विजय कपूर
हालांकि चुनाव जीतने के लिए कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो हरसंभव हथकंडे अपना रहे हैं, जिनमें भारत से दुश्मनी, खालिस्तान समर्थकों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करना से लेकर इमीग्रेशन लक्ष्य में २१ प्रतिशत की जबरदस्त कटौती आदि तक शामिल हैं। लेकिन उनकी लोकप्रियता का ग्राफ लगातार नीचे गिरता जा रहा है, जिसकी वजह से उनकी अपनी ही लिबरल पार्टी के २४ सांसदों ने उनके खिलाफ बगावत कर दी है और उन्हें अल्टीमेटम दिया है कि वह २८ अक्टूबर २०२४ तक अपने पद से इस्तीफा दे दें अन्यथा उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। जस्टिन ट्रूडो के खराब प्रदर्शन के विरुद्ध लिबरल पार्टी के अंदर व बाहर असंतोष निरंतर बढ़ता जा रहा है। इसके बावजूद वह इस जिद पर अड़े हुए हैं कि आगामी आम चुनाव में वह ही लिबरल पार्टी का नेतृत्व करेंगे। कनाडा में हाउस ऑफ कॉमंस के सदस्य चुनने के लिए २० अक्टूबर २०२५ को या उससे पहले ४५वें फेडरल चुनाव होने हैं।
फिलहाल सभी संकेत यही हैं कि अगर सत्तारूढ़ लिबरल पार्टी का नेतृत्व जस्टिन ट्रूडो ही करते हैं, तो आधिकारिक विपक्ष कंजर्वेटिव्स ऑफ पिअर पोइलेव्रे आसानी से चुनाव जीत जाएगा। सीबीसी (वैâनेडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन) ओपिनियन पोल्स दिखा रहे हैं कि विपक्ष सत्तारूढ़ पार्टी से २० प्रतिशत बढ़त बनाए हुए है। कनाडा के पिछले १०० वर्ष के इतिहास में किसी भी प्रधानमंत्री ने लगातार चार बार सत्ता नहीं संभाली है। इस पृष्ठभूमि में लिबरल पार्टी के १५३ सांसदों में से २४ ने एक पत्र पर हस्ताक्षर करके जस्टिन ट्रूडो को अपने पद से इस्तीफा देने के लिए कहा है और साथ ही २८ अक्टूबर तक ऐसा न करने पर गंभीर परिणामों का अल्टीमेटम भी दिया है। लिबरल पार्टी के विद्रोही गुट की बैठक में कुछ सांसदों ने खुलकर कहा कि जस्टिन ट्रूडो अपना भविष्य खुद तय कर लें कि वह पद से हटने के बाद क्या करेंगे?
दूसरी ओर जस्टिन ट्रूडो ने कहा है, ‘अगले चुनाव में विपक्ष का मुकाबला करने का सबसे अच्छा तरीका क्या होगा, इस पर हम अच्छी अर्थपूर्ण वार्ता करते रहेंगे, लेकिन यह सब मेरे ही नेतृत्व में होगा और अपनी पार्टी का चुनावों में नेतृत्व भी मैं ही करूंगा। लिबरल पार्टी के भीतर हमने हमेशा अच्छी वार्ता की है। हम बहुत बड़ी पार्टी हैं और पार्टी के भीतर हमेशा से ही अलग-अलग राय रही हैं।’ जस्टिन ट्रूडो की परफॉर्मेंस की न सिर्फ विपक्ष आलोचना कर रहा है, बल्कि उनकी पार्टी के भीतर भी उनकी कड़ी आलोचना हो रही है। उन पर आरोप है कि वह कनाडा के चुनाव में चीन के हस्तक्षेप पर तो खामोश हैं, लेकिन बिना किसी साक्ष्य के भारत पर आरोप लगा रहे हैं कि वह कनाडा के अंदरूनी मामलों में दखल दे रहा है।
जस्टिन ट्रूडो ने हाल ही में भारत पर आरोप लगाया, बिना कोई साक्ष्य उपलब्ध कराए कि उसने कनाडाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या कराई, जो कि खालिस्तान का समर्थक था और भारत में वांटेड था। लिबरल पार्टी के भीतर भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जिनका मानना है कि जस्टिन ट्रूडो अपनी निरंतर गिरती ख्याति से ध्यान भटकाने के लिए भारत विरोधी रुख अपनाए हुए हैं। इसके अतिरिक्त जस्टिन ट्रूडो को लगता है कि निज्जर हत्याकांड में भारत को कटघरे में खड़ा करके उन्हें कनाडा की जनसंख्या में जो २.