मुख्यपृष्ठस्तंभराज की बात : महंगी बिजली की मार, नहीं चलेगी ये सरकार

राज की बात : महंगी बिजली की मार, नहीं चलेगी ये सरकार

द्विजेंद्र तिवारी
मुंबई

हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और वर्तमान उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अपने चुनाव प्रचार के दौरान बिजली दरों को आधा करने की घोषणा ने न केवल अमेरिका में, बल्कि पूरे यूरोप ब्रिटेन और भारत में भी चर्चाओं को हवा दे दी है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो कहा कि अब पूरी दुनिया बिजली बिलों को लेकर उनका अनुसरण कर रही है। उल्लेखनीय है कि दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकारें हैं, जहां दो सौ और तीन सौ यूनिट बिजली मुफ्त दी जा रही है।
अब ट्रंप के बयान ने दुनिया भर में ऊंची बिजली दरों की ओर ध्यान आकर्षित किया है, क्योंकि सामान्य नागरिक और उद्योग-व्यवसाय बढ़ती दरों से जूझ रहे हैं, जिससे घरेलू खर्च और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं पर भारी दबाव पड़ रहा है।
यह घटनाक्रम वैश्विक स्तर पर बढ़ती बिजली दरों पर बढ़ते असंतोष और किफायती, टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा समाधानों की तत्काल आवश्यकता को उजागर करता है। यूरोप और ब्रिटेन में ऊर्जा संकट अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गया है, जिससे नागरिक भारी आर्थिक तनाव में हैं। कई परिवार अपने बिजली बिलों का भुगतान करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और व्यवसाय अस्थिर बिजली की कीमतों के कारण परिचालन कम कर रहे हैं। राजनीतिक भ्रष्टाचार, मुनाफा कमाने की होड़, आपूर्ति शृंखला में व्यवधान और जीवाश्म र्इंधन पर निर्भरता सहित कई कारकों ने बिजली की कीमतों के उछाल में योगदान दिया है।
यूरोप में सरकारों ने ऊर्जा सब्सिडी, बिजली दरों पर वैâप और कमजोर समूहों के लिए छूट जैसे अस्थायी राहत उपाय पेश किए हैं। इन उपायों का दायरा सीमित रहा है, जिससे आबादी का एक बड़ा हिस्सा संघर्ष कर रहा है।
विशेषज्ञों का तर्क है कि अक्षय ऊर्जा उत्पादन को खराब तरीके से प्रबंधित किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप महंगी प्राकृतिक गैस आयात पर निर्भरता बढ़ गई है। टैरिफ को विनियमित करने और बिजली को सस्ती और टिकाऊ बनाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों को बढ़ावा देने के लिए अधिक आक्रामक उपायों की जरूरत है।
भारत में विशेष रूप से मुंबई में, अडानी कंपनी द्वारा वसूले जानेवाले अत्यधिक टैरिफ ने उपभोक्ताओं की शिकायतों को जन्म दिया है। उपभोक्ताओं को लगता है कि राज्य और केंद्र सरकारें उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दे रही हैं।
मुंबई के बिजली वितरण के एक महत्वपूर्ण हिस्से को नियंत्रित करनेवाली अडानी कंपनी की आलोचना ज्यादा मुनाफे को तरजीह देने के लिए की जा रही है। कई उपभोक्ताओं का तर्क है कि सामान्य जरूरतों के लिए बिजली का इस्तेमाल करने के बावजूद, उन पर बढ़े हुए बिजली बिलों का बोझ है, जबकि बढ़ती दरों के पीछे के कारणों के बारे में बहुत कम पारदर्शिता है।
इन चिंताओं पर राजनीतिक प्रतिक्रिया मौन रही है, जबकि उपभोक्ता संगठन सख्त विनियमन और टैरिफ संरचनाओं की समीक्षा जैसे सुधारों पर जोर दे रहे हैं, पर अब तक कोई महत्वपूर्ण कार्रवाई नहीं की गई है। इन मांगों को पूरा करने में विफलता ने नागरिकों की हताशा को बढ़ाया है।
बिजली आधुनिक जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बन गई है, जो घरों और उद्योगों से लेकर परिवहन और संचार प्रणालियों तक हर चीज और सेवा के लिए आवश्यक है। जैसे-जैसे दुनिया प्रौद्योगिकी पर अधिक निर्भर होती जा रही है, बिजली की मांग बढ़ती जा रही है। सस्ती बिजली तक पहुंच न केवल आर्थिक विकास के लिए, बल्कि जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए भी महत्वपूर्ण है।
दुनियाभर में नागरिक अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए सस्ती बिजली की मांग कर रहे हैं। छोटे व्यवसाय, जो पहले से ही कोविड महामारी के बाद की अर्थव्यवस्था में टिके रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, उन्हें ऊंची बिजली दरों का सामना करना विशेष रूप से कठिन लग रहा है।
सरकारों को यह समझना चाहिए कि सस्ती बिजली तक पहुंच केवल एक आर्थिक मुद्दा नहीं है, बल्कि सामाजिक समानता का भी मामला है। नीति निर्माताओं को बिजली कंपनियों के लाभ और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है। वैश्विक ऊर्जा संकट ने स्वच्छ, अधिक टिकाऊ ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ने के महत्व को भी मजबूत किया है। सौर, पवन और जलविद्युत जैसे नए ऊर्जा विकल्पों पर काम होना चाहिए, लेकिन उसके लिए बुनियादी ढांचे, नवाचार और नीति सुधार में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता है। अक्सर नौकरशाही, अपर्याप्त धन और निहित स्वार्थों के कारण बाधा उत्पन्न होती है। सरकारों को अक्षय ऊर्जा को सभी के लिए सुलभ और किफायती बनाने के प्रयासों में तेजी लाने की आवश्यकता है।
ऊर्जा विशेषज्ञों का सुझाव है कि सौर पैनल, पवन फार्म और ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करने से लंबे समय में बिजली की लागत में काफी कमी आ सकती है। सार्वजनिक-निजी भागीदारी और नए फाइनेंस मॉडल भी अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
किफायती बिजली सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकारों की ही नहीं, बल्कि बिजली कंपनियों की भी है। किसी भी व्यवसाय के लिए मुनाफा कमाना जरूरी है, लेकिन कंपनियों को ज्यादा उपभोक्ता-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और अपने वित्तीय लक्ष्यों को उचित मूल्य निर्धारण की जरूरत के साथ संतुलित करना चाहिए। पारदर्शी बिलिंग सिस्टम, बेहतर बिजली वितरण और नियमित ऑडिट उपभोक्ताओं का भरोसा बहाल करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
दूसरी ओर, सरकारों को टैरिफ को प्रभावी ढंग से विनियमित करने और यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि सब्सिडी और राहत उपाय जरूरतमंदों तक पहुंचें। राजनीतिक नेताओं को नागरिकों की चिंताओं को दूर करने के लिए ईमानदारी से कार्य करना चाहिए।
ट्रंप के हालिया बयान की सार्वजनिक चर्चा दुनियाभर की सरकारों और बिजली कंपनियों के लिए एक चेतावनी के रूप में काम कर सकती है। यह पर्यावरणीय स्थिरता से समझौता किए बिना सभी के लिए बिजली सस्ती बनी रहे, यह सुनिश्चित करने के लिए प्रणालीगत सुधारों की तत्काल आवश्यकता पर जोर डालता है।

 

(लेखक कई समचार पत्र-पत्रिकाओं के संपादक रहे हैं और वर्तमान में राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हैं)

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