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संपादकीय : मां यमाई के नाम से भला हो!

देश का संविधान धर्मनिरपेक्ष है, लेकिन मोदी-शाह का शासन आने के बाद से संविधान धर्मनिरपेक्ष नहीं रह गया है, रिटायर होने के करीब पहुंचे मुख्य न्यायाधीश ने खुद इस बात का खुलासा किया है। पिछले १० वर्षों में न्यायपालिका में गड़बड़ी रही है और इस महकमे के बड़े लोग इसमें शामिल रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने पुणे जिले के अपने कन्हेरसर गांव जाकर ग्राम देवता के दर्शन किए और कहा, ‘गांव की यमाई देवी की कृपा से मैं सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बना हूं।’ चंद्रचूड़ ने एक तरह से कानून और न्याय से जुड़े कर्तव्यनिष्ठ लोगों और उनकी क्षमता पर संदेह पैदा किया। कानून के क्षेत्र में उनके सहकर्मियों का मानना ​​था कि चंद्रचूड़ अपने अनुभव, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठता के कारण मुख्य न्यायाधीश के पद तक पहुंचे, लेकिन देश के सामने एक अलग जानकारी सामने आई कि वे अपने गांव की देवी के प्रति श्रद्धा की वजह से सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पद तक पहुंचे। चंद्रचूड़ साहब रोज पूजा करते हैं और इसमें कुछ भी गलत नहीं है। हाल ही में देखा गया कि कुछ जज माथे पर टीका, चंदन आदि लगाकर न्यायासन पर बैठते हैं। पिछले कुछ वर्षों में न्याय क्षेत्र में एक खास विचारधारा के लोगों की बड़े पैमाने पर भर्ती हुई है। इसलिए हमारी अदालतें भी कई धार्मिक देशों की न्यायिक प्रणालियों की तरह व्यवहार कर रही हैं। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री राज चलाते समय खुलेआम हिंदू और मुसलमानों के बीच भेदभाव करते हैं। यदि बलात्कारी हिंदू है और पीड़िता मुस्लिम है, तो पीड़िता सरकार की लाडली बहन नहीं होती, लेकिन बलात्कार करने वाले गिरोहों को माफ कर दिया जाता है और सम्मानित किया जाता है, पिछले दस वर्षों में ऐसे कई उदाहरण हैं। क्या न्याय कानून द्वारा, संविधान की धाराओं के अनुसार किया जाता है? जजों को अब इस बारे में अपने-अपने भगवान से ही पूछना चाहिए। चंद्रचूड़ साहब ने वो रास्ता दिखाया है। चीफ जस्टिस कहते हैं, ‘जब बाबरी केस, अयोध्या में राम मंदिर का मामला मेरे सामने आया तो मैं भगवान के सामने बैठा। मैंने भगवान से इस मामले को सुलझाने की प्रार्थना की। मैंने भगवान से कहा, ‘अब आपको ही कोई समाधान निकालना होगा।’ चीफ जस्टिस किस भगवान के समक्ष प्रार्थना के लिए बैठे? विष्णु के तेरहवें अवतार या चौदहवें अवतार के सामने? समाधान के बाद अयोध्या में राम मंदिर तो खड़ा हो गया, लेकिन ये तय है कि लोकसभा चुनाव में तेरहवें अवतार से मंदिर के भगवान श्रीराम खुश नहीं हुए। कोर्ट को आस्था के मामले में नहीं पड़ना चाहिए। यहां कानून के प्रावधान अप्रभावी हो जाते हैं। अयोध्या के राम मंदिर के लिए बड़ा संघर्ष हुआ। सरयू खून से लाल हो गई। इसे लाल करने वाले मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री मोदी ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया। ये भाजपा की आस्था का हिस्सा है। इन सभी चर्चाओं का सारांश या ‘जजमेंट’ यह है कि ईश्वर की कृपा से भारत में न्यायदान चल रहा है। किसी एक महत्वपूर्ण मामले में, न्यायाधीश ध्यानमग्न होकर भगवान के समक्ष बैठता है और भगवान की इच्छा के अनुसार कार्य करता है। शायद यही कारण है कि जज की मेज पर रखी संविधान की किताब न्यायदेवता की आंखों की पट्टी हटाकर अब उनके हाथों में सौंप दी गई है। न्याय की देवी निर्जीव है और उनके हाथों संविधान देकर क्या हासिल हुआ? न्याय की देवी के हाथ में तलवार थी। इसे अब मुख्य न्यायाधीश ने हटा दिया है। उस हाथ में मशाल ज्यादा अच्छी लगती। यह मशाल न्याय के क्षेत्र में जो अंधकार पैâला है उसे जलाने का काम करती। चीफ जस्टिस ने अपनी श्रद्धा से ये बदलाव किए। दुनिया श्रद्धा व विश्वास पर चलती है, लेकिन क्या न्याय श्रद्धा व विश्वास पर चल सकता है? भारतीयों को विश्वास था कि हमारी न्यायपालिका निष्पक्ष है, वह विश्वास अब नष्ट हो चुका है। अदालत को समझना चाहिए कि हम ज्ञान और विज्ञानवादी हैं। महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था, ‘हम दुनिया को नहीं चलाते हैं। यह खुद ही चलती है और हम इसे चलाने का एक हिस्सा होते हैं।’ आइंस्टीन का मानना ​​था कि ईश्वर इस ब्रह्मांड के साथ जुआ नहीं खेलता? साथ ही, आइंस्टीन का दृढ़ मत था कि ईश्वर मानवजाति को इस भूतल के साथ जुआ खेलने की अनुमति नहीं देंगे, लेकिन हमारे सर्वोच्च न्यायालय आइंस्टीन के मार्ग पर चलने के बजाय तेरहवें अवतार की इच्छा पर कार्य करते हैं। यमाई देवी की कृपा से माननीय चंद्रचूड़ मुख्य न्यायाधीश बने। देवी की कृपा और आस्था से उन्होंने न्याय दिया, लेकिन यही न्याय सच्चाई और ईमानदारी में बाधक क्यों बन गया? महाराष्ट्र में एक असंवैधानिक, अवैध, भ्रष्ट मार्ग से बनाई गई सरकार को अभय देकर चलाने की प्रेरणा किसने दी? ढाई साल तक मामला महज तारीखों के चक्कर में फंसा रहा। शिवसेना नाम, धनुष-बाण जैसा चिह्न भी महाराष्ट्र के लोगों की श्रद्धा व विश्वास था। क्या देवी ने मुख्य न्यायाधीश को यह ज्ञान नहीं दिया कि संविधान की दसवीं अनुसूची का सम्मान रखते हुए न्याय किया जाना चाहिए या फिर तेरहवें अवतार के आदेश देवी की श्रद्धा व विश्वास पर भारी पड़े? यदि ईश्वर का न्याय गद्दारों और बेईमानों के पक्ष में है, तो कोई भी महाभारत के धर्म-अधर्म युद्ध और रामायण के राम-रावण युद्ध पर विश्वास नहीं करेगा। अगर यमाई देवी मुख्य न्यायाधीश को कौल (ईश्वरीय आज्ञा) देती हैं तो हम महाराष्ट्र के स्वाभिमान का मुकदमा यमाई देवी के मंदिर में चलाने के लिए तैयार हैं। चाहते हैं कि रिटायरमेंट के बाद चीफ जस्टिस इस मामले के वकील बनें। बताइए, क्या आप तैयार हैं?

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