सामना की खबर पर मुहर
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे ने बड़े-बड़े चुनावी विश्लेषकों को भी अचंभित कर दिया है। हरियाणा में हवा भाजपा के खिलाफ बह रही थी। १० साल की एंटी इनकंबेंसी तो थी ही, साथ ही पिछले कुछ महीनों में कई ऐसे बड़े मुद्दे उभर आए थे, जिनसे भाजपा सरकार की विदाई तय थी। मगर हरियाणा की इस ‘नायाब’ जीत ने इस बात का संकेत तो दे ही दिया कि पर्दे के पीछे कोई बड़ा खेला हो गया है। ‘दोपहर का सामना’ ने गत ७ अक्टूबर को ‘हारती भाजपा करेगी हरियाणा में बड़ा खेला’ शीर्षक से खबर भी प्रकाशित की थी। यह सच सबित हुआ। ऐसे में चुनावी जानकारों का स्पष्ट मानना है कि नतीजे भले ही भाजपा के पक्ष में आए हों, पर हरियाणा का जनमत इस बार कांग्रेस के साथ था।
किसान, पहलवान, युवा सभी भाजपा के खिलाफ
फिर किसने दिया भाजपा को वोट?
हरियाणा नतीजों का सुलगता सवाल
हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे देखकर सभी चुनावी पंडित अचंभित हैं। गत लोकसभा चुनाव में ही स्पष्ट हो गया था कि हरियाणा में इस बार हवा भाजपा के खिलाफ है। लोकसभा की वहां आधी सीटें भाजपा हार गई थी। यह साफ संकेत था कि मोदी पैâक्टर हरियाणा में नहीं चल पाया था। साथ ही राज्य में मनोहर लाल खट्टर की टीआरपी बिल्कुल शून्य हो गई थी इसीलिए उन्हें हटाकर अनजान से नायब सिंह सैनी को सीएम बनाया गया था। ऐसे में विधानसभा में भाजपा का बोरिया-बिस्तर बंधना तय हो चुका था। हैरानी की बात है कि इस बार हरियाणा के किसान व पहलवान पूरी तरह से भाजपा के खिलाफ थे। तीन काले कृषि कानूनों और एमएसपी के मुद्दे ने भाजपा से उनका मोह पूरी तरह से भंग कर दिया था। हरियाणा में करीब ८० फीसदी किसान हैं। ऐसे में यह समझ से परे है कि भाजपा को वोट किसने दिया?
दिल्ली की सीमा पर अभी भी नाराज किसान बैठे हुए हैं। इसके अलावा पहलवानों के मुद्दे ने पूरे हरियाणा को एकजुट कर दिया था। विनेश फोगाट एपिसोड ने भाजपा की लोकप्रियता के ताबूत में आखिरी कील ठोक ही दी थी। इसके पहले अग्निवीर मामले ने हरियाणा के युवा वर्ग को काफी नाराज कर दिया था। हरियाणा से बड़ी संख्या में युवा फौज में भर्ती होते हैं। अग्निवीर स्कीम का हरियाणा में व्यापक विरोध हुआ था। ऐसे में इन युवाओं ने भाजपा को तो वोट नहीं ही दिया होगा। फिर भाजपा के खाते में इतने वोट कहां से आए कि उसने २०१४ और २०१९ से भी ज्यादा सीटें हासिल कर ली। पिछले चुनावों में हरियाणा का जाट समुदाय भाजपा के साथ था। पर इस बार जाट समुदाय भी भाजपा से छिटक गया था। खट्टर के ढीले प्रशासन ने क्षेत्र में भाजपा के खिलाफ माहौल बना रखा था। चुनाव के पहले सिर्फ मुख्यमंत्री का चेहरा बदल देने भर से माहौल नहीं बदल जाता। इस बार चुनाव के पहले कई बड़ी एजेंसियों ने चुनावी सर्वे किए और बताया था कि भाजपा के खिलाफ लोगों में जबरदस्त नाराजगी है और वहां सरकार बदलनी तय है। चुनाव के बाद जब एग्जिट पोल के नतीजे आए तो वह भी इस बात पर मुहर लगा रहे थे। कांग्रेस न सिर्फ जीत रही थी बल्कि भारी बहुमत से जीतती बताई गई थी। जबकि भाजपा के खिलाफ माहौल इतना तगड़ा था कि वह पिछली बार से आधी नजर आ रही थी।
आयोग ने किया खेला?
हरियाणा चुनाव में क्या चुनाव आयोग ने खेला किया है? कांगे्रस नेता जयराम रमेश के आरोप तो यही इशारा कर रहे हैं। असल में ईवीएम से मतगणना होने के बावजूद रिजल्ट अपडेट होने और घोषित होने में काफी देरी की गई। ऐसे में किसी गड़बड़ी की आशंका का होना स्वाभाविक है।