मुख्यपृष्ठस्तंभप्रासंगिक : इस दफा भी महिला राष्ट्रपति नहीं चुन सका अमेरिका!

प्रासंगिक : इस दफा भी महिला राष्ट्रपति नहीं चुन सका अमेरिका!

डॉ सी. पी. राय

आखिर लंबी प्रक्रिया के बाद अमरीकी राष्ट्रपति का चुनाव संपन्न हो गया और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पिछला चुनाव हारने के बाद इस बार १३२ साल बाद नया रिकॉर्ड बनाते हुए चुनाव जीत गए और सीनेट तथा हाउस में भी बहुमत पाने में सफल रहे। इनके पहले मिस्टर क्लीवलैंड ने १८८४ के बाद १८९२ में राष्ट्रपति का चुनाव इसी तरह जीता था। लोगों की निगाह इस बात पर भी थी कि क्या अमेरिका के इतिहास में अमेरिका अपनी पहली महिला राष्ट्रपति का चुनाव करेगा और भारतीय तथा एशियाई लोगों की निगाह इस बात पर थी कि क्या अमेरिका एक भारतीय मूल या एशियाई मूल की महिला का चयन अपने राष्ट्रपति के रूप में करेगा? पर ये दोनों उम्मीदें अब तो खत्म चुकी हैं।
पिछले कई महीनों से दुनिया की निगाहें अमेरिका के राष्ट्रपति के चुनाव पर लगी थीं। अमेरिका का चुनाव एक लंबी प्रक्रिया का चुनाव होता है। अमेरिका में अगर किसी को किसी पद पर चुनाव लड़ना है तो पहले उसे अपनी पार्टी के अंदर उस पद हेतु चुनाव लड़ना होता है और वह मुकाबला भी बड़ा दिलचस्प होता है। याद होगा कि जब बराक ओबामा और हिलेरी क्लिंटन के बीच राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी का चुनाव था तो दोनों ने एक-दूसरे पर खूब हमले किए थे, लेकिन जब बराक ओबामा जीत गए तो पूरी पार्टी मिलकर उनके लिए काम करने लगी। बराक ओबामा के राष्ट्रपति बन जाने के बाद हिलेरी क्लिंटन उनके साथ विदेश मंत्री बन गर्इं। मुझे याद है कि जब ओबामा ने मैक्नेन को हराया था तो जहां मैक्नेन ने ओबामा को शानदार चुनाव लड़ने के लिए बधाई देते हुए कहा था कि अब चुनाव खत्म हो गए, आइए अब साथ आगे बढ़ें और अमेरिका को आगे बढ़ाएं तो ओबामा ने कहा थी कि मिस्टर मैक्नेन आपने बहुत शानदार चुनाव लड़ा और कड़ी टक्कर दी तथा अमेरिका के लिए आप ने बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया है और एक फौजी अफसर के रूप में आपके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। यही लोकतंत्र की सही पहचान होती है और उसमें यकीन रखने वालों की। पिछली बार जरूर बहुत खराब वक्त देखा था अमेरिका ने, जब डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव परिणाम मानने से इनकार कर दिया था, जबकि वो पॉपुलर वोट और इलेक्टोरल वोट दोनों में काफी मार्जिन में हार गए थे और परिणाम ये हुआ कि उनके समर्थकों ने अमेरिकी संसद वैâपिटीलो पर ही हमला कर दिया था और एक व्यक्ति मारा भी गया था।
इस बार का चुनाव कई मामलों में अलग था डेमोक्रेटिक उम्मीदवार और वर्तमान राष्ट्रपति जॉय बाइडेन को बीच चुनाव में मैदान छोड़ना पड़ा क्योकि पहली डिबेट में ही वो भूल जा रहे थे और उन पर उम्र का असर दिखने लगा तो उनकी पार्टी में ही उन पर सवाल उठने लगे और तब उन्होंने खुद पीछे हटते हुए उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का नाम राष्ट्रपति पद के लिए प्रस्तावित कर दिया। इस मामले में कमला हैरिस को वो प्रचार तथा अवसर भी नहीं मिला, जो प्राइमरी चुनाव के वक्त मिलता है। हैरिस को प्रचार में उतरने का अवसर भी देर से मिला। कमला हैरिस को इस चुनाव में उनकी पार्टी के बराक ओबामा, मिसेस ओबामा, क्लिंटन, हिलेरी क्लिंटन सहित बड़ी संख्या में ट्रंप से नाराज कई रिपब्लिकन और काफी संख्या में सेलिब्रिटी गायकों, हीरो, हीरोइनों का सपोर्ट मिला। नौजवानों का रुझान भी उनकी तरफ दिखा फिर भी वो चुनाव हार गर्इं।
