग का बुलंद भ्रष्टाचार!

संजय राऊत -कार्यकारी संपादक

महाराष्ट्र में गायों को राजमान्यता मिल गई। उन्हें राज्यमाता का दर्जा दिया गया। उसी महाराष्ट्र में दिमागी बुखार से तड़प रहे बच्चों को ‘वैक्सीन’ नहीं मिलती। स्वास्थ्य विभाग भ्रष्टाचार से ग्रस्त है। स्वास्थ्य विभाग को भ्रष्टाचार ने निगल लिया है। ऐसे में बच्चों की जान कौन बचाएगा?

दिनांक २ अक्टूबर को सुबह ११ बजे मलबार हिल के ‘सह्याद्रि’ गेस्ट हाउस में जो हुआ, वह दृश्य महाराष्ट्र को कलंकित करने जैसा है। बुखार (मेंदू ज्वर) से तप रहे अपने बच्चों को लेकर अनगिनत ‘माताएं’ सह्याद्रि अतिथिगृह के बाहर पहुंचीं। उन बच्चों को सह्याद्रि अतिथिगृह के बाहर सड़क पर छोड़कर ‘माताएं’ अंदर जाने की कोशिश करने लगीं। ‘सह्याद्रि’ में गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री शिंदे के बीच राजनीतिक बैठक चल रही थी और उन माताओं को मुख्यमंत्री से मुलाकात करनी थी। क्योंकि बुखार से तप रहे बच्चों को ‘वैक्सीन’ नहीं मिल रही। सरकार बच्चों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। बच्चे तड़प रहे हैं। उनकी जान बचाएं, यह बताने के लिए ‘माताएं’ सह्याद्रि पहुंची थीं, लेकिन उन्हें सीढ़ियों पर ही रोक दिया गया। ‘‘बड़ी-बड़ी सड़कें बना रहे हैं, मूर्तियां खड़ी कर रहे हैं, मेट्रो और बुलेट ट्रेन लाई जा रही हैं। विकास की बातें कर हैं, लेकिन हमारे बच्चों के बुखार का इलाज तक नहीं हो रहा है। उन्हें टीके नहीं मिल रहे हैं,’’ ऐसी वेदना ‘सह्याद्रि’ के बाहर एक मां ने व्यक्त की। वह वेदना विचलित कर देनेवाली है। चुनावी कार्य में व्यस्त देश के गृहमंत्री ने सोचा भी नहीं कि इस वेदना को गंभीरता से लेना चाहिए। बच्चों की अपेक्षा उन्हें गाय अधिक महत्वपूर्ण लगी। अब सरकार ने गायों को राज्यमाता का दर्जा दे दिया। गाय पालने के लिए निधि मंजूर की। लाडली बहनों को प्रति माह पंद्रह सौ रुपए की मदद शुरू की। स्वास्थ्य विभाग से लेकर शिक्षा तक का सारा पैसा लाडली बहनों और गायों के संरक्षण में लगा दिया। इसके चलते महाराष्ट्र की स्वास्थ्य व्यवस्था शमशान बन गई और बुखार से तपते बच्चों को लिए माताएं-बहनें ‘सह्याद्रि’ के बाहर खड़ी हो गईं।

