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विकास की दौड़ में फटे मौजे: कपास और जल प्रबंधन का असली चेहरा -भरतकुमार सोलंकी

भारत में कृषि और वस्त्र उद्योग विकास का अहम आधार हैं, लेकिन इसकी जड़ें कपास की खेती और जल संसाधनों पर टिकी हुई हैं। कपास की खेती के लिए भारी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है और जल प्रबंधन की कमी के कारण यह उद्योग कठिनाइयों का सामना कर रहा है। यही असली चेहरा है, जो हमारे विकास की दौड़ में अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है।

हाल ही में प्रोफेसर चेतनसिंह सोलंकी, जिन्हें “सोलरमैन ऑफ़ इंडिया” के नाम से जाना जाता है, ने नई दिल्ली के एक सेमिनार में हिस्सा लिया। वहां किसी ने उनके फटे मोजे की तस्वीर खींचकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दी। हालांकि यह मामला मज़ाक के रूप में सामने आया, लेकिन जब प्रोफेसर सोलंकी ने इसके पीछे का तर्क दिया, तो यह समाज के लिए एक गहरा संदेश बन गया। उन्होंने कहा, “मेरे पास नए मोजे खरीदने के लिए पैसे हैं, लेकिन प्रकृति इसे अफोर्ड नहीं कर सकती।” यह टिप्पणी सिर्फ सादगी का प्रतीक नहीं थी, बल्कि जल और संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग का संदेश थी।

कपास उत्पादन और वस्त्र उद्योग का जल से सीधा संबंध है। कपास की खेती में पानी की अत्यधिक जरूरत होती है और देश के विभिन्न हिस्सों में जल संकट के कारण किसान परेशान हैं। हर साल पर्याप्त बारिश होती है, लेकिन जल संग्रहण के अभाव में यह पानी बहकर व्यर्थ चला जाता है। अगर देश के हर जिले में बांधों का निर्माण किया जाए और जल प्रबंधन की ठोस योजना बनाई जाए, तो न केवल कपास की खेती बढ़ेगी, बल्कि किसानों की स्थिति भी सुधरेगी।

विकास की इस दौड़ में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि संसाधनों का सही उपयोग ही भविष्य की स्थिरता को सुनिश्चित करेगा। कपास और जल का यह अनदेखा पहलू हमें बताता है कि असली विकास तभी संभव है जब हम प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर आगे बढ़ें। प्रोफेसर सोलंकी की सादगी और उनका संदेश हमें जल प्रबंधन और संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग की दिशा में सोचने को मजबूर करता है।

भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है, जहां अधिकांश हिस्सों में गर्म और आर्द्र जलवायु होती है। इस तरह के वातावरण में लोगों के लिए कॉटन यानी सूती वस्त्र पहनना सबसे अधिक उपयुक्त होता है, क्योंकि ये न केवल शरीर को ठंडक देते हैं, बल्कि पसीने को भी आसानी से सोखते हैं। हालांकि, विडंबना यह है कि देश में कपास का उत्पादन होने के बावजूद आम आदमी के लिए कॉटन वस्त्र खरीदना महंगा साबित हो रहा है। जल संकट, खराब जल प्रबंधन और सिंचाई की सुविधाओं की कमी के कारण कपास उत्पादन प्रभावित होता है, जिससे वस्त्र की कीमतें बढ़ जाती हैं। परिणामस्वरूप, साधारण लोग सस्ते सिंथेटिक कपड़ों का विकल्प चुनने पर मजबूर हो जाते हैं, जो स्वास्थ्य और आराम दोनों के लिहाज से कमतर होते हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि जल प्रबंधन के अभाव में न सिर्फ किसानों की आय घट रही है, बल्कि आम जनता भी गुणवत्ता वाले वस्त्रों से वंचित हो रही है।

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