अमर झा
नागपुर के एक छोटे से गांव से पढ़ाई पूरी करने के बाद मुंबई का रुख करनेवाले किसान के बेटे डॉ. सुशील गोपीकिशन अग्रवाल आंखों के इलाज के लिए मशहूर हैं। डॉ. सुशील बताते है कि मैं विदर्भ स्थित अमरावती के परतवाड़ा गांव का रहनेवाला हूं। मेरे पिता एक साधारण किसान थे। अपनी बारहवीं तक की पढ़ाई मैंने अपने गांव से और मेडिकल की पढ़ाई नागपुए स्थित सरकारी मेडिकल कॉलेज से की। सीमित साधन होने के बावजूद १९८३ में १२वीं पास करने के बाद मैं सरकारी मेडिकल कॉलेज नागपुर में डॉक्टर की पढ़ाई करने लगा। पढ़ाई पूरी होने के बाद अमरावती के एक मेडिकल ट्रस्ट में मैं काम करने लगा। कुछ वर्षों तक वहां काम करने के बाद कुछ अपना करने की मैं सोचने लगा। १९९६ में भायंदर (प.) में साठ फीट रोड पर गणेश मंदिर के पास गीता आई क्लिनिक खोलकर मैंने प्रैक्टिस शुरू कर दी। एक अच्छा आंखों का डॉक्टर होने के नाते मेरे पास आंखों के रोगियों की भीड़ लगने लगी। समस्या यह थी कि अगर किसी रोगी के आंख का ऑपरेशन करना होता तो मुझे किसी अन्य अस्पताल में जाकर ऑपरेशन करना पड़ता था। इतने पैसे नहीं थे कि ऑपरेशन करने के लिए बड़ी जगह और ऑपरेशन में लगनेवाली मशीन खरीद सकूं, लेकिन मेरे माता-पिता हमेशा मजबूती के साथ मेरे साथ खड़े रहे। मैं मेहनत करता रहा और अपना आंखों का अस्पताल खोलने का सपना पाले रखा। फिर १९१२ में मेक्सेस मॉल के पास सरोज प्लाजा इमारत की पहली मंजिल पर मैंने गीता आई क्लिनिक एंड सर्जिकल सेंटर की स्थापना की, जहां आंखों से संबंधित इलाज के साथ-साथ आंखों का ऑपरेशन भी करने लगा। मेरा मुंबई आने का सपना साकार हुआ। डॉ. सुशील अग्रवाल बताते हैं कि मैंने गरीबों के इलाज के लिए २००३ में अपने पिता की याद में नारायणी नेत्रालय ट्रस्ट की स्थापना दत्त मंदिर स्टेशन रोड पर की, जहां मामूली फीस में गरीबों का इलाज करता था। ट्रस्ट को २००३ से २०१५ तक चलाया। डॉ. सुशील शुरू से ही सामाजिक कार्य एवं धार्मिक कार्यों में विशेष रूप से हिस्सा लेते थे। इसीलिए १९९८ से लगातार १४ वर्षों तक विश्व हिंदू परिषद (भायंदर) के जिलाध्यक्ष रहकर कई आंदोलनों में शामिल रहे। २०१२ से केशव सृष्टि गौशाला के सेक्रेटरी पद के साथ-साथ केशव सृष्टि संस्था के कार्यकारणी सदस्य भी हैं। राजनीति में भी सक्रिय रहकर डॉ. सुशील दो बार मीरा-भायंदर मनपा में नगरसेवक बने और अपने वॉर्ड के विकास का काम करते रहे हैं। डॉ. सुशील कहते हैं कि भगवान ने मुझे इस शहर में सब कुछ दिया। बेटी की शादी कर दी है और बेटा यूके जाकर ऊंची शिक्षा ले रहा है। आज मैं जो कुछ भी हूं अपने माता-पिता के आशीर्वाद से हूं।