भ्रष्टाचार कहीं भी
सरकार ने ‘सह्याद्रि’ के बाहर बुखार से तपते बच्चों पर कोई ध्यान नहीं दिया, क्योंकि सरकार भ्रष्टाचार और राजनीति में लिप्त है। ‘सह्याद्रि’ के बाहर बुखार से पीड़ित बच्चों की माताओं का आंदोलन महाराष्ट्र की मानवता का अध:पतन और दरिद्रता का दृश्य है। बच्चों को दवा और टीका नहीं मिल रहा, जिससे कुछ बच्चों की मौत हो गई और ये लोग गायों को बचाने के लिए पैसे खर्च कर रहे हैं। महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री तानाजी सावंत को तत्काल बर्खास्त किया जाए और सदोष मनुष्यवध का मामला चलाया जाए, ऐसा कारभार राज्य के स्वास्थ्य विभाग में चल रहा है। स्वास्थ्य विभाग में डॉक्टरों, नर्सों की नियुक्ति और तबादलों में भ्रष्टाचार है। सिविल सर्जन, जिला स्वास्थ्य अधिकारियों को नियुक्ति के लिए पैसे देने पड़ते हैं और वो पैसे वसूल करने के लिए छोटे बच्चों को तपते बुखार से तड़प कर मरना पड़ता है। स्वास्थ्य विभाग में मची ‘लूट’ का एक नया मामला अब सामने आया है।
विदर्भ के तानाजी युवा बहुउद्देशीय संस्था के लोग मुझसे मिले। इन लोगों ने कहा, ‘‘सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री तानाजी सावंत ने ३,१९० करोड़ रुपए का भ्रष्टाचार किया है। स्वास्थ्य विभाग में हुए इस टेंडर महाघोटाले का मामला गंभीर है, लेकिन मुख्यमंत्री और गृहमंत्री दोनों तानाजी सावंत को बचा रहे हैं।’’ यह मामला क्या है?
स्वास्थ्य विभाग में दवाओं और अन्य सामग्रियों की खरीद के लिए ३,१९० करोड़ रुपए का टेंडर स्वास्थ्य मंत्री सावंत ने खुद के भागीदार BSA Corportaion Ltd. k कंपनी को दे दिया गया। इस कंपनी के पास स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने का कोई अनुभव नहीं है। यह कंपनी नियम व शर्तों पर भी खरी नहीं उतरती। फिर भी चार कंपनियों और संस्थानों को किनारे करके स्वास्थ्य मंत्री ने खुद की साझेदार कंपनी को काम दे दिया। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग की सारी खरीदारी अब स्वास्थ्य मंत्री की ही कंपनी करेगी। मंत्री की मनचाही BSA Corportaion Ltd. कंपनी के पास कोई भी अनुभव नहीं है। फिर भी स्वास्थ्य विभाग के अस्पतालों की मशीनों और सिस्टम के रखरखाव का काम इस अनुभवहीन कंपनी को दे दिया। यह भ्रष्टाचार तो है ही, लेकिन मरीजों की जान से खेलने का क्रूर रूप भी है। अब अगली चौंकाने वाली जानकारी यह है कि जो टेंडर अब ३,१९० करोड़ रुपए का है, वह दो साल पहले सिर्फ ७० करोड़ रुपए का था। इसे कई हजार गुना बढ़ा दिया गया। असल में स्वास्थ्य विभाग के पास धन नहीं बचा है। फिर भी ३,१९० करोड़ का टेंडर दहशत में मंजूर कर दिया जाता है। यह गंभीर है कि स्वास्थ्य विभाग के मंत्री अपने फायदे के लिए ऐसा काम कराते हैं, जिसकी प्रशासनिक मंजूरी नहीं होती। इस कंपनी के मालिक बाबासाहेब कदम हैं और वह तानाजी सावंत के पार्टनर हैं। कदम के साथ उनका कोई व्यावसायिक संबंध नहीं है, यह साबित करने की जिम्मेदारी स्वास्थ्य मंत्री की है। महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में एंबुलेंस के अभाव में कई लोगों की मौत हो गई। महाराष्ट्र जैसे उन्नत राज्य में एंबुलेंस नहीं हैं। लेकिन एंबुलेंस के नाम पर पिछले तीन वर्षों में करोड़ों रुपए स्वास्थ्य विभाग ने लूट लिए। मनचाहे ठेकेदारों की जेब भरने के लिए चार गुना अधिक दरवृद्धि करके १२ हजार करोड़ रुपए का एंबुलेंस टेंडर ‘सुमित पैâसिलिटीज’ और स्पेन की एलएसजी जैसी कंपनियों को दे दिया। बी.डी.जी. कंपनी का भी इसमें समावेश है। लेकिन इन कंपनियों ने अब तक एक भी एंबुलेंस की आपूर्ति नहीं की है। अब तक ४० करोड़ रुपए इन ठेकेदारों को मिल चुके हैं, लेकिन एंबुलेंस नहीं आर्इं। ये सभी कंपनियां असल में किसकी हैं और ये पैसा आखिर किसकी जेब में जा रहा है? स्वास्थ्य विभाग में व्याप्त इस ठेकेदारी के कारण कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। कोरोना काल में खिचड़ी, कोविड सेंटर की जांच करने वालों को स्वास्थ्य विभाग में हुए इस घोटाले की जांच करनी चाहिए, ऐसा नहीं लगता?

अमानवीय प्रकार!
७० करोड़ का टेंडर अचानक ३,१९० करोड़ का हो जाता है। राज्य की तिजोरी में पैसा न रहने पर ऐसा होता है। राज्य के ६७ अस्पतालों में Mechanized Cleaning Service का यह काम और इसमें शामिल भ्रष्टाचार महाराष्ट्र के स्वास्थ्य विभाग का अमानवीय रूप है। एंबुलेंस के नाम पर जो लूटमार शुरू है सो अलग! मुर्दे की खोपड़ी पर लगा मक्खन खाने का काम शुरू है और मुख्यमंत्री लाडली बहनों और गायों की रक्षा करने चले हैं।
आदिवासी बस्तियों के दवाखाने बंद हैं। वहां डॉक्टर्स नहीं हैं। एंबुलेंस नहीं हैं। गर्भवती महिलाओं को चादर के झूले में बैठाकर ले जाना पड़ता है। इसमें कई बार शिशुओं और माताओं की मृत्यु हो जाती है। अस्पतालों की व्यवस्था भयानक है। सफाई नहीं है। वहां खाना भी घटिया स्तर का है। कई अस्पतालों में पोस्टमॉर्टम की व्यवस्था नहीं है। बुखार होने पर छोटे बच्चों का इलाज भी नहीं होता है। माताएं अपने बच्चों को लेकर जब मुख्यमंत्री से मिलने मलबार हिल पहुंचती हैं, तब अमित शाह के साथ राजनीतिक बैठक में व्यस्त मुख्यमंत्री उन माताओं से नहीं मिलते हैं। गायों के लिए तो निधि है, लेकिन बुखार से तप रहे बच्चों के लिए दवा और टीका नहीं है। क्योंकि स्वास्थ्य विभाग का ३,१९० करोड़ रुपए मुख्यमंत्री के लाडले स्वास्थ्य मंत्री की कंपनी में चले गए।
महाराष्ट्र में गरीबों का मजाक उड़ाया जा रहा है।
ऐसा लगता नहीं कि यह फिलहाल रुकेगा।

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