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संपादकीय : ये नतीजे क्या कहते हैं?

हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजे भाजपा-कांग्रेस के लिए चौंकानेवाले हैं। हरियाणा में कांग्रेस की हार की वजह फाजिल आत्मविश्वास और स्थानीय नेताओं की नाफरमानी को माना जा रहा है। कोई भी मजबूती से नहीं कह रहा था कि हरियाणा में दोबारा भाजपा की सरकार आएगी। कुल मिलाकर माहौल यह था कि कांग्रेस की जीत एकतरफा होगी; लेकिन जीत की पारी को हार में वैâसे बदला जाए यह कांग्रेस से ही सीखा जा सकता है। हरियाणा में भाजपा विरोधी माहौल था। ऐसा माहौल था कि भाजपा के मंत्रियों और उम्मीदवारों को हरियाणा के गांवों में घुसने नहीं दिया जा रहा था। फिर भी, हरियाणा के नतीजे कांग्रेस के खिलाफ गए, वहीं जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस और नेशनल कॉन्प्रâेंस गठबंधन ने बहुमत हासिल कर लिया और भाजपा का सपना चकनाचूर कर दिया। ढोल बजाया जा रहा था कि कश्मीर की जनता मोदी-शाह को ही वोट देगी। पांच साल पहले अमित शाह ने घोषणा की थी कि मानो अनुच्छेद ३७० हटाकर एक क्रांतिकारी कदम उठाया है। मोदी-शाह कश्मीर से धारा ३७० हटाकर अखंड भारत के सपने को साकार करने का दम भर रहे थे, लेकिन कश्मीर में आतंकवाद खत्म नहीं कर सके। युवाओं को रोजगार देने में मोदी-शाह पिछड़ गए। मुख्य रूप से, मोदी-शाह हजारों कश्मीरी पंडितों को वापस लाने में विफल रहे। धारा ३७० हटाना एक तमाशा साबित हुआ और अब वहां की जनता ने भाजपा को हरा दिया। इस तरह हरियाणा में कांग्रेस और जम्मू-कश्मीर में भाजपा को झटका लगा। प्रधानमंत्री मोदी को कश्मीर के लोगों ने खारिज कर दिया और हरियाणा में स्थिति अनुकूल होने के बावजूद कांग्रेस फायदा नहीं उठा सकी। कांग्रेस के साथ ऐसा हमेशा होता है। पिछली दफा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में एक तरह का माहौल था कि भाजपा सत्ता में नहीं आएगी, लेकिन कांग्रेस पार्टी की आंतरिक अव्यवस्था भाजपा के लिए मुफीद साबित हुई। सवाल खड़ा हो गया है कि क्या पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने हरियाणा में कांग्रेस पार्टी की नैया डुबो दी है। श्रीमान हुड्डा की भूमिका इस तरह थी कि जैसे कांग्रेस के सूत्रधार वही हैं और जिसे वह चाहें वही वैंâडिडेट होगा। कुमारी शैलजा जैसी पार्टी नेता को हुड्डा और उनके लोगों द्वारा सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया और दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान हुड्डा को रोकने में विफल रहा। हरियाणा के किसानों ने दिल्ली बॉर्डर पर जबरदस्त आंदोलन किया। हरियाणा की महिला पहलवानों से छेड़छाड़ पर भाजपा ने और उसके प्रधानमंत्री ने कोई कार्रवाई नहीं की। विनेश फोगाट और उनके साथियों को दिल्ली के जंतरमंतर रोड से घसीटते हुए पुलिस वैन में ठूंसा गया… इन सबका गुस्सा हरियाणा के लोगों में साफ दिख रहा था। बेशक, भले ही विनेश फोगाट खुद जीत गर्इं, लेकिन उनके साथ हुए अन्याय के कारण पूरे हरियाणा में पैदा हुए गुस्से और नाराजगी से कांग्रेस को कोई फायदा नहीं हुआ। हरियाणा में भाजपा विरोधी लहर थी और कहा जा रहा था कि भाजपा उस लहर में बह जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। क्योंकि कांग्रेस का संगठन अव्यवस्थित एवं कमजोर था। राजनीति और चुनाव में संगठन को जमीन पर होना जरूरी है। भाजपा का संगठन मजबूत था और ‘स्ट्रेटेजी’ अचूक साबित हुई। मध्य प्रदेश में कमलनाथ ने सीधे तौर पर भाजपा की मदद की। हरियाणा में भी केंद्रीय जांच एजेंसी हुड्डा के पीछे थी, फिर भी हुड्‌डा कांग्रेस के साथ बने रहे। वह हरियाणा में जाट समुदाय के बड़े नेता हैं, लेकिन वह अन्य समुदायों को कांग्रेस के साथ नहीं ला सके। यह जाटों और अन्य समुदायों के बीच मुकाबला था और भाजपा जीत गई, फिर रेप के आरोप में जेल में बंद और कुछ दिन पहले पैरोल पर रिहा हुए बाबा राम रहीम का भी हरियाणा में भाजपा की जीत में ‘हिस्सा’ है ही। चुनाव से कुछ दिन पहले यह बाबा ‘पैरोल’ पर वैâसे बाहर आ जाता है? बाबा राम रहीम का ये ‘चुनावी कनेक्शन’ पिछले चुनावों में भी देखने को मिला था। नतीजे से एक दिन पहले हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी ने कहा था, ‘भाजपा ही जीतेगी। हमने जीत के लिए सारे इंतजाम कर लिए हैं।’ सैनी का यह बयान रहस्यमय है। सुबह साढ़े दस बजे तक कांग्रेस ६५ सीटों पर आगे चल रही थी। कांग्रेस जगह-जगह जलेबियां-लड्डू बांटने लगी; लेकिन अगले ही घंटे में भाजपा ने बढ़त बना ली और कांग्रेस पिछड़ गई। चुनाव आयोग ने बाद में वोटों की गिनती भी मंद कर दी। ऐसा क्यों हुआ? जब कांग्रेस हर जगह आगे चल रही थी तो वोटों की गिनती और ‘अपडेट’ की गति अचानक धीमी क्यों हो गई? कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी चुनाव आयोग पर आरोप लगाया है। ऐसे में हरियाणा में भाजपा की जीत संदिग्ध हो गई है। इसलिए मोदी और शाह को हरियाणा की जीत में नहीं बह जाना चाहिए, क्योंकि वे एक महत्वपूर्ण राज्य जम्मू-कश्मीर में हार गए हैं। इसका मतलब यही है कि प्रधानमंत्री मोदी पूरे देश के नेता नहीं हैं। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के नतीजे इसके संकेत हैं। कल महाराष्ट्र में चुनाव होंगे। महाराष्ट्र की जनता हरियाणा की राह पर नहीं जाएगी और महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी की जीत होगी। मराठी जनमत मोदी-शाह, फडणवीस-शिंदे के खिलाफ है। महाराष्ट्र की बाजी महाविकास गठबंधन जीतेगा, लेकिन राज्य में कांग्रेस नेताओं को हरियाणा के नतीजों से बहुत कुछ सीखना है। हरियाणा में कांग्रेस ने ‘आप’ समेत कई घटकों को दूर रखा, क्योंकि उन्हें सत्ता में हिस्सेदारी नहीं चाहिए थी। इस खेल में पूरा राज्य ही हाथ से निकल गया। जम्मू-कश्मीर में ‘इंडिया’ गठबंधन की जीत हुई। हरियाणा में सिर्फ कांग्रेस पीछे हटी। ‘इंडिया गठबंधन’ के लिए तस्वीर अच्छी नहीं, लेकिन ध्यान कौन देगा?

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