किरण चांदनी की

मेरे कमरे के गवाक्ष से
चुपके-चुपके, हौले-हौले
एक किरण चांदनी ने झांका।
देखते-देखते वह नन्ही सी किरण
मेरे कमरे में ही नहीं
मेरे अंत:मन में समा गई।
मैने पहली बार जाना कि
चांदनी में महक है
चांदनी में कोमलता है
चांदनी में चंचलता है
चांदनी की चमकती आंखें हैं
जिनमें ढेरों प्यार भरा है
जिनमें अपनापन सजा है
इस अपनेपन में बंधन है
यह बंधन बहुत मंजुल है
यह बंधन बहुत मधुर है।
इस नन्ही किरण को मैंने
पूरे यौवन में बढ़ते देखा है।
यौवन की पूरी मस्ती में
आसमां में पंख फैलाए
उड़ान भरते देखा है।
घर के हर कोने को
झंकृत करते देखा है।
क्या करूंगी जिस यह चांदनी
मेरे कक्ष, मेरी छत से सिमट कर
एक नये घर,छत पर बिछ जाएगी
कुछ उदास हो जाऊंगी मै, परंतु
आत्मा तक तृप्त हो जाऊंगी ,
अपने नये घर में मेरी किरण चांदनी
पूरी बिछ जाएगी,लहराएगी।
यह किरण मेरी अपनी पोती है
यह मेरी प्यारी सी मन्दिरा है।

-बेला विरदी

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