सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई के उपनगरीय रेल मार्गों पर यात्रियों की मौतों की संख्या चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई है। जनवरी से दिसंबर २०२३ के बीच कुल २,५९० यात्रियों ने अपनी जान गंवाई, जिनमें से ४९.३० प्रतिशत मौतें रेलवे ट्रैक पार करने की कोशिश में हुई हैं। इस आंकड़े ने मुंबई की रेलवे सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
भारतीय रेलवे ने ‘शून्य मृत्यु नीति’ शुरू की है, लेकिन यह नीति वास्तव में कितनी सफल हो रही है, इस पर संदेह पैदा हो रहा है। मुंबई महानगर में आकस्मिक मौतों की संख्या को कम करने के लिए मुंबई रेलवे विकास निगम (एमआरवीसी) ने मुंबई अर्बन ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट (एमयूटीपी) के तहत ५५१ करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। हालांकि, यह राशि पर्याप्त है या नहीं और इसका सही उपयोग हो रहा है या नहीं, यह सवाल अब भी अनुत्तरित है। विशेष रूप से वडाला से जीटीबी नगर के बीच रावली वैंâप इलाके में बार-बार रेलवे ट्रैक पार करने के कारण मौत की घटनाओं में वृद्धि हुई है। प्रशासन ने यहां दीवार खड़ी कर सुरक्षा उपायों को लागू करने का निर्णय लिया है, लेकिन स्थानीय निवासियों ने इस दीवार का तीव्र विरोध किया है। उन्होंने कुछ समय के लिए रेल रोको आंदोलन भी किया, जिससे रेल यातायात बाधित हो गया। स्थानीय लोगों के अनुसार, यह दीवार उनके रोजमर्रा के जीवन में बाधा डालेगी और उनकी आवाजाही पर प्रतिबंध लगाएगी। ऐसे में प्रशासन की भूमिका कितनी सही है, इस पर विचार करना चाहिए। निवासियों की समस्याओं को सुने बिना, प्रशासन द्वारा इस दीवार को खड़ा करने का निर्णय और अधिक तनाव पैदा कर सकता है। इस विरोध को नजरअंदाज कर केवल आंकड़ों के लिए उपाय लागू करना कितना सही होगा?