घमंड 

घमंड में जो समझते हैं खुद को बादशाह
दूसरे के दर्द के प्रति होते वही लापरवाह।
जीते जी होता जिनका जग में तिरस्कार
मरने के बाद होता उन्हें ही नमस्कार।
मतलब के लिए होता जिस शख्स को प्रणाम
काम होने पर लोग करते उसी को गुमनाम।
रुतबे का जग में मिथ्या होता है अभिमान
गर वक्त हो खराब तो खो जाता सम्मान।
जिन अपनों से होती नहीं कोई अपेक्षा
उन्हीं की होने लगती है जीवन में उपेक्षा।
कबूल होती जग में उन्हीं बंदों की इबादत
जो रखते मिजाज मे ईमानदारी की आदत।
-मुनीष भाटिया
मोहाली

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