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नवरात्रि विशेष : देवी का सप्तम स्वरुप कालरात्रि

नवरात्रि का आज सप्तम दिवस है। आज श्रद्धालु माँ के कालरात्रि स्वरूप का पूजन करेंगे।
नवरात्रि के नव दिवस कन्या पूजन का भी विशेष महत्व है। वैसे तो कन्या-पूजन की परम्परा भारत में पूर्व से ही रही है परन्तु नवरात्रि में भक्तजन प्रथम दिन से ही नव दिनों तक विशेष रूप से कन्या का पूजन करते है। कन्याएं माँ दुर्गा के स्वरूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माँ दुर्गा ने राक्षस कालासुर को हराने के लिए एक कन्या के रूप में अवतार लिया था। कन्याओं को घर में लक्ष्मी का रूप माना जाता है। कन्या पूजन से सम्मान, लक्ष्मी, विद्या, बुद्धि और तेज़ की प्रप्ति होती है। कन्या पूजन से विघ्न, भय तथा शत्रुओं का नाश होकर सकारात्मक शक्ति का शीघ्र संचार होने लगता है। कन्याओं को स्वयं देवी का रूप माना गया है। ग्रन्थानुसार जो भी श्रद्धा पूर्वक कन्या पूजन करते है भगवती दुर्गा उन पर सदा प्रसन्न रहती है एवं भगवती दुर्गा का आशिष आजीवन बना रहता है। आज समस्त देवी पंडालों में स्थापित माँ दुर्गा के मूर्ति के पट भी खुल जायेंगे। पंडालों की शोभा देखते ही बन रही है। बाजार सज-धज कर तैयार हो चुके है। चारों ओर चहलकदमी तेज है। फल-मिठाइयों के दुकान भी सामान्य दिनों से अधिक लगे और सजे है। बच्चें मेले घूमने को आतुर है। इस बात की हमें खुशी है कि हमारे पाठक समाचार पत्र में प्रकाशित नवरात्रि विशेष स्तम्भ को पढ़कर इससे लाभान्वित हो रहे है एवं विशेष स्नेह प्रदान कर रहे है। आप नव देवीयों के प्रकाशन के क्रम में आज पढिये देवी कालरात्रि के स्वरूपादि के बारे में।

 

ध्यान मन्त्र:- एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा । वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयन्करि।।

देवी कालरात्रि की कथा–
पौराणिक कथा के अनुसार, रक्तबीज नाम का एक महापराक्रमी दैत्य हुआ। उसने आसुरी शक्ति स्थापित करने के लिए कई दिनों तक घोर तपस्या की। अपने तपस्या से उसने वरदान प्राप्त किया कि अगर कोई उसको मारना चाहे तो उसके जितने रक्त धरती पर गिरे उतने और रक्तबीज उत्पन्न हो जाये। यह वरदान पाते ही उसने स्वयं को अमर समझना शुरू कर दिया। उसने समस्त जीव-जन्तुओं को परेशान करना शुरू किया। जो उसकी बातें नहीं सुनता, धर्म पथ पर चलता वह उसकी हत्या करवा देता। धीरे-धीरे उसका अत्याचार बढ़ने लगा। यज्ञ एवं धार्मिक अनुष्ठानों में बाधा डालने लगा। समस्त देवगण भी उसके इस अत्याचार से त्रस्त हो गए। जो उससे युद्ध करता उसे मारना चाहता असफल हो जाता। उसके रक्त की बूंद जैसे ही धरती पर गिरती तो उसके जैसा एक और दानव उत्पन्न हो जाता था। रक्तबीज से परेशान होकर सभी देवगण इस समस्या के निवारण का मार्ग जानने हेतु भगवान शिव के पास पहुँचे। भगवान शिव ने देवताओं को आश्वासन दिए कि अतिशीघ्र रक्तबीज का नाश होगा। उन्होंने बताया कि माता पार्वती ही इस समस्या का हल निकाल सकती है। सभी देवगण मिलकर देवी की प्रार्थना करने लगे – हे जगदम्बे! सृष्टि की रक्षा कीजिए माँ, रक्षा कीजिये।
देवताओं के त्राहि-त्राहि के इस स्वर को सुन माँ पार्वती ने स्वयं शक्ति व तेज से माँ कालरात्रि का स्वरूप धारण किया। असुरों के साथ देवी ने भयंकर युद्ध किया। माता रक्तबीज के संहार के क्रम में जो भी रक्त उस दानव के शरीर से निकला उसे पीती गयी, धरती पर नहीं गिरने दी जिससे अन्य कोई रक्तबीज उत्पन्न नहीं हुआ। इस प्रकार से माँ कालरात्रि ने रक्तबीज का अन्त कर सृष्टि की रक्षा की। देवी का यह स्वरूप पूर्ण रूप से घने अंधेरी रात्रि की तरह काला एवं विकराल है इनके नाम मात्र से काल भी थर थर काँप उठते है इसी कारण इनका नाम कालरात्रि है।

