सैयद सलमान मुंबई
उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में भाजपा, सपा और बसपा के नारे खूब चर्चा में हैं। उत्तर प्रदेश के तीनों प्रमुख दलों ने अपने विशिष्ट नारों के माध्यम से अपने कोर वोटरों से जुड़ने का प्रयास किया है। योगी आदित्यनाथ का ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ वाला नारा पिछले कुछ दिनों से काफी आक्रामक रूप से छाया हुआ है। हिंदू एकता का आह्वान करने वाले भाजपा के इस नारे के जवाब में सपा ने ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ का नया नारा दिया है। गौरतलब है कि अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले पर ध्यान केंद्रित कर रही है। लोकसभा चुनाव में बुरी तरह मुंह की खा चुकी मायावती ने ‘बसपा से जुड़ेंगे तो आगे बढ़ेंगे’ का नारा देकर अपनी मौजूदगी का एहसास कराना चाहा है। वह भाजपा और सपा दोनों पर एक साथ मिलकर चुनाव लड़ने का आरोप लगा रही हैं। यूपी में १३ नवंबर को ९ सीटों पर उपचुनाव होंगे। कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के पक्ष में अपने उम्मीदवार वापस ले लिए हैं। इसलिए मुकाबला त्रिकोणीय ही होगा। देखना दिलचस्प होगा कि इस तरह की नारेबाजी से मतदाता कितना जुड़ पाते हैं।
मुस्लिम कयादत का नुकसान
मानखुर्द-शिवाजी नगर विधानसभा सीट पर दो धाकड़ मुस्लिम नेताओं के आमने-सामने चुनाव लड़ने से जहां सियासी माहौल गर्म है, वहीं महायुति में भी मतभेद खुलकर सामने आ गया है। इस सीट से एनसीपी के नवाब मलिक और शिंदे सेना के सुरेश पाटिल चुनावी मैदान में हैं, जबकि दोनों महायुति का हिस्सा हैं। भाजपा के विरोध के बावजूद, महायुति में शामिल अजित पवार ने नवाब मलिक को उम्मीदवार बना दिया है। नवाब मलिक का मुकाबला अबू आसिम आजमी से होगा, जो इस क्षेत्र से तीन बार विधायक रह चुके हैं। स्थानीय मुसलमानों की चिंता इस बात को लेकर है कि आसिम और नवाब की जंग में किसी एक मुस्लिम नेता की हार निश्चित है, या फिर दोनों की लड़ाई में कोई तीसरा उम्मीदवार बाजी मार सकता है। दबी जुबान से यह भी कहा जा रहा है कि नवाब मलिक को कालीना से चुनाव लड़कर अपनी ताकत दिखानी चाहिए थी, या फिर अपनी बेटी सना मलिक को जिताने में अपनी ऊर्जा झोंकनी चाहिए थी। इस तरह से नवाब मलिक मुस्लिम कयादत को नुकसान पहुंचा रहे हैं, जिसका फायदा भाजपा को होगा।
निर्दलीय बने सिर दर्द
निर्दलीय उम्मीदवार महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव २०२४ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए सभी दलों के लिए सिरदर्द बन गए हैं। महाराष्ट्र में महायुति और महाविकास अघाड़ी के बीच सीधा मुकाबला है। इस स्थिति में, निर्दलीय उम्मीदवार मतों का बंटवारा कर दोनों गठबंधनों को नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखते हैं। टिकट वितरण से नाराज नेता निर्दलीय चुनाव लड़ने का निर्णय लेकर मैदान में उतर चुके हैं और उन्हें मनाने का सिलसिला भी जारी है। स्थापित दलों को निर्दलीय उम्मीदवारों से होने वाले नुकसान का अंदाजा है। २०१९ के चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था, तब निर्दलीयों की स्थिति मजबूत होकर उभरी थी। हंग असेंबली की स्थिति में निर्दलीय विधायक महत्वपूर्ण हो जाते हैं। बहुमत के लिए १४५ का जादुई आंकड़ा छूने की चुनौती होती है। निर्दलीय विधायक सरकार गठन में निर्णायक भूमिका निभाते हुए अपना वजूद बनाए रखते हैं। मोटे तौर पर जो आंकड़े सामने आए हैं, उनके अनुसार, महायुति से ३६ और महाविकास अघाड़ी से १४ बागी नेताओं ने निर्दलीय नामांकन दाखिल किया है। निर्दलीय उम्मीदवारों की बढ़ती संख्या और उनका प्रभाव आगामी चुनावों में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
देशमुख बनाम सोमैया
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले पूर्व मंत्री अनिल देशमुख की पुस्तक चर्चा का विषय बनी हुई है। इस पुस्तक में उन्होंने उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर गंभीर आरोप लगाए हैं। अपनी आत्मकथा ‘डायरी ऑफ होम मिनिस्टर’ में उन्होंने दावा किया है कि फडणवीस ने उद्धव ठाकरे परिवार और अजित पवार को फंसाने के लिए दबाव बनाया था। देशमुख ने यह भी कहा कि देवेंद्र फडणवीस ने उनसे आरोपों से संबंधित हलफनामा तैयार करने के लिए कहा था। अनिल देशमुख ने अपनी पुस्तक में यह भी लिखा है कि उन्हें एक साजिश के तहत झूठे मामलों में फंसाकर जेल भेजा गया। इस पुस्तक को लेकर भाजपा नेता किरीट सोमैया ने सवाल उठाए हैं। उन्होंने चुनाव आयोग को लिखे पत्र में कहा कि यह पुस्तक चुनाव आचार संहिता और उनके जमानत की शर्तों का उल्लंघन करती है। किरीट सोमैया को उनके अपने दल ने राजनीतिक हाशिये पर पहुंचा दिया है, इसलिए वह चर्चा में आने के लिए किसी न किसी तरह का जुगाड़ करते रहते हैं। इस बहाने वह फडणवीस और भाजपा का विश्वास पुन: जीतना चाहते हैं।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)