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गड़े मुर्दे :  अरुण गवली की चुनाव अधिकारी को धमकी और पहली बार विधायक बनना

जीतेंद्र यादव
अंडरवर्ल्ड डॉन अरुण गवली इस वक्त जेल में है और एक हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा काट रहा है। एक वक्त में उसने राजनीति में भी अपनी किस्मत आजमाई थी और विधायक बनने में सफल रहा था। यह बात साल २००४ की है। उस साल हुए लोकसभा चुनाव भी उसने अपनी पार्टी अखिल भारतीय सेना से लड़ा था, लेकिन उसकी हार हुई थी। चंद महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में भायखला सीट से वो जीत गया। मैंने उसको एक अंडरवर्ल्ड डॉन से राजनेता बनते हुए करीब से देखा है, उस चुनाव के मुझे दो वाकिए याद आते हैं।
जिस दिन विधानसभा चुनाव हो रहा था, उस दिन अरुण गवली भी वोट डालने के लिए निकला। लोकसभा चुनाव में उसने वोट नहीं डाला था, क्योंकि अपनी बिल्डिंग के बाहर उसने एनकाउंटर स्पेशलिस्ट अफसर विजय सालस्कर को खड़ा देख लिया था। मतदान केंद्र दगड़ी चाल के करीब ही एक खेल के मैदान में बनाया गया था। करीब दस बजे वह अपने साथियों के साथ वोट डालने के लिए वहां पहुंचा और कतार में खड़ा हो गया। मैं भी उसका मतदान कवर करने के लिए अपने वैâमरे के साथ वहां मौजूद था। कतार बड़ी धीमी रफ्तार से आगे बढ़ रही थी, जिससे कि गवली को गुस्सा आ रहा था, लेकिन मीडिया का वैâमरा देख वह कोई बखेड़ा खड़ा नहीं करना चाहता था। आखिर आधे घंटे बाद जब गवली का वोट डालने का नंबर आया तो वह अपना आपा खो बैठा।
गवली चुनाव अधिकारी के ऊपर भड़क गया और आरोप लगाया कि वह जान-बूझकर उसके विरोधी को जिताने के लिए मतदान धीमी रफ्तार से करवा रहा है। उसने एकदम धमकाने वाले अंदाज में अपने साथ खड़े साथी से कहा,
‘ए इसका नाम-पता निकाल कर रख। इलेक्शन के बाद देखते हैं इसको।’
बेचारा चुनाव अधिकारी गवली के इस रूप को देखकर दहशत में आ गया। एक तरह से गवली ने चुनाव अधिकारी को धमकी दी थी, लेकिन उस चुनाव अधिकारी ने पुलिस के पास कोई शिकायत दर्ज नहीं करवाई। वह मतदान केंद्र एक संवेदनशील मतदान केंद्र था और वहां पर बड़े पैमाने पर पुलिस की मौजूदगी थी। इसके बावजूद खुलेआम गवली ने चुनाव अधिकारी को धमकी दे डाली थी।
बतौर पत्रकार मैने भी गवली का यह रूप पहली बार देखा था। गवली भले ही एक अंडरवर्ल्ड डॉन था, लेकिन मीडिया के सामने जब भी वो आता था तो ऐसे बर्ताव करता जैसे कि वह बड़ा बेचारा है। वह बड़ी ही विनम्रता से बात करता और उसे देखकर यह कहना मुश्किल था कि उसने मुंबई शहर में सैकड़ोें लोगों की हत्याएं करवाई है।
विधायक चुने जाने के बाद जब गवली पहली बार विधानभवन के लिए निकला तो उसने मुझे साथ चलने के लिए बुलाया। गवली कभी किसी कार में यात्रा नहीं करता था। उसकी एक मिनी बस होती थी, जिसमें उसके गिरोह के करीब १५ लोग हिफाजत की खातिर साथ में चलते थे। उस मिनी बस के आगे-पीछे भी मोटरसाइकिलों पर उसके गिरोह के लोग साथ चलते।
मैं दगड़ी चाल से अपने वैâमरामैन के साथ उसकी बस में सवार हुआ। बस के भीतर उसके जो तमाम साथी थे, सभी के शर्ट बाहर थे यानी कि उन्होंने शर्ट-पैंट में इन नहीं किया हुआ था। इससे ये अनुमान लगाना आसान था कि सभी ने अपनी कमर के भीतर कोई न कोई हथियार छुपा रखा है, ताकि गवली पर अगर कोई हमला हो तो उसे बचाया जा सके। १९९१ में दाऊद इब्राहिम के बहनोई इस्माइल पारकर की हत्या करने के बाद दाऊद उसके खून का प्यासा बन चुका था। ‘डी’ कंपनी के शूटर उसे अपनी गोलियोंं का निशाना बनाने के लिए मौका ढूंढ रहे थे।
मैंने दगड़ी चाल से लेकर मंत्रालय के करीब वाले सिग्नल तक गवली का एक लंबा इंटरव्यू किया। इस इंटरव्यू में उसने बताया कि बतौर विधायक वो अपने इलाके में क्या-क्या करेगा। अचानक मंत्रालय से आगे बढ़ने के बाद उसकी बस के सामने एक काले रंग की मर्सिडीज आकर खड़ी हो गई। गवली अपनी मिनी बस से उतरा और तुरंत उस मर्सिडीज में जाकर बैठ गया। वहां से कुछ मीटर के फासले पर मौजूद विधानभवन तक का सफर गवली ने उसी मर्सिडीज में तय किया। मर्सिडीज में बैठकर विधानभवन तक पहुंचने के पीछे गवली का मकसद राजनेताओं को एक संदेश देना था कि वह भी अब उनकी जमात में शामिल हो चुका था।
(लेखक एनडीटीवी के सलाहकार संपादक हैं।)

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