अनिल तिवारी मुंबई
देश की तमाम छोटी-बड़ी सड़कों पर इन दिनों गड्ढों वाले खतरों के अलावा जिनकी सबसे घातक मौजूदगी है, तो वो है अवैध फ्लेक्स होर्डिंग्स की। अभी २ दिन पहले ही मुंबई हाई कोर्ट ने सत्ता पक्ष की अवैध होर्डिंग्स पर प्रशासन को डांट लगाते हुए १० दिनों के भीतर इन खतरनाक होर्डिंग्स को हटाने का आदेश दिया है। ये होर्डिंग्स यदि सड़कों पर सुरक्षित ढंग से टंगीं रहें तब तो ठीक भी है पर जब ये आवाजाही के बीच, डिवाइडर्स पर, पोल्स पर या किनारे गड़े लट्ठों पर खतरनाक ढंग से टंगती हैं तो ये हादसों को सीधा आमंत्रण होती हैं। वाहनों के तेज झोंकों, आंधी-अंधड़ या मामूली से इंसानी हस्तक्षेप में ये चालकों के लिए खतरा पैदा कर देती हैं और खतरा पैदा कर देती हैं उन समग्र नागरी जरूरतों पर, जो देश के हर एक नागरिक का मूलभूत अधिकार हैं। सुनने में यह मुद्दा कुछ अटपटा सा लग सकता है, पर इसके गंभीर मंथन से यह कैसे देश और देशवासियों के भविष्य पर कुठाराघात कर रहा है और कैसे एक छोटी सी प्रशासनिक व नीतिगत अनदेखी हमारे नगरों व नागरिकों को समग्रता में नुकसान पहुंचा रही है, यह समझा जा सकता है। वैसे, यह विषय ऊपर से जितना सरल है, अंदर से उतना ही क्लिष्ट भी है। फिर भी इसे सिलसिलेवार ढंग से समझा जा सकता है।
हम सभी समझते हैं, देखते भी हैं कि सड़कों पर हरदम बहुतायत में टंगी रहने वालीं अवैध फ्लेक्स का राजनैतिक, सामाजिक, व्यापारिक व आर्थिक लाभ किसे होता है, परंतु इनसे हमारा खुद का व्यक्तिगत, व्यावहारिक, आर्थिक, शारीरिक और पारिवारिक नुकसान कैसे होता है, यह शायद हम समझ नहीं पाते। हम देखना ही नहीं चाहते कि फ्लेक्स की इस सस्ती पब्लिसिटी में देश और दुनिया का क्या-क्या नुकसान हो रहा है। बस, मामला सक्षम समाज से जुड़ा है इसीलिए इन्हें खुली प्रशासकीय छूट है, यह मानकर हम आगे बढ़ जाते हैं और अपने लिए कई अड़चनोेंं को आमंत्रित कर लेते हैं। यह जानते हुए भी कि फ्लेक्स बैनर मटेरियल एक तरह का पीवीसी आर्टिकल (पीवीसी शीट) है और यह लिक्विड पेट्रोलियम अर्थात क्रूड ऑयल का बाय प्रोडक्ट है, जिसका अत्यधिक निर्माण पर्यावरण व जलवायु संतुलन के लिए घातक होता है। खासकर, भारत जैसे देश में इसका जरूरत से ज्यादा आयात व इस्तेमाल न केवल हमें भारी आर्थिक व व्यापारिक घाटा कराता है, बल्कि यह ढेर सारे नॉन रिसाइकलेबल कचरे का बड़ा कारण भी बनता है। हाल ही के आंकड़ों के अनुसार हिंदुस्थान में मार्च, २०२३ से फरवरी, २०२४ के १२ महीनों में फ्लेक्स के करीब ३ लाख ४० हजार शिपमेंट मंगवाए गए थे। लाखों टन के ये शिपमेंट वैसे तो १०८ अलग-अलग देशों से आए थे, परंतु इनमें चीन, यूएस और जर्मनी का नंबर अव्वल था और हमेशा रहता भी है।
कमोवेश, यही हाल फ्लेक्स प्रिंटिंग इंक का भीr है। ये भी कॉलोरेंट, रेसिन, सोलवेंट, एडहेसिव समेत तमाम घातक पदार्थों से बनती है। जिन्हें कई तरह के धातुओं, खनिजों व रासायनिक पदार्थों से बनाया जाता है। इस इंक का भी बहुतांश आयात हम चीन जैसे देशों से ही करते हैं। अब चूंकि फ्लेक्स और इंक, दोनों ही मटेरियल का बहुतायत में हम आयात करते हैं तो स्वाभाविक ही है कि इनसे होने वाले घाटे का बड़ा बोझ भी हमारे कंधों पर ही आता होगा। जिससे कई तरह की जरूरतों से हम हाथ धो बैठते हैं। यह कहानी इतने पर भी खत्म नहीं होती। आपके लिए यहां यह भी समझ लेना आवश्यक है कि होर्डिंग्स के लिए जिन शीट्स और इंक का इस्तेमाल होता है, वह केवल सिंगल यूज ही होते हैं। यहां तक कि होर्डिंग्स के फ्रेम में लगने वाली बेतहाशा लकड़ियां भी सिंगल यूज के बाद बर्बाद हो जाती हैं। फ्रेम के लिए लकड़ियां व लोहे के पाइप्स क्रमश: जंगलों को काटकर और धरती को खोदकर प्राप्त किए जाते हैं। हर वर्ष इंसान १५ बिलियन से अधिक पेड़ों की कटाई करता है, जिसका चौथा हिस्सा होर्डिंग्स फ्रेम जैसे बेवजह के सिंगल यूज के लिए होता है। इसी तरह एक टन लौह तत्व प्राप्त करने के लिए वातावरण में १२ किलो से अधिक कार्बन का उत्सर्जन किया जाता है और इससे ३० मिलियन क्यूबिक लीटर गंदे पानी व तलछट का प्रदूषण बढ़ता है।
