मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनानारी, पुनः आत्मचिंतन

नारी, पुनः आत्मचिंतन

मैं सशक्त होती नारी हूं
दुर्गा काली की अवतारी हूं
एक दबी हुई चिंगारी हूं।
मैं आज की नारी हूं।
गलत छुआ तो जला दूंगी
जला कर राख कर दूंगी
अपना रूप दिखा दूंगी।
अब सबला नारी हूं।
मैंने संस्कार पाएं हैं
मैंने संस्कार निभायें हैं
भर -भर अंजुरी मैंने
अगली पीढ़ी तक पहुंचाएं हैं
मैं संस्कृति संजोती नारी हूं।
मुझ बिन किसने, जन्म पाया
मुझ बिन कोई न पल पाया
मुझ बिन कोई न रह पाया
मै, मां रूप नारी हूं।
मैं विष्णु की कमला हूं
मैं ब्रम्हा की ब्रह्माणी हूं
मैं ही शिव की गौरी हूं
पत्नी रूप धारी हूं।
मैं पाप नाशिनि मां गंगा हूं
मैं ब्रज भूमि की मां जमुना हूं
मैं ही कृष्णा और कावेरी हूं।
मैं निर्मल सलिला रूपी नारी हूं
सुर असुरों की दृष्टि मुझ पर
लिख रहे कवि लेखक मुझ पर
अब मेरे आत्मचिंतन की बारी है।
अपने पर कहने की मेरी भी जिम्मेदारी है।
अब शोषित नहीं रहुंगी मै
अब अपमानित नहीं रहुंगी मै
अब और आत्म श्लाघा नहीं बनूगीं मै।
संकल्प लेती आज की नारी हूं।

बेला विरदी।

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