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भाजपा के राज में श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश से भी ज्यादा भूखे भारत में! …ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत १०५वें स्थान पर

सामना संवाददाता / नई दिल्ली
देश की मोदी सरकार भले ही यह दावा करे कि जब से केंद्र में भाजपा की सरकार आई है हिंदुस्थान ने बहुत विकास किया है, लेकिन वास्तविक स्थिति कुछ और ही है। एनडीए शासन में भारत में भुखमरी के स्तर में कोई खास सुधार नहीं हो पाया है, आज भी हिंदुस्थान भुखमरी के मामले में अपने पड़ोसी देशों से कहीं आगे हैं। बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार और श्रीलंका जैसे देशों से भी ज्यादा भुखमरी का सामना हिंदुस्थान के लोग कर रहे हैं। यह हम नहीं, बल्कि वैश्विक भूख सूचकांक (जीएचआई) के आंकड़े बता रहे हैं। भारत ने भुखमरी के मामले में इस बार १२७ देशों की सूची में १०५वें स्थान आ गया है। पिछले वर्ष की तुलना में ६ पायदान ऊपर आया है। पिछले वर्ष १२५ देशों में भारत १११वें नंबर पर था और उससे पहले १०७वें स्थान पर यानी इस बार स्थिति में नाममात्र का सुधार हुआ है, लेकिन कोई खास सुधार नहीं माना जाएगा।
इस सूची में २७.३ अंक के साथ भारत अभी भी गंभीर भुखमरी की समस्याओं वाले ४२ देशों की सूची में बना हुआ है। इस सूची में चीन, यूएई और कुवैत समेत २२ देश पहले नंबर पर हैं। हाल ही में जारी हुई जीएचआई की १९वीं रिपोर्ट के मुताबिक, भारत अपने पड़ोसी देशों श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार और बांग्लादेश से पीछे हैं, जबकि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मुकाबले अच्छी स्थिति में है। इसमें बताया गया है कि श्रीलंका ५६, नेपाल ६८ और बांग्लादेश ८४वें स्थान के साथ भारत से कहीं आगे हैं। ये सभी देश बेहतर जीएचआई स्कोर के साथ मध्यम श्रेणी में हैं, वहीं १०९वें स्थान वाला पाकिस्तान और ११६वें स्थान के साथ अफगानिस्तान गंभीर श्रेणी में शामिल हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार, जीएचआई बताता है कि किसी भी देश में भुखमरी की स्थिति क्या है। जिस देश का स्कोर जितना कम होगा यानी वहां के लोग उतने कम भूखे हैं। इस रिपोर्ट को आयरलैंड की संस्था ‘कंसर्न वर्ल्ड वाइड’ और ‘वर्ल्ड हंगर हेल्प’ मिलकर प्रकाशित करते हैं।

बाल कुपोषण अभी भी है एक गंभीर मुद्दा
भारत में बाल कुपोषण की गंभीर चुनौतियों का सामना करना जारी है। यहां दुनिया भर में बाल दुर्बलता दर सबसे अधिक (१८.७ फीसदी) है। देश में बाल कुपोषण दर भी ३५.५ फीसदी है, पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर २.९ फीसदी है, तथा कुपोषण का प्रचलन १३.७ फीसदी है। हालांकि, भारत ने २००० के बाद से अपनी बाल मृत्यु दर में उल्लेखनीय सुधार किया है, लेकिन बाल कुपोषण एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है, जिसमें दुर्बलता और बौनापन दोनों ही दरें अभी भी चिंताजनक रूप से ऊंचे लेवल पर हैं। रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि २००० के बाद से बौनापन कम हुआ है, लेकिन ये आंकड़े गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियां पेश करते रहते हैं।

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