मतलब, फ्लेक्स का सारा का सारा मटेरियल कुछ घंटों या चंद दिनों के प्रचार उपयोग के बाद पूरी तरह से बर्बाद हो जाता है और तोहफे में हमें देता है तो ढेर सारा प्रदूषण, जंगलों का नाश और भारी-भरकम राजस्व की हानि। फिर इसकी भरपाई भी विकास करों और पर्यावरण बचाव शुल्क के नाम पर जनता की जेब से ही होती है। सरकार चाहे तो इन निरर्थक और घातक आयात को सीमित करके व्यापारिक घाटे से बच सकती है। साथ ही जनता को भी बड़े आर्थिक नुकसान से बचा सकती है। उस पर जो धन इससे निर्मित कचरे के निपटारे पर खर्च होता है, उसे वह जनहित में भी लगा सकती है। क्योंकि जब देश बेवजह के उपक्रमों पर बेजा खर्च करता है तो उससे जरूरत के काम छूट जाते हैं, जनता के लिए उपयोगी योजनाओं पर अमल पिछड़ जाता है। फिर इसका बैकलॉक कई नागरी सुविधाओं को बौना करके या उन्हें खत्म करके पूरा किया जाता है, जो एक तरह से देशवािसयों के मूलभूत अधिकारों का हनन है।
अर्थात सत्ता की यह अवैध ब्रांडिंग कितनी घातक है, प्रतिवर्ष लाखों करोड़ रुपए के आयात व भारी-भरकम पर्यावरण हानि की कीमत पर ये सौदे कितने मुनाफे के हैं और इस अवैध उपक्रम से आमजनों को किस-किस प्रकार का, कैसा-कैसा व कितना अधिक नुकसान पहुंच रहा है, इसका कुछ-कुछ अंदाजा आपको लग गया होगा और यह भी समझ आ गया होगा कि इस आयात से हम एक तरह से चीन जैसे दुश्मन देशों की अर्थव्यवस्था को मजबूत करके अपने देश को अंदर से खोखला भी कर रहे हैं। तो फिर इसका उपाय क्या है? इसका उपाय बेहद ही सरल, कारगर और अपेक्षाकृत काफी फायदेमंद भी है। यदि सरकारें इस मामले में अनदेखी छोड़कर एक कारगर नीति बनाएं व अवैध होर्डिंग्स को वैध डिजिटल होर्डिंग्स में बदलने पर काम करें तो न केवल देश को विज्ञापन कर के रूप में भारी राजस्व की प्राप्ति हो सकती है, बल्कि सड़कों पर टंगे अवैध खतरों से भी आम जनता को निजात मिल सकती है। डिजिटल होर्डिंग्स आपातकाल में नागरिकों को तुरंत व पर्याप्त अलर्ट देने में सक्षम होती हैं, ये रात के अंधेरे में सड़कों पर उजाले का अतिरिक्त योगदान कर शहर को विद्रूप होने से रोक भी सकती हैं।
कुल मिलाकर सरकार के लिए यह आवश्यक है कि वो केवल सियासी स्कोर के लिए चीनी उत्पादों व उसके डिजिटल एप्स का बहिष्कार ही न करे, उन पर पाबंदियां ही न लगाए, बल्कि हर दुश्मन देश से बेवजह के आयात पर भी अपनी आंखें खोले, क्योंकि इसका खामियाजा न केवल देश को, बल्कि नागरिकों को भी मानसिक, शारीरिक, आर्थिक और व्यावहारिक परेशानियों के रूप में अदा करना पड़ता है। सड़क सुरक्षा, स्वच्छ पर्यावरण व खुशहाल जीवन जीने का अधिकार देश के हर नागरिक को मिलना चाहिए और सरकारें इसके लिए कटिबद्ध भी हैं। लिहाजा प्रशासन और राजतंत्र दोनों के लिए आवश्यक है कि वो अवैध फ्लेक्स पर नकेल कसें। इस दिखावटी महिमामंडन से समाज को बचाएं, ताकि क्रूड के क्रूर प्रोडक्ट्स पर देश की निर्भरता कम हो व फॉरेन मनी की बचत से नागरिक खुशहाल हो सकें।
(उपरोक्त आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं। अखबार इससे सहमत हो यह जरूरी नहीं है।)