मुख्यपृष्ठअपराधमुंबई का माफियानामा : ‘मटके’ में हत्या

मुंबई का माफियानामा : ‘मटके’ में हत्या

विवेक अग्रवाल

हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।

वसंत भवानजी शाह, उम्र ३८ साल दादर के भगत ज्वैलर्स के मालिक। १२ जनवरी १९९८ की रात ९.२० बजे रोजाना की तरह उन्होंने मारूति कार इमारत में खड़ी की। वे खुद कार चलाकर आए थे। कार का दरवाजा खोल कर वे बाहर निकले और लिफ्ट की तरफ चल दिए। वहां पहले से इंतजार करते तीन यमदूत उनके सिर पर आ सवार हुए। उनके हाथों में दो पिस्तौल और एक रिवाल्वर चमक उठीं। उनके दहानों ने आग उगली। पल भर में कुल १४ गोलियां वसंत के शरीर में जा धंसीं। क्षण में निस्तेज शरीर जमीन पर जा गिरा। कुछ लोग गोलियों की आवाज सुन कर उस तरफ भागे आए। तीनों हत्यारे वहां से भाग निकले। वसंत को तुरंत करीब स्थित पोद्दार अस्पताल ले गए, लेकिन तब तक उनकी मौत हो चुकी थी।
वर्ली थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी एसटी ने बताया कि वसंत शाह को गवली गिरोह ने हफ्ते के लिए धमकाया था। वसंत मटका कारोबार में थे, जिसमें पांच भागीदार थे। उनकी भागीदारी कुछ समय पहले ही टूट गई थी। पुलिस को शक था कि उसके किसी विरोधी ने हत्या कराई होगी।
पुलिस जांच बढ़ी तो एक-एक कर रहस्यों से परदा उठने लगा। पता चला कि मटका कारोबार पर कब्जे के लिए हत्या हुई है। वसंत ‘कल्याण मटका’ के जनक कल्याणजी भगत की दूसरी बीवी का बेटा था।
पुलिस ने वसंत हत्याकांड में कच्छ के मूल निवासी ३५ वर्षीय नवीनचंद्र हीरजी सावला उर्फ पप्पू बोरीवली को गिरफ्तार किया। पुलिस का दावा था कि पप्पू के गवली गिरोह से गहरे ताल्लुकात हैं। सुपारी देकर उसी ने हत्या करवाई है। पुलिस ने दावा किया कि ये सुपारी सीधे अरुण गवली को दी गई है। पप्पू भी ‘स्टार मटका’ में वसंत का भागीदार था। अमदाबाद इलाके की कमाई पर नियंत्रण को लेकर उनमें विवाद था।
रतन खत्री का एक मटका ऑपरेटर प्रशांत वैद्य था। उसने पप्पू से हाथ मिला लिया था। उसी ने पप्पू को वसंत से अलग करवाया था। उसी ने पप्पू को अलग मटका कारोबार स्थापित करवाया। उसी ने पुलिस को मोटी रिश्वत देकर वसंत का स्टार मटका बंद करवाने की साजिश रची। उसी ने वहां कई छापे पड़वाए। पुलिस ने दावा किया कि जब उसकी मर्जी के मुताबिक काम न हो सका तो हताश पप्पू ने वसंत की सुपारी उठा दी।
प्रशांत वैद्य को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया। उनके भागीदार सूर्यकांत को घाटकोपर से पकड़ा। १८ जनवरी १९९८ को पुलिस ने वसंत के सौतेले भाई विनोद भगत को भी धर दबोचा। तत्कालीन पुलिस उपायुक्त जोन ३, सुनील पारस्कर के मुताबिक, विनोद के साथ मधुकर प्रभु को पकड़ा है। तब कल्याण मटका अमदाबाद से चल रहा था। मुंबई में पुलिस का दबाव बढ़ा तो विनोद भी अमदाबाद चला गया था।
पुलिस ने दावा किया कि कल्याण की मौत के बाद मटके पर वसंत ने कब्जा कर लिया। विनोद भी धंधे में रहना चाहता था। गुस्से में उसने पुलिस को सूचना देकर वसंत के मटके पर कई बार छापे डलवाए। वसंत को धमकी के फोन भी आते थे, फिर भी उसका मटका चालू रहा। इससे विनोद परेशान हो चला। उसने दगड़ी चाल में वसंत की सुपारी दे डाली।
पुलिस ने दावा किया कि विनोद ने सुपारी देना तो स्वीकार किया, लेकिन डराने के लिए, हत्या के लिए नहीं। पारस्कर कहते है कि ‘उस पर भरोसा करना मुश्किल है। जांच जारी है।’ जांच हुई। आरोप पत्र दाखिल हुआ। मुकदमा चला। कुछ आरोपी छूटे, कुछ को सजा हुई। लेकिन वसंत की हत्या के असली मास्टरमाइंड, असली कारण, असली हत्यारों का आज तक पता न चला।
बस पता चला तो इतना कि मटके में माफिया का पहला दखल और पहली हत्या का यह मामला बन गया।
स्याह सायों के संसार में यह कहावत खूब चलती है-
‘पैसा फेंक, तमाशा देख’
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)

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