मुख्यपृष्ठस्तंभसंडे स्तंभ : अनमोल रतन मुंबई का

संडे स्तंभ : अनमोल रतन मुंबई का

विमल मिश्र

‘आमरो रतन’… यही था पारसी लोगों की जुबान पर रतन टाटा के लिए प्यार और गर्व का संबोधन। अन्य भारतीयों के लिए वे क्या थे यह आप इन दि‌नों हर जगह उनके प्रशस्तिगान से जान ही रहे होंगे। रतन टाटा ने विश्व प्रसिद्ध टाटा संस्कृति की विरासत को आगे ही नहीं बढ़ाया, बल्कि उसमें चार चांद भी लगाए। अब ये कहावतों और किंवदंतियों का ‌हिस्सा हैं।

फोर्ट में छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस के सामने हजारीमल सोमानी मार्ग से होते हुए आप अक्सर टाटा पैलेस से होकर गुजरे होंगे। अपने लैंडस्केप गार्डंस के लिए मशहूर टाटा पैलेस- जिसे लोग डॉएच्च बैंक के मुख्यालय के नाम से ही जानते रहे और अब जहां कैथेड्रल एंड जॉन कॉनन स्कूल का आई. बी. सेक्शन है- बचपन में रतन टाटा का आवास रहा। मुंबई शेयर मॉर्केट के बिल्कुल नजदीक स्थित बॉम्बे हाउस यहां से ज्यादा दूर नहीं है।
९ अक्टूबर, २०२४ की देर रात ८६ साल की उम्र में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन से पहले टाटा संस और टाटा ग्रुप के चेयरमैन (बाद में मानद चेयरमैन) रहे रतन टाटा ने कोलाबा, अलीबाग और पुणे के अपने बंगलों के अलावा जिंदगी का बड़ा हिस्सा बॉम्बे हाउस में ही काटा, जो १९२४ से ही टाटा ग्रुप का मुख्यालय है। १९४२ में जुड़ी चौथी मंजिल इस इमारत का सबसे सम्मानित हिस्सा है, जहां बोर्ड रूम के अलावा टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी टाटा संस के चेयरमैन व सभी टॉप अफसरों के ऑफिस हैं। २०१७ में नटराजन चंद्रशेखरन को कमान सौंपने से पहले रतन टाटा यहीं बैठा करते थे।चित्रों, फोटोग्राफ्स और कलाकृतियों से सजे बॉम्बे हाउस सरीखे सुंदर और क्षमतावान कार्यालय भारत ही नहीं, विश्व में भी कम ही होंगे। १०० से ज्यादा देशों में बिजनेस और छहों महाद्वीपों के १५० देशों को प्रोडक्ट्स और सेवाएं निर्यात करने वाले सात लाख के करीब कर्मचारियों वाले टाटा घराने की सबसे प्रमुख कंपनियों का मुख्यालय। अरबों-खरबों का वारा-न्यारा करने वाले टेटली, कोरस, जगुआर, लैंड रोवर, जनरल केमिकल्स, सिटी ग्रुप ग्लोबल सर्विसेज, स्टारबक्स सरीखे ‘टेक ओवर्स’ और ‘टाटा एलेगेंट’ को विदेशी बाजार में पेश करके देश की धाक बाहर जमा देने वाले पैâसलों का घर। देश की पहली एयरलाइन एयर इंडिया (टाटा एयरलाइंस) की संकल्पना और स्वदेशी रूप से डिजाइन की गई पहली कार ‘टाटा इंडिका’ और सबसे सस्ती ‘टाटा नैनो’ के निर्माण जैसे निर्णयों का ठिकाना। रतन टाटा टिस्को, टेल्को, टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, टाटा केमिकल्स, टाटा कंसलटेंसी, टाटा पॉवर, टाटा इंडस्ट्रीज, टाटा टी, ट्रायंट, टाटा टेली सर्विसेज, हिंदुस्तान यूनिलीवर, टाटा कम्यूनिकेशंस, पेटीएम, ओला, लैक्मे, वेस्टसाइड, सरीखी ४० के करीब टाटा की कंपनियों और ब्रैंड्स के कर्ता-धर्ता थे, जिनका विशाल साम्राज्य कार, लोहा, इस्पात, रसायन, वाहन, टेलिफोन, मोबाइल, होटल, विमानन, बिजली, बीमा, चिकित्सा व सॉफ्टवेयर से लेकर घड़ी व चाय पत्ती जैसे क्षेत्रों में फैला है। यही रहते रतन ने पहले रूसी मोदी, दरबारी सेठ और अजीत केरकर सरीखे छत्रपों का निरंकुश राज खत्म किया। अपनी दूरदृष्टि से टाटा ग्रुप का कारोबार १९९१ में चार अरब डॉलर से २०१२ में १०० अरब डॉलर तक पहुंचा दिया।
रतन टाटा ने मुंबई के कैंपियन स्कूल और कैथेड्रल व जॉन कॉनन स्कूल के अलावा शिमला के बिशप कॉटन स्कूल से बारहवीं तक शिक्षा ग्रहण करने के बाद १९६२ में अमेरिका के कॉरनेल विश्वद्यिालय से आर्किटेक्चर व स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग और हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एडवांस्ड मैनेजमेट प्रोग्राम में परास्नातक की डिग्री प्राप्त की। कॉलेज के दौरान ही वे एल्फा सिग्मा फी प्रैâटरनिटी, जोंस एंड एमंस और आई. बी. एम. से जुड़ गए और फिर टाटा इंडस्ट्रीज में असिस्टेंट पद से पारिवारिक कारोबार में प्रवेश किया। १९७१ में उन्हें नेल्को और १९८१ में टाटा इंडस्ट्रीज का निदेशक बना दिया गया। १९९१ में जे. आर. डी. टाटा द्वारा कमान सौंपे जाने के बाद वे टाटा समुदाय के मुखिया बन गए।
