धीरेंद्र उपाध्याय
उत्तर प्रदेश से आई चांदनी का परिवार बेहद तंगहाल था। साल २०१७ में ६ साल की उम्र में उसे जन्मजात पूर्ण हृदय ब्लॉक नामक स्थिति का पता चला, इसमें हृदय की विद्युत संचालन प्रणाली असामान्य हो जाती है इसलिए हृदय गति बहुत धीमी हो जाती है। रोगी को थकान, चक्कर आना और चेतना की हानि और डगमगाने जैसी समस्याओं का अनुभव होता है। मई २०२४ में किशोरी को चक्कर और बेहोशी का अनुभव हुआ। वह उत्तर प्रदेश के एक स्वास्थ्य केंद्र में गई, जहां उसे दोबारा पेसमेकर लगाया गया। एक महीने बाद उसे फिर से सूजन, लालिमा और मवाद स्राव के साथ पेसमेकर साइट संक्रमण हो गया। जून २०२४ में वह सायन अस्पताल लौट आई। उसका एंटीबायोटिक्स और अन्य सहायक उपचार शुरू किया गया। संक्रमण नियंत्रण में नहीं होने के कारण उसके पेसमेकर को फिर से सर्जरी कर हटाना पड़ा। साथ ही उसे एक अर्ध-स्थायी पेसमेकर लगाया गया, जो शरीर के बाहरी हिस्से से जुड़ा हुआ रहता है। हालांकि, यह कोई दीर्घकालिक समाधान नहीं था। उसे बार्इं ओर संक्रमण वाली जगह पर स्किन ग्राफ्टिंग सर्जरी की भी आवश्यकता थी। सितंबर में उसकी दोबारा पेसमेकर सर्जरी हुई। इसी के साथ ही तीसरी बार उसे संक्रमण हो गया और दाहिनी ओर पेसमेकर पॉकेट से मवाद निकलने लगा। इसलिए डॉक्टर ने इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिस्ट और ऐरिथमिया विशेषज्ञ डॉ. यश लोखंडवाला से सलाह ली। उन्होंने एक नया पेसमेकर उपकