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पुलिस थाने में वीडियोग्राफी करना जासूसी नहीं है!  …मुंबई हाई कोर्ट का निर्णय

सामना संवाददाता / मुंबई
बहुत से ऐसे संवेदनशील स्थल और दफ्तर हैं, जहां फोटो खींची या वीडियोग्राफी नहीं की जा सकती। ऐसा करना निषिध है और यह जासूसी की श्रेणी में आता है। तस्वीर खींचना प्रतिबंधित है, इस आशय का वहां बोर्ड लगा दिख जाता है। मगर क्या पुलिस स्टेशन भी वीडियोग्राफी के लिए प्रतिबंधित क्षेत्र है? यह सवाल कई लोगों के मन में आता होगा। अब मुंबई हाई कोर्ट की संभाजीनगर पीठ ने कहा है कि पुलिस स्टेशन की वीडियोग्राफी करना जासूसी नहीं है।

पुलिस स्टेशन नहीं है प्रतिबंधित क्षेत्र!
अदालत का निर्णय

हाल ही में हाई कोर्ट की संभाजीनगर बेंच ने एक अहम पैâसला सुनाते हुए कहा कि पुलिस स्टेशन प्रतिबंधित क्षेत्र नहीं है। वहां वीडियो शूटिंग जासूसी की श्रेणीr में नहीं आती। यह पैâसला जस्टिस विभा कंकनवाडी और एसजी चपलगांवकर की बेंच ने सुनाया। इस पैâसले के साथ ही कोर्ट ने मुंबई के कांस्टेबल संतोष अथारे के खिलाफ लगाए गए ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट के आरोप को खारिज कर दिया। मामला अहिल्यानगर के पठारडी के पुलिस स्टेशन से जुड़ा है। वहां कांस्टेबल संतोष अथारे और उनके भाई सुभाष के खिलाफ गुप्त जानकारी को उजागर करने का आरोप लगाया गया था। अदालत ने पाया कि पुलिस स्टेशन को ‘प्रतिबंधित स्थान’ की श्रेणी में नहीं रखा गया है और वीडियोग्राफी पर लगाए गए आरोप भ्रामक हैं।
इस फैसले के बावजूद अदालत ने एफआईआर में दर्ज अन्य धाराओं जैसे कि भारतीय दंड संहिता की धारा १२०-बी (आपराधिक साजिश) और धारा ५०६ (आपराधिक धमकी) को खारिज करने से इंकार कर दिया। अदालत ने एफआईआर की मूल बातों की जांच का अधिकार संबंधित अदालत को दिया है। कांस्टेबल अथारे के खिलाफ मामला तब दर्ज हुआ, जब उन्होंने आरोप लगाया था कि अप्रैल २०२२ में तीन लोगों ने उनके घर में घुसपैठ की और उनकी मां के साथ दुर्व्यवहार किया। पुलिस ने सिर्फ एक गैर-संज्ञेय अपराध दर्ज किया, जिससे नाराजगी जताते हुए सुभाष ने जांच अधिकारी से सवाल किए थे। इसके बाद उन्हें धमकियां मिलने लगीं। सुभाष ने इन धमकियों की रिकॉर्डिंग करके पुलिस महानिदेशक को इसकी शिकायत की थी। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए पुलिस ने सुभाष और संतोष के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया था।

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