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ध्रुवीकरण के सहारे भाजपा-शिंदे और दादा! …लोकसभा चुनाव में हार के बाद भी नहीं सुधरी महायुति

सर्वधर्मियों का महाविकास आघाड़ी को समर्थन
सामना संवाददाता / मुंबई
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव को लेकर सभी दलों की निगाहें मुस्लिम वोटों पर टिकी हुई हैं। इसी के साथ ही उनका वोट हासिल करने के लिए कई तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। मतदान से पहले धुव्रीकरण का खेल खेला जा रहा है। इसके बावजूद मुस्लिम वोटर महाविकास आघाड़ी को ही अपना हितैषी मान रहे हैं। उनका वोट आघाड़ी के अधिकृत प्रत्याशियों की झोली में जाना तय माना जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि मुस्लिम और दलित समाज की एकतरफा वोटिंग के कारण लोकसभा चुनाव में महाविकास आघाड़ी ने महाराष्ट्र में ४८ में से ३० सीटों पर सफलता अर्जित की थी। इस चुनाव में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्ष की पुरानी हिंदुत्ववादी छवि को बगल में रखते हुए मुस्लिमों ने महाविकास आघाड़ी के पक्ष में जमकर वोट डाले थे। इसके बाद भाजपा नेताओं ने सीटों और बूथों का विश्लेषण करने के बाद उसे वोट जिहाद कहा था। खुद उपमुख्यमंत्री फडणवीस ने बयान दिया था कि १४ सीटों पर हार के लिए वोट जिहाद ही जिम्मेदार है। इसके बाद भाजपा नेता नारायण राणे के पुत्र नितेश राणे के भड़काऊ बयान से जमकर विवाद पैदा हुआ था। इतना ही नहीं, भाजपा ने वोटों में भी जातिवाद पैदा करते हुए विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तस्वीर के साथ ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ के पोस्टर मुंबई में लगाए गए थे। इस पर अबू आसिम आजमी जैसे नेताओं ने जवाबी बयान दिया था। दूसरी तरफ राजनीतिक पंडितों का मानना है कि महाराष्ट्र में धुव्रीकरण की साजिश रची गई है, जिसमें महायुति को सफलता मिलती हुई नहीं दिखाई दे रही है।

मुस्लिमों को कितने टिकट
विधानसभा में अब तक मुस्लिम विधायकों की औसत संख्या १० रही है। साल १९६२ में ११, १९६७ में ९, १९७२, १९८० और १९९९ में १३ मुस्लिम विधायक विभिन्न दलों से चुनकर विधानसभा चुनाव की सीढ़ियों पर पहुंच चुके हैं। वर्ष १९९० में ७ मुस्लिम विधानसभा में पहुंचे थे। वर्ष २०१९ के विधानसभा चुनाव में भी मुस्लिम विधायकों की संख्या १० थी। महायुति ने इस बार के विधानसभा में पांच, जबकि महाविकास आघाड़ी ने १० मुस्लिम प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा है। इसके अलावा एमआईएम ने १० मुस्लिम और ४ हिंदू प्रत्याशियों को खड़ा किया है।

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