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सरकार ने किया डॉक्टरों व पैरामेडिकल स्टॉफ का अनुबंध समाप्त …९०० से अधिक लाडली बहनें बेरोजगार!

कुल १८४० स्थायी पद हुए एक झटके में खत्म

धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
मुंबई और महाराष्ट्र समेत पूरे देश में बेरोजगारी की स्थिति गंभीर बनी हुई है। इस समय युवाओं को नौकरी के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। ऐसे में मनपा प्रशासन ने एक ही झटके में अनुबंध पर सेवारत करीब १,१०० डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टॉफ को बाहर का रास्ता दिखाने का पैâसला कर लिया है। इसमें करीब ७०-८० फीसदी लाडली बहनों का समावेश है, जो मनपा के इस पैâसले से बेरोजगार हो जाएंगी। दूसरी तरफ अनुबंध के आधार पर सेवारत सभी डॉक्टरों और कर्मियों का मनपा ने बीते दो महीनों का करीब ४.९६ करोड़ रुपए वेतन भी रोक रखा है। इससे उनके सामने घर-परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। इन सबके बीच यह भी जानकारी सामने आई है कि मनपा के प्रमुख और उपनगरीय अस्पतालों में करीब १,८४० स्थाई पदों को भी खत्म कर दिया गया। ऐसे में अब अन्य कर्मचारियों पर काम का अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा। इससे स्वास्थ्य सेवाओं के चरमराने का भी संकट पैदा हो गया है।
उल्लेखनीय है कि मुंबई मनपा के केईएम, सायन, नायर और कूपर जैसे प्रमुख अस्पतालों के साथ ही १६ उपनगरीय, २७ प्रसूति, ५ विशेष अस्पतालों में हजारों की संख्या में मरीज इलाज कराने के लिए जाते हैं। मनपा के केईएम, सायन और नायर जैसे बड़े अस्पतालों में मुंबई और महाराष्ट्र से ही नहीं, बल्कि देश के विभिन्न राज्यों से मरीज आकर उपचार कराते हैं। इतनी ख्याति होने के बावजूद मनपा अस्पताल दुर्दशा की मार झेल रहे हैं। इसी में अब यह दुर्दशा और बढ़ने की संभावना प्रबल हो गई है। सूत्रों के मुताबिक, मनपा के प्रमुख, उपनगरीय, प्रसूति अस्पतालों, दवाखानों में अनुबंध के आधार पर सेवारत १,१०० डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टॉफ को सेवा से हटाने का पैâसला किया गया है। ऐसे में एक तो पहले से ही मानव बल की कमी से जूझ रहे अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएं और गंभीर हो सकती हैं। इतना ही नहीं अन्य स्वास्थ्य कर्मियों पर काम का बोझ बढ़ जाएगा। इससे वे मानसिक तनाव में जा सकते हैं। साथ ही इससे मरीजों के इजाल और देखभाल पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
दीवाली हुई काली
टेक्निशियन सुमन यादव ने कहा कि १४ सितंबर को हमारा अनुबंध खत्म हो गया। इसके बाद मनपा प्रशासन की तरफ से कहा गया कि छह महीने के लिए अनुबंध को बढ़ाया जाएगा। इसके लिए एक महीने पहले ही हम सभी का बाकायदा साक्षात्कार लिया गया। हम अब तक काम कर रहे हैं। हालांकि, अब अचानक कह दिया गया है कि काम पर नहीं रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि अगस्त से दो महीनों का वेतन नहीं मिला है। इससे घर-परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। इसमें कई महिला कर्मचारी भी हैं। एक जगह सरकार महिला सशक्तिकरण की बात कर रही है। दूसरी तरफ उन्हें ही नौकरी से निकाल रहे हैं।
तंगी से जूझ रहे कर्मचारी
टेक्निशियन निखिल घाणेकर ने कहा कि मनपा प्रशासन के इस पैâसले ने हम सभी की दीवाली काली कर दी है। उन्होंने कहा कि अब हमारे सामने घर चलाने का संकट पैदा हो गया है। नौकरी से बाहर किए गए, इनमें से कई को ईएमआई का हफ्ता भरना होता है। कई के बच्चों की पढ़ाई के साथ ही स्कूल की फीस भरनी होती है। माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों की दवाइयों आदि पर अधिक खर्च होते हैं। ऐसे में नौकरी जाने से हम सभी पर आर्थिक तंगी का संकट खड़ा हो गया है।
कौन करेगा इलाज  
आरटीआई एक्टिविस्ट चेतन कोठारी ने कहा कि मनपा अस्पताल के अन्य कर्मचारी काम के कारण अत्याधिक तनाव में हैं। उन्होंने विभागों के काम के घंटे कम करने शुरू कर दिए हैं। कुछ विभाग बंद होने के कगार पर हैं। इससे आम जनता को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उच्च अधिकारियों के इस आदेश के कारण अस्पताल प्रमुख निराश हैं। लगभग हर रोज सीएमएस उच्च अधिकारियों से झगड़ रहे हैं, लेकिन वे झुकने को तैयार नहीं हैं। यदि बाल रोग विशेषज्ञ को हटा दिया जाता है, तो एनआईसीयू अथवा पीआईसीयू की देखभाल कौन करेगा।
प्रमुख अस्पतालों के निदेशक को नहीं है जानकारी
मनपा द्वारा अनुबंध पर नियुक्त लाडली बहनों समेत करीब १,१०० लोगों बेरोजगार किए जाने के बारे में जब प्रमुख अस्पतालों की निदेशक डॉ. नीलम आंद्राडे से पूछा गया तो उन्होंने इस बारे में किसी भी तरह की जानकारी न होने की बात कही। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सभी अस्पतालों के डीन से बात करने के बाद ही सटीक जानकारी दे सकूंगी।

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