एम. एम. सिंह
पिछले सप्ताह मेरे एक मित्र ने मुझे एक छोटा-सा पीस भेजा। इस पीस के साथ उसने मुझे फोन कर कहा कि इस कहानी को एक बार नहीं कम से कम पांच बार जरूर पढ़ना। मैंने एक बार सरसरी तौर पर पढ़ा, लेकिन मुझे इस कहानी में ऐसा कुछ भी नहीं लगा कि इसे पांच बार पढ़ना चाहिए। नमाज थोड़ी है, जो ५ बार पढ़ी जाए। एक बार आप भी पढ़िए… ५ बार पढ़ने की कोई जरूरत नहीं…
कुछ साल पहले तुर्की में एक भेड़ ने पहाड़ी से कूदकर न जाने क्यों छलांग लगा दी और इसकी देखा-देखी पंद्रह सौ भेड़ें मर गर्इं। इसे कहते हैं हर्ड साइकालॉजी आम भाषा में भीड़ चाल।
हर्ड थियरी का मतलब है बिना किसी प्रत्यक्ष दिशा के एक व्यक्तिगत प्रक्रिया का किसी एक समूह या गिरोह को फॉलो करना। यह बहुत ज्यादा तो जानवरों में पाया जाता है, जैसे मछलियों का एक दिशा में तैरना या परिंदों का उड़ना या भेड़ों का चलना। मगर इंसान का यह कृत्य आजकल बहुत ज्यादा देखा जाता है। खासतौर से जब राजनीति का मामला हो। धर्म के मामले में भी ऐसा अक्सर तब होता है जब मुख्य निर्देश स्पष्ट नहीं होते, तब लोग भेड़ चाल में चलते हैं और अपने तथा समाज के लिए कठिनाई पैदा करते हैं।
भेड़ चाल हर जीव का स्वभाव है। यूरोप जैसे शिक्षित और बुद्धिमान समाजों को भी इससे छूट नहीं है। बचपन में एक कहानी सबने सुनी होगी क्लास रूम में एक बच्चे ने चीखना शुरू किया, तो सारी क्लास चीखने लगी, गांव में एक औरत को हिचकी आने लगी, तो धीरे-धीरे पूरा गांव ही हिचकियां लेने लगा।
यहां पहले छलांग लगानेवाले को भी पता नहीं और फॉलो करनेवालों को भी नहीं मालूम कि समस्या क्या है। राजनीति में नेता छलांग नहीं लगाता, उसके अंधे, गूंगे, बहरे समर्थक लगा देते हैं।
इस अंधी, गूंगी, बहरी भीड़ की कमान मीडिया संभाले हुए है, जब तक लोग मीडिया को फॉलो करते रहेंगे तब तक ये भीड़ खत्म होने की बजाय बढ़ती जाएगी। इस समय दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती ऐसी अंधी, गूंगी भीड़ को खत्म करना है…
कितनी हास्यास्पद और दुखद है, जिनके कंधों पर (मीडिया) इस बात की महती जिम्मेदारी है, वो पूरा का पूरा समूह जोकरों की तरह मसखरी कर रहा है? ‘सावधान अंधे, गूंगे, बहरे’ भक्तों से?