मुख्यपृष्ठअपराधमुंबई का माफियानामा : किलिंग मशीन फिरोज कोंकणी

मुंबई का माफियानामा : किलिंग मशीन फिरोज कोंकणी

विवेक अग्रवाल

हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।

उसे डी-कंपनी में भी वो काम सौंपा जाता था, जिसे करने से दूसरे सुपारी हत्यारे भी इंकार कर देते थे…
उसे मुंबई के अपराध जगत के सबसे खतरनाक और दुर्तांत हत्यारा कहते थे…
उसे पुलिस वाले भी किलिंग मशीन का दर्जा देते थे…
…उसका नाम था फिरोज कोंकणी
सुपारी पर बिना ये पूछे कि किसकी और क्यों हत्या करनी है, फिरोज गेम करने निकल पड़ता। पांच लाख से ऊपर ही उसकी फीस होती थी। उसे शिकार दिखा दें, काम पक्का हो जाता था। डी-कंपनी के लिए उसने दर्जनों हत्याएं कीं। ये बात और है कि जब डी-कंपनी के लिए वह बोझ बन गया तो उसकी नेपाल में दाऊद ने ही हत्या भी करवा दी थी।
वह हत्या करने के बाद कुछ समय के लिए चुपचाप बाहर निकल जाता था। पूरे परिवार के साथ वह कहीं और किसी शहर जाकर रहने लगता था। उसके बच्चे छोटे ही थे। उसे ये परेशानी न थी कि बच्चों का भविष्य क्या होगा।
एक बार फरारी के दौरान वह बंगलौर में था। उसके बारे में अपराध शाखा के अधिकारियों को पता चला। दस्ते में शामिल सभी अधिकारी जानते थे कि वह बला का फुर्तीला है। उसकी काया देख कर ऐसा लगता था कि ये सिंगल हड्डी क्या कर सकता है; लेकिन वह बड़ा खतरनाक हत्यारा था। उसके हाथों में एक बार अगर पिस्तौल आ गई तो ये नहीं देखता कि सामने कौन है। पिस्तौल के दहाने से आग निकलना तभी रुकती, जब गोलियां खत्म हो जाएं… या खुद फिरोज चाहे।
उसे गिरफ्तार करने के पहले बंगलौर की उस झोपड़पट्टी के घर की चुपचाप इस दस्ते ने घेराबंदी की। पूरे इलाके की बिजली कटवाई। जब घुप्प अंधेरा हो गया तो एक साथ झपट कर ८ पुलिस वालों ने उसे दबोचा। तब जाकर वह काबू आया।
मुंबई में अपराध शाखा की गिरफ्तारी के दौरान ही उससे मिलने का मौका मिला। उसने बताया कि बंगलौर में तो उसके पास कोई काम था ही नहीं। फुरसत के दौरान उसका प्रिय शगल मुर्गे लड़ाना था। जब लड़ते हुए मुर्गों का खून निकल आता था, उसे बड़ा सुकून मिलता था।
जब उससे मैंने पूछा कि हत्याएं क्यों करता है? फिरोज ने बेहद शांत और सर्द आवाज में जो जवाब दिया, मेरी भी रीढ़ में ठंडी लहर दौड़ गई:
– मैं नहीं तो कोई और करेगा। जब मारना है तो मैं क्यों नहीं? कमाई होती है। और तो कुछ करना आता नहीं।

(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)

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