असाधारण मानवीयता
१० अक्टूबर को वर्ली श्मशान गृह में रतन टाटा की अंत्येष्टि के दौरान उनके पार्थिव शरीर के पास से हिलने का नाम नहीं ले रहा था उनका पालतू कुत्ता गोवा। अपनी करुणा के लिए माने जाने वाले रतन टाटा का पशुओं, खासकर कुत्तों के साथ हमेशा खास रिश्ता रहा। कहते हैं कि मनुष्यों से अधिक उनके करीबी कुत्ते ही थे। उन्हें वे अपनी संतान की तरह माना करते और उन्हें घुमाने नेवी नगर के आलीशान यू. एस. क्लब हर रविवार अपने कोलाबा वाले अपार्टमेंट से खुद गाड़ी चलाकर साथ लाते। रतन ने बॉम्बे हाउस में मौजूद कुत्ता घर में उनकी सुविधा का हर सामान मुहैया कराया था। अपने ताजमहल होटल के आगे उन्होंने एक देसी कुत्ते को रहने के वास्ते जगह दे रखी थी और २०१८ में ब्रिटेन के राजसी परिवार का एक प्रतिष्ठित सम्मान सिर्फ इसलिए ठुकरा दिया था, क्योंकि उनका एक प्रिय कुत्ता बीमार था।
भारत का सर्वश्रेष्ठ ‘ब्रैंड अंबेसडर’ और ‘कार्पोरेट उत्तरदायित्व का रोल मॉडल’ माने जाने वाले रतन के किस्सों से पूरा मीडिया जगत इन दिनों सराबोर है। रतन के हर जन्मदिन को किसी पारिवारिक उत्सव की तरह मनाने वाले १० लाख से अधिक टाटा कर्मचारी परिवार के सदस्यों के लिए तो जैसे उनके घर का ही कोई विदा हो गया है, जो उनकी तनख्वाह से लेकर सेहत और उनके पूरे परिवार तक का इतना ध्यान रखते थे कि टाटा की नौकरी के आगे सरकारी नौकरी तुच्छ मानी जाने लगी थी। देशभक्ति का आलम यह कि ताजमहल होटल पर २६/११ के आतंकी हमलों के दौरान उन्होंने अपने स्टॉफ को निर्देश दे रखा था कि भले मेरी इस प्रापर्टी का कुछ भी हश्र हो आतंकवादी एक भी बचना नहीं चाहिए।
चार बार प्यार, पर शादी नहीं
‘मैं बहुत सामाजिक नहीं हूं, पर असामाजिक भी नहीं हूं’, रतन टाटा ने अपने एक साक्षात्कार में माना है। किसी धीरोदात्त नायक की तरह सुंदर, गोरे और बेहद शालीन व मिलनसार रतन टाटा निजी जिंदगी में घोर अंतर्मुखी, निजता को महत्व देने वाले प्रचार विमुख, एकांतप्रिय और मितभाषी व्यक्ति थे। उनके अपार्टमेंट के बाहर सिक्यूरिटी न के बराबर होती थी। उन्हें अपनी छुट्टियां घर ही रहकर एकांत में अपने दोनों जर्मन शेफर्ड कुत्तों के साथ बिताना रुचता था।
रतन टाटा ने शादी नहीं की। हालांकि, चार बार प्यार में जरूर पड़े। एक इंटरव्यू में उन्होंने अमेरिका के लॉस एंजेलिस में हुए अपने पहले प्यार के बारे में बात की थी, ‘मेरी शादी लगभग तय थी, लेकिन लड़की वाले नहीं माने। अमेरिका से लौटना पड़ा, क्योंकि मैं सात साल अपनी दादी से दूर था और उनकी तबीयत बहुत खराब थी।’ रतन ने कभी अभिनेत्री सिमी ग्रेवाल को भी डेट किया था। अपने शो ‘रांदेवु’ में सिमी ने जब उनसे पूछा कि आपने शादी क्यों नहीं की, तो जिंदगी में खालीपन, शादी, पत्नी और बच्चों को लेकर अपना दर्द वे छिपा न पाए। मुंबई में २८ दिसंबर, १९३७ को पिता नवल होरमुसजी टाटा और माता सूनी के घर जन्में रतन ताजिंदगी अकेलेपन का शिकार रहे। रतन एवं उनके छोटे भाई जिमी का पालन-पोषण छुटपन से ही दादी लेडी नवाजबाई ने ही किया था।
युद्धक विमान भी चलाए
कला-संग्रह में दिलचस्पी, सिगरेट व शराब से दूर, घर का खाना और टाटा इंडिगो मरीना वैगन खुद ही चलाकर दफ्तर जाना। रतन की सेहत जब तक ठीक रही, फुरसत में अक्सर उन्हें अपने निजी जेट विमान फाल्कॉन २,००० को उड़ाते हुए देखा जा सकता था। फरवरी, २००७ में उन्होंने ‘एयरो इंडिया-२००७’ के नाम से एयर शो करवाया, जिसमें स्वयं बोइंग, लॉकहीड, एफ-१६ और एफ-१८ जैसे युद्धक विमान चलाकर उन्होंने विश्वभर में सनसनी पैâला दी।
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर
संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

अन्य समाचार