मुख्यपृष्ठनए समाचारसंपादकीय : मानसून खत्म; बेमौसम बरसा पानी! ...संकट बरकरार है!

संपादकीय : मानसून खत्म; बेमौसम बरसा पानी! …संकट बरकरार है!

भले ही मानसून राज्य को अलविदा कह चुका है, लेकिन किसानों के लिए संकट टलने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। मानसून के पीठ पलटते ही राज्य में बेमौसम बारिश ने दस्तक दे दी है। मौसम विभाग ने कोकण समेत मध्य महाराष्ट्र में बारिश को लेकर ‘यलो अलर्ट’ जारी किया है। विदर्भ में भी बेमौसम बारिश ने हाजिरी लगाई है। मौसम विभाग का अनुमान है कि १७ से २३ अक्टूबर तक महाराष्ट्र में सभी जगह बरसात होगी। इस बार पहले ही भारी बारिश ने महाराष्ट्र में खेती को भारी नुकसान पहुंचाया है। विदा लेती बारिश ने भी जाते-जाते जोरदार झटका दिया। इस बार फिर मानसून की वापसी में सामान्य से देरी हुई। इससे किसानों की तैयार हुई फसल बर्बाद होने की नौबत आ गई। अकेले अक्टूबर माह में विदा लेती बरसात से राज्य की करीब ३० हजार हेक्टेयर फसल को नुकसान हुआ है। १ अक्टूबर से १५ अक्टूबर के बीच हुई १५ दिनों की बारिश ने किसानों की चार महीने की मेहनत पर पानी फेर दिया है। चावल, सोयाबीन, मक्का, कपास, बाजरी, ज्वार, मूंग, उड़द, प्याज, सब्जियों जैसी तैयार फसलें १५ दिनों के भीतर पूरी तरह से तबाह हो गर्इं। प्रशासन ने दावा किया है कि इस नुकसान का पंचनामा कर लिया गया है, लेकिन किसान इस बात से परेशान हैं कि मुआवजे की राशि कब हाथ लगेगी? क्योंकि किसानों के मुआवजे को लेकर हुक्मरान कितना भी डींगे हांक लें, सैकड़ों किसान जिनका नुकसान हुआ है आज भी मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं। कृषि महकमे की ओर से कहा गया है कि अक्टूबर में हुई फसल क्षति का पंचनामा कर रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजी जाएगी, तो ये जब होगा तब होगा जैसी बात हुई। कृषि विभाग और राजस्व विभाग सरकार को रिपोर्ट भेजेंगे, आर्थिक महकमा मंजूरी की मुहर लगाएगा, फिर किसान के बैंक खाते की ओर सरकारी मुआवजे का सफर शुरू होगा और उस पर इसमें विधानसभा चुनाव की धूमधाम और आचार संहिता का हस्ताक्षेप है ही। इसलिए फसल नुकसान का पंचनामा कब होगा? पंचनामा हो गया तो मुआवजा कब मिलेगा? किसान इन सवालों का जवाब और सरकार से कार्रवाई चाहते हैं, लेकिन क्या विधानसभा चुनाव में व्यस्त हुक्मरानों को बर्बाद किसानों की ओर देखने की फुर्सत है? यदि अक्टूबर महीने के १५ दिनों में राज्य के केवल चार जिलों में ३० हजार हेक्टेयर फसल बारिश से बरबाद हो गई है, तो इससे पहले हुई भारी बारिश के चलते राज्य में फसल क्षति का प्रमाण कितना बड़ा होगा? लेकिन हुक्मरान इस बारे में सोचने को तैयार नहीं हैं। किसानों को न तो वाजिब मुआवजा मिला है और न ही फसल बीमा का पैसा। सुना है कि शिंदे सरकार ने बेमौसम और भारी बारिश से प्रभावित किसानों को सहायता प्रदान करने के लिए ‘जीआर’ जारी किया है। सवाल कागजी मदद का नहीं, बल्कि वास्तविक मदद का है। आचार संहिता से पहले विधानसभा सदस्यों को १०८ करोड़ रुपए बांटने में जैसी तत्परता शिंदे सरकार ने दिखाई, वैसी ही तत्परता उसे किसानों के नुकसान भरपाई के बाबत भी दिखानी चाहिए। आचार संहिता लागू होने के बाद भी महामंडलों में नियुक्तियों का सिलसिला जोशो-खरोश से जारी रखनेवाले सत्ताधारी क्या विदा होती बारिश से हुई फसल नुकसान के मुआवजे और पंचनामे पर भी यही जोशो-खरोश बनाए रखेंगे? मानसून लौट गया है, लेकिन यह बेमौसम मानसून आ गया है। खेती पर संकट कायम है, लेकिन सत्ताधारी सत्ता के खेल में मस्त हैं। मानसून अगले साल फिर आएगा, लेकिन यह तय है कि दिल्ली द्वारा महाराष्ट्र पर थोपा गया मौजूदा सरकारी संकट बेशक वापस नहीं आएगा। मानसून की तरह इस सरकार की भी विदाई यात्रा शुरू हो गई है।

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