मेरे अल्फाज बदले से हैं अब,
हुकूमतें बाज कर रहे हैं अदब,
पता नहीं कैसे हुआ ये गजब?
ये सांप नेवले का खेल है अजब!
मेरे किस्से का किरदार जानता है रब,
दिल से मनाओ दशहरा व गुरु परब,
जाना जिन्हें मां वैष्णव-मक्का अरब,
देखो शैतानी युद्ध में बहा अरबों खरब!
मजहबी उन्माद मे न रहा सबब,
टूटी हदें सारी, किया किसने मदद,
लाश के ढेर से मिलेगा सबक,
कहीं वजूद तो कोई आतंकी मसूद!
विश्व के देशों में वर्षों से युद्ध ही युद्ध,
बड़े देश कराते हैं खुद को कह प्रबुद्ध,
भारत बनेगा शांति का महात्मा बुद्ध,
गांधी की शांति, अहिंसा टालेगा महायुद्ध!
-संजय सिंह `चंदन’