१ प्रतिशत सिख हैं, उनका समर्थन मिल जाएगा। ध्यान रहे कि कनाडा के कई प्रांतों, विशेषकर ब्रिटिश कोलंबिया में सिखों की वोट का अच्छा-खासा महत्व है। कनाडा से वापस बुलाए गए भारतीय उच्चायुक्त संजय वर्मा का भी कहना है कि जस्टिन ट्रूडो राजनीतिक लाभ के लिए खालिस्तानी तत्वों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। वर्मा ने जस्टिन ट्रूडो पर सीधा हमला करते हुए कहा है कि वह खालिस्तानी तत्वों का समर्थन कर रहे हैं और अलगाववादी अपराधियों के विरुद्ध कार्रवाई न करने का अर्थ यह है कि वह आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि जस्टिन ट्रूडो को अपनी चुनावी सफलता के लिए सिखों का समर्थन तो चाहिए, लेकिन अब वह कनाडा में अधिक सिखों को आमंत्रित नहीं करना चाहते हैं। हालांकि कनाडा सरकार ने अपनी इमीग्रेशन नीति में किसी धर्म विशेष का नाम तो नहीं लिया है, लेकिन इस नीति में परिवर्तन से भारत के पंजाब पर गहरा असर पड़ सकता है, जहां सिख समुदाय बहुसंख्या में है और जहां से अधिकतर लोग अपनी रोजी-रोटी के लिए कनाडा का रुख करते हैं। कनाडा ने २ नवंबर २०२२ को अपनी वार्षिक इमीग्रेशन योजना की घोषणा करते हुए अपने दरवाजे पूरी तरह से खोल दिए थे कि वह तीन वर्ष की अवधि (२०२३-२०२५) में १४.५ लाख लोगों को स्थायी नागरिकता प्रदान करेगा। लेकिन २४ अक्टूबर २०२४ को उसने अपना वेलकम मैट वापस लपेटने की घोषणा की। कनाडा ने कहा है कि वह २०२५ से शुरू होने वाले अगले तीन वर्षों के दौरान सिर्फ ११.४ लाख लोगों को स्थायी नागरिकता प्रदान करेगा यानी तुलनात्मक दृष्टि से २१ प्रतिशत की कटौती की गई है। हाल के वर्षों में कनाडा की जनसंख्या में जबरदस्त वृद्धि हुई है कि अप्रैल २०२४ में जनसंख्या ४१ मिलियन हो गई थी। साल २०२३ में जो जनसंख्या वृद्धि हुई है, उसमें इमीग्रेशन का योगदान लगभग ९९ प्रतिशत है, जिसमें से ६० प्रतिशत अस्थायी रिहाइश के कारण है।
इमीग्रेशन नीति में परिवर्तन को आगामी चुनावों से अलग हटकर नहीं देखना चाहिए। जस्टिन ट्रूडो का कहना है कि अनेक कॉरपोरेट कंपनियां कनाडा की अस्थायी रिहाइशी व्यवस्था का दुरुपयोग कर रही है, विदेशी वर्कर्स को रोजगार दे रही हैं, उनका शोषण कर रही हैं और उचित वेतन देने से बचने के लिए कनाडाई नागरिकों को रोजगार देने से इनकार कर रही हैं। यह सब प्रांतों की नाक के नीचे हो रहा है। कुछ कॉलेज व विश्वविद्यालय अपनी जेबें भरने के लिए अत्यधिक अंतर्राष्ट्रीय छात्र ला रहे हैं, जिससे समुदायों पर बोझ बढ़ता जा रहा है। जस्टिन ट्रूडो के अनुसार यह अस्वीकार्य है और इसे बदलना जरूरी है।
भारत का विरोध करके, खालिस्तानी तत्वों का समर्थन करके और दोनों स्थायी व अस्थायी इमीग्रेशन लक्ष्यों में कटौती करके भी जस्टिन ट्रूडो अपनी कुर्सी अगले चुनाव में बचा पाएंगे या नहीं, कहना कठिन है। लेकिन वर्तमान में सारे संकेत उनके विरोध में हैं। ऐसी भी संभावनाएं बढ़ती जा रही हैं कि जस्टिन ट्रूडो अपना वर्तमान कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिए जाएं। कनाडाई मीडिया की रिपोर्टों से मालूम होता है कि लिबरल पार्टी के भीतर जो जस्टिन ट्रूडो विरोधी खेमा है, वह उन्हें हटाने के लिए कई सप्ताह से गुप्त बैठकें कर रहा था और यह भी कि अगले वर्ष के चुनाव में पार्टी का नेतृत्व करने के लिए नए नेता की घोषणा कर दी जाए।
लिबरल पार्टी के तीन सांसदों ने तो सार्वजनिक तौर पर कहा है कि जस्टिन ट्रूडो से इस्तीफा मांगने के पत्र पर उन्होंने हस्ताक्षर किए हैं। इनमें से एक का कहना है कि जस्टिन ट्रूडो का भविष्य तय करने के लिए पार्टी में गुप्त मतदान किया जाए। पार्टी के भीतर मतदान के लिए इन विद्रोही सांसदों को अतिरिक्त समर्थन की जरूरत है। लेकिन उन्होंने कहा है कि अगर प्रधानमंत्री के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव आता है तो वह जस्टिन ट्रूडो के विरुद्ध वोट करेंगे। दरअसल, जस्टिन ट्रूडो अपने ही बुने जाल में फंस गए हैं, जिससे उनका बाहर निकलना मुश्किल लगता है।
(लेखक सम-सामयिक विषयों के विश्लेषक हैं)