देवी कालरात्रि की शक्ति–
नवरात्रि के सातवें दिन साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में स्थित रहता है। देवी के चार हाथ है जिसमें इन्होंने एक हाथ में कटार और एक हाथ में लोहे का कांटा वज्र धारण किया हुआ है। वही दो हाथों से भक्तो को अभय वरदान प्रदान करती है। देवी के केश बिखरे हुए है। देवी की सवारी गर्दभ अर्थात गधा (गदहा) है। देवी के तीन नेत्र है जो ब्रह्मांड के समान गोल है। जहां कालरात्रि दैत्य, दानवों का नाश करती है वही भक्तो के लिए अत्यंत शुभकारी मनवांछित फल प्रदान करती है। भूत-प्रेत,पिशाच निशाचर एवं समस्त नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश इनके अराधना से सदैव के लिए हो जाता है।

देवी कालरात्रि को प्रिय–
देवी को लाल रंग प्रिय है। माँ को लाल फूल गुड़हल, गुलाब अर्पित करना चाहिए। इन्हें रातरानी का पुष्प अर्पित करना शुभ माना जाता है।
कालरात्रि माता को गुड़ अत्यन्त प्रिय है इसलिए अन्य नैवेद्य के साथ विशेष रूप से गुण का भोग लगाना चाहिए।

कालरात्रि स्तोत्र–
!! ध्यान !!

करालवदनां घोरांमुक्तकेशींचतुर्भुताम्। कालरात्रिंकरालिंकादिव्यांविद्युत्मालाविभूषिताम्॥
दिव्य लौहवज्रखड्ग वामाघो‌र्ध्वकराम्बुजाम्। अभयंवरदांचैवदक्षिणोध्र्वाघ:पाणिकाम्॥
महामेघप्रभांश्यामांतथा चैपगर्दभारूढां। घोरदंष्टाकारालास्यांपीनोन्नतपयोधराम्॥
सुख प्रसन्न वदनास्मेरानसरोरूहाम्। एवं संचियन्तयेत्कालरात्रिंसर्वकामसमृद्धिधदाम्॥

!! स्तोत्र !!

हीं कालरात्रि श्रींकराली चक्लींकल्याणी कलावती। कालमाताकलिदर्पध्नीकमदींशकृपन्विता॥
कामबीजजपान्दाकमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लींहीं श्रींमंत्रवर्णेनकालकण्टकघातिनी। कृपामयीकृपाधाराकृपापाराकृपागमा॥

देवी कालरात्रि का कवच —
ॐ क्लींमें हदयंपातुपादौश्रींकालरात्रि।
ललाटेसततंपातुदुष्टग्रहनिवारिणी॥
रसनांपातुकौमारी भैरवी चक्षुणोर्मम
कहौपृष्ठेमहेशानीकर्णोशंकरभामिनी।
वद्यजतानितुस्थानाभियानिचकवचेनहि।
तानिसर्वाणिमें देवी सततंपातुस्तम्भिनी॥

✍️ राजीव नन्दन मिश्र
सरना, भोजपुर (बिहार)
मो. – 7004235870

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