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संपादकीय : ‘मस्ती’ पर भी ‘गश्त’ जरूरी है…चीनियों से समझौता!

हिंदुस्थान और चीन के बीच सीमा मुद्दे पर अचानक सहमति बन गई है, समझौता हो गया है। हिंदुस्थान के साथ तनाव कम करना, यह चीन की सद्ब्रुद्धि है या ग्लानि, लेकिन अचानक ऐसा वैâसे हो गया, वैश्विक स्तर पर इस बात को लेकर बहस हो रही है। कपटनीति के लिए कुख्यात चीन के इस समझौते के पीछे कोई धूर्त चाल तो नहीं, इस बाबत संदेह की गुंजाइश जरूर है। इसका कारण चीन का विश्वासघाती इतिहास है। चीन का व्यवहार हमेशा से इस कहावत जैसा रहा है कि ‘दिखाने के दांत अलग होते हैं और खाने के अलग।’ एक ओर दोस्ती का नाटक कर गाफिल रखना और दूसरी ओर विश्वासघात करके पीठ में छुरा घोंपना, चीन की विदेश नीति का मुख्य सूत्र रहा है। १९६२ के युद्ध में हिंदुस्थान को चीन की इस धोखेबाजी का कड़वा अनुभव हुआ था। ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ का नारा लगाते हुए चीनियों ने हिंदुस्थान को दोस्ती के जाल में खींच लिया और अचानक हमला कर दोस्ती के नाते का गला काट दिया। पहले असावधान करने और फिर जोरदार हमला करने की चीन की युद्ध रणनीति को देखते हुए हिंदुस्थान के साथ नए समझौते पर सावधानी से विचार किया जाना चाहिए। हिंदुस्थान और चीन के बीच नए द्विपक्षीय समझौते के मुताबिक, दोनों देशों की सेना बफर जोन से पीछे हट जाएंगी। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच युद्धजन्य संघर्ष की स्थिति पैदा हो गई थी, अब तनाव दूर करने पर भी दोनों देशों के बीच सहमति बन गई है। रूस के कजान शहर में ब्रिक्स सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता में दोनों नेताओं ने इस समझौते पर मुहर लगाई। १५ जून, २०२० को चीनी सैनिकों द्वारा हिंदुस्थानी क्षेत्र के गलवान घाटी में घुसपैठ से दोनों देशों के बीच संबंध तनावपूर्ण बन गए थे। इस घुसपैठ के बाद विस्तारवाद की राक्षसी महत्वाकांक्षा से ग्रस्त चीन ने हिंदुस्थान क्षेत्र के छह हिस्सों पर भारी अतिक्रमण कर वहां चीनी सैनिकों का एक बड़ा अड्डा स्थापित कर दिया था। अब हिंदुस्थान और चीन के बीच हुए नए समझौते के मुताबिक, दोनों देशों की सेनाएं जून २०२० से पहले जहां थीं, वहीं वापस जाएंगी। इसका दूसरा अर्थ यह है कि चीन को अब उन छह क्षेत्रों से हटना होगा, जहां चीन ने बड़े पैमाने पर घुसपैठ की थी और इसका तीसरा अर्थ यह है कि चीनी सैनिकों ने पूर्वी लद्दाख की ओर से हिंदुस्थानी क्षेत्र में घुसपैठ की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घुसपैठ का सच देश से छुपाने के लिए जो डींगें हांकी थीं कि ऐसी कोई घुसपैठ हुई ही नहीं, उसका क्या? हिंदुस्थान-चीन सीमा पर २०२० से पहले की स्थिति बहाल करने का मतलब यही है कि उस वक्त चीन ने घुसपैठ की थी, यह अप्रत्यक्ष रूप से ही सही, इसे स्वीकार करने जैसा है। ब्राजील, रूस, हिंदुस्थान, चीन और अफ्रीका के ब्रिक्स देशों के सम्मेलन के मौके पर करीब ५ साल बाद शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री मोदी के बीच करीब ५० मिनट तक द्विपक्षीय बातचीत हुई। दोनों नेताओं ने उम्मीद जताई कि सीमा पर तनाव कम करने के लिए दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों की भूमिका अहम है और उनकी अगली बैठक तयशुदा वक्त पर होगी। दोनों नेताओं ने पूर्वी लद्दाख की सीमा पर गश्त के बाबत भी एक समझौते पर मुहर लगाई। हालांकि, हिंदुस्थान और चीन के बीच ३,५०० किमी लंबी सीमा पर तनाव कम करने के लिए दोनों देशों के बीच हुआ समझौता स्वागतयोग्य है, लेकिन इस समझौते से तुरंत खुशी के लड्डू बांटने की जरूरत नहीं है। चीन पर तब तक भरोसा नहीं किया जा सकता जब तक चीनी सेना घुसपैठ किए गए इलाकों से वापस २०२० से पहले वाले ठिकाने, यानी हिंदुस्थानी क्षेत्र के बाहर नहीं चली जाती। सीमा पर निगरानी रखने के लिए गश्त पर सहमति बन भी गई हो तो चीन की मस्ती को नजरअंदाज कर बात नहीं बनेगी। ‘मुंह में एक और पेट में एक’ की कपटनीति पर चलनेवाले चीन को सीमा पर तनाव को कम करने को लेकर ग्लानि हुई है, यह संदिग्ध है। अपनी सेना हटाते समय चीन के इरादों को पहचानकर ही सावधानीपूर्वक कदम उठाना चाहिए!

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