जहां कमला हैरिस के ऊपर देर से उम्मीदवार होने का असर दिखा, वहीं उपराष्ट्रपति होने के नाते जॉय बाइडेन की असफलताओं और एंटी इनकम्बेंसी का असर भी उनके चुनाव पर पड़ा क्योंकि अमेरिका ने भी कोरोना की मार झेली थी और उसके बाद वहां का आम आदमी महंगाई की मार से त्रस्त है तथा पूर्व सरकार द्वारा यूक्रेन को भारी आर्थिक मदद से उसे दिक्कत है। इस मुद्दे को डोनाल्ड ट्रंप ने उठाया भी। ट्रंप की नीति है कि अमेरिका की नौकरी और अवसरों पर पहला हक अमेरिकी लोगों का है तथा उनका अवैध इमिग्रेशन के खिलाफ सख्त रुख भी खासकर ग्रामीण लोगों और कस्बाई लोगों को आकर्षित करने में सफल रहा। ट्रंप ने अपनी और वर्तमान विदेश नीति को भी मुद्दा बनाया जो वोट के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ। ऐसे प्रदेश जिन्हें ‘स्विंग प्रदेश’ कहा जाता है, जो कभी किसी को भी वोट देते रहे हैं उनमें भी ट्रंप बढ़त बनाने में कामयाब रहे। क्लीवलैंड, जोर्जिया, इंडियाना, केतुकी, वैâरोलिना अलास्का, नेवाडा और एरिजोना ने ट्रंप की जीत पर मुहर लगा दी। कमला हैरिस आर्थिक मुद्दों पर कुछ खास बात नहीं कर पार्इं, जो उनके खिलाफ गया जबकि अभी हाल में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गर्भपात पर रोक के आदेश पर जिसका भारी पैमाने पर विरोध हो रहा है। कमला हैरिस के रुख ने उनकी मदद की क्योंकि हर अमेरिकी चुनाव में सिंगल मदर एक बड़ा मुद्दा रहता है। लैटिन और क्यूबन आबादी में ट्रंप बढ़त लेने में कामयाब रहे जो आश्यचर्यजनक रहा। अमरीकी श्वेत पुरुषों को ऐसा लगा कि ट्रंप कमला के मुकाबले में ज्यादा मजबूत राष्ट्रपति साबित होंगे और साथ ही बहुत बाद में कमला हैरिस समझ पाई कि उनकी सरकार की नीतियों से लोग खुश नहीं और अंतिम दौर में उन्होंने कहना शुरू किया कि उनकी नीतियां जॉय बाइडेन की नीतियों से अलग होंगी, पर क्या होगी? इस पर साफ कुछ नहीं बोल सकीं और तब तक देर भी हो चुकी थी।
परिणाम आ चुका है और ट्रंप राष्ट्रपति बन चुके हैं। अब देखना यह होगा कि यूक्रेन तथा इजरायल के मामले में २० जनवरी को शपथ लेने के बाद वो क्या निर्णय लेते हैं। पाकिस्तान और इमरान खान पर उनका क्या रुख होता है। भारत से वहां जाकर काम करने के इच्छुक लोगों के एच १ बी बीजा पर उनका क्या रुख होता है? भारतीय सामानों के आयात पर पिछली बार टैक्स लगा दिया था, इस बार क्या करते हैं? चीन का सामान अमेरिका में भरा पड़ा है तो उस पर उनका क्या रुख होता है? चीन के खिलाफ भारत का वो इस्तेमाल करने का रुख रखते हैं या दोनों देशों से स्वतंत्र व्यवहार करते हैं और भारत के पक्ष में उनके पिटारे से क्या निकलता है इत्यादि। सवाल बहुत हैं जिनका जवाब निकट भविष्य में मिलेगा। उनका अनिश्चित व्यवहार और निर्णय का तरीका सभी को चौंकाता रहा है अभी भी लोग अनिश्चित हैं। उनके भविष्य के निर्णयों को लेकर।
पर एक सवाल बड़ा है कि दो सौ साल से ज्यादा की लोकतांत्रिक व्यवस्था में आज तक अमेरिका किसी महिला को अपना राष्ट्रपति नहीं चुन सका और ये सवाल अभी कब तक अमेरिका का पीछा करेगा ये भविष्य के गर्भ में है।
(लेखक राजनीतिक विचारक एवं वरिष्ठ पत्रकार है।)

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