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वीकेंड वार्ता : मत बांटो इंसान को…

एम.एम. सिंह

‘अपना त्योहार अपनों से व्यवहार’
‘दीपावली की खरीदी उनसे करें,
जो आपकी खरीदी से दीपावली मना सकें’
मध्य प्रदेश के अलग-अलग इलाके उपर लिखे गए हर्फों में लिखे गए बड़े-बड़े बैनरों पटे हुए हैं। बैनरों में लिखी गई पंक्तियां एक जैसी ही हैं, लेकिन बैनरों को लगानेवाली संस्थाओं के नाम अलग-अलग हैं। कई स्थानों पर बजरंग दल ने ये बैनर लगाए हैं तो कई स्थानों पर भारत रक्षा मंच ने। एक पोस्टर में श्रीमती कविता नरेंद्र यादव का नाम छपा है जो श्यामगढ़ की नगर परिषद अध्यक्ष हैं। कुछ इससे मिलता-जुलता टेक्स्ट बस्ती के एक भारतीय जनता पार्टी के नेता ने ट्वीट किया है। उन्होंने सतातनी लोगों से आग्रह किया है कि दीवापली के पवित्र पर्व में खरीददारी सनातनी भाइयों की दुकानों से ही करें।
ऐसे काफी मजमून मौजूदा जमाने के एक तथाकथित हिंदुत्ववादी नेताओं के हैं। इन मैसेज से तो ‘बंटोगे तो कटोगे’ अपने चरम पर दिखाई देने के सारे लक्षण दिखाई देने लगे हैं!
सबसे बड़ी बात है कि सामाजिक समरसता को तहस-नहस करनेवाले इन बैनरों / पोस्टर्स पर प्रशासन को किसी तरह की आपत्ति नहीं दिखाई दे रही है। यदि वाकई आपत्ति दिखाई देती तो चौकस निगाहों को कार्रवाई करने में कितनी देर लगती?
स्कूली दिनों की बात है एक कविता थी
‘मत बांटो इंसान को’!
कविता इसलिए याद की जाती थी, ताकि उस हिंदी में ५ मार्क्स मिल जाते थे।
सवाल कुछ इस तरह के होते थे…
‘मत बांटो इंसान को’ कविता का सारांश लिखो।
उत्तर: ‘मत बांटो इंसान को’ नामक कविता के माध्यम से कवि विनय महाजन जी ने मनुष्य को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है। कवि का कहना है कि हम मनुष्य को भेद-भाव की भावना भुलाकर एकता की डोर में बंधकर रहना चाहिए। कवि अपना दुख प्रकट करते हुए कहते हैं कि आज लोगों ने मंदिर मस्जिद और गिरजाघर बनाकर भगवान को बांट लिया है। उसी प्रकार अपने स्वार्थ के लिए भिन्न-भिन्न देश बनाकर धरती और सागर का भी बंटवारा कर लिया है। इस प्रकार कवि इंसानों को बांटने से मना कर रहे हैं। आगे कवि कहते हैं कि समानता का भाव हम सबमें जगाने की शुरुआत अभी शुरू हुई है, सच्चाई की तह तक अब हमें और दूर तक जाना है।
धरती बांटी, सागर बांटा मत बांटो इंसान को।’ -इससे कवि का आशय स्पष्ट करो।
उत्तर: कवि का कहना है कि मनुष्य ने धर्म के नाम पर भगवान को तो बांट ही लिया है। ठीक उसी प्रकार अपने स्वार्थ और मतलब के लिए धरती का भी बंंटवारा कर लिया है। यहां तक कि सागर में भी सीमा तय कर उसका भी बंटवारा कर लिया है। कवि इन्हीं बातों पर अपना दुख प्रकट करते हुए हमें यह आह्वान करते हैं कि कम से कम साधारण इंसानों के मन में बैर-भाव का बीज मत बोओ। इंसानों को धरती और सागर की तरह बांटने की बजाय एकता की डोर में बांधकर रखो, तभी जाकर हम एक ही मंजिल पर पहुंच पाएंगे।
मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर ने भगवान को किस प्रकार से बांटा है?
उत्तर: मनुष्य ने धर्म के नाम पर मंदिर, मस्जिद और गिरजाघर आदि बनाकर भगवान को बांट लिया है। जात-पात की भावना लिए हिंदुओं ने मंदिर बनवाकर भगवान को कैद किया है तो मुसलमानों ने मस्जिद बनवाकर तो ईसाइयों ने गिरजा घर बनवाकर भगवान को वैâद कर रखा है। इसी प्रकार सभी धर्म के लोगों ने अपने-अपने धर्म के अनुसार, भगवानों को बांट लिया है।
अभी लगता है कविता सिर्फ कविता नहीं थी, सिर्फ परीक्षा पास होने का जरिया नहीं थी।
काश सभी ने इसे ढंग से पढ़ लिया होता!
क्या आपको यह कविता याद है?
मंदिर मस्जिद गिरजाघर ने, बांट लिया भगवान को!
धरती बांटी, सागर बांटा,मत बांटो इंसान को!!

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