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संपादकीय : ‘शून्य विपक्ष सिक्किम’ …‘ऑक्टोप्सी’ एजेंडा!

पिछले कुछ वर्षों में हमारी राजनीति में इतनी अनिश्चितता आ गई है कि कोई गारंटी नहीं दे सकता कि अगले पल भी मौजूदा राजनीतिक हालात वैसे ही रहेंगे। गल्ली से लेकर दिल्ली तक राजनीति बेहद उतार-चढ़ाव भरी हो गई है। जब से देश में मोदी शासन आया है, ‘विपक्ष मुक्त राजनीति’ उनकी सत्ता का एजेंडा बन गया है। बेशक, पूर्वी राज्य सिक्किम अब देश के पहले शून्य विपक्ष राज्य के रूप में दर्ज हो गया है। सिक्किम में दो सीटों पर उपचुनाव होने थे। इन दोनों सीटों पर मुख्य विपक्षी पार्टी सिक्किम डेमोक्रेटिक प्रâंट ने अपने उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि, इन दोनों उम्मीदवारों के आवेदन अयोग्य घोषित किए जाने के कारण सत्तारूढ़ सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के दोनों उम्मीदवार निर्विरोध चुने गए। विपक्षी उम्मीदवारों के नाम प्रेम बहादुर भंडारी और डैनियल राय हैं, जबकि मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग के बेटे आदित्य गोले और सतीश चंद्र राय सत्तारूढ़ पार्टी के विजेता उम्मीदवार हैं। अब कहा जा रहा है कि भंडारी और राय दोनों के आवेदन तब खारिज कर दिए गए जब उनके आवेदनों के सत्यापन से पता चला कि उनके पास पर्याप्त संख्या में प्रस्तावक नहीं थे। वहीं तीसरे उम्मीदवार पोबिन हंग सुब्बा का आवेदन अधूरे शपथ पत्र के कारण खारिज कर दिया गया। भले ही आवेदन अस्वीकृत करने के कारण तकनीकी वजह रही हो, लेकिन अब सिक्किम विधानसभा में कोई भी विपक्षी विधायक नहीं होगा। उपचुनाव में हुए इन नाटकीय घटनाक्रम के कारण अब मुख्य विपक्षी दल सिक्किम डेमोक्रेटिक प्रâंट विधानसभा में समाप्तप्राय है। विधानसभा के कुल ३२ विधायक अब सत्तारूढ़ सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के होंगे। जून में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी ने ३२ में से ३१ सीटें जीतीं, जबकि विपक्षी सिक्किम डेमोक्रेटिक प्रâंट के तेज सिंह नोरबू लम्था एकमात्र विधायक चुने गए थे, लेकिन जुलाई में वह भी सत्ताधारी पार्टी में शामिल हो गए। हमेशा की तरह इस दलबदल को ‘मतदाता अनुमोदन’ का मुखौटा लगा दिया गया। अत: सिक्किम विधान सभा तभी विपक्ष-मुक्त हो गई। अब दो जगहों पर उपचुनाव की घोषणा की गई थी। विपक्षी सिक्किम डेमोक्रेटिक प्रâंट ने दोनों सीटों पर उम्मीदवार उतारे। इसलिए ऐसी संभावना थी कि विधानसभा में विपक्षी दल की कम से कम धाक बनी रहेगी, लेकिन विपक्षी उम्मीदवारों के आवेदन खारिज होने के बाद यह संभावना भी खत्म हो गई। इसे लेकर अब विपक्ष ने सत्ता पक्ष की आलोचना की है। इसे लोकतंत्र पर हमला बताया जा रहा है। हालांकि, यह सब सच है, लेकिन जब से मोदी शासन आया है, और क्या हो रहा है? इसी तरह से देश के हर राज्य को ‘सिक्किम’ में तब्दील करने की कोशिश में है। जिन राज्यों में भाजपा का शासन नहीं है उन राज्यों में सत्ताधारी पक्ष को तोड़कर वहां भाजपा की सत्ता स्थापित करना और भाजपा शासित राज्यों में प्रमुख विपक्षी दलों को तोड़-फोड़ कर संभव हो तो विपक्ष को खत्म करने का कार्य चल रहा है। पिछले दस सालों में भाजपा की नीति यही रही है। उससे भाजपा ‘आयाराम-गयाराम’ का ‘गोदाम’ बन गई। यह भ्रष्ट विपक्षी नेताओं के लिए ‘वॉशिंग मशीन’ बन गई है। इसके बावजूद कई राज्यों और लोकसभा चुनावों में भाजपा बहुमत से दूर रही। ‘विपक्ष-मुक्त’ राज्य का सपना देखनेवाली भाजपा को केंद्रीय सत्ता के लिए दो टेकुओं पर निर्भर रहना पड़ा, लेकिन अब पूरे राज्य विधानसभा के ‘शून्य विपक्ष’ होने का ‘चमत्कार’ छोटे से पूर्वी राज्य सिक्किम में हुआ है। हालांकि, यह भाजपा ने नहीं किया, ‘शून्य विपक्ष सिक्किम’ का चमत्कार भाजपा के ही एनडीए गठबंधन के घटक दल सत्ताधारी ‘सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा’ ने कर दिखाया है। यह भाजपा के ‘ऑक्टोप्सी’ एजेंडे का जहरीला फल है। हालांकि, भले ही यह पूर्व के एक छोटे से राज्य में लगा, लेकिन भारतीय लोकतंत्र के सामने जो प्रश्नचिह्न खड़ा हुआ है, वह बहुत बड़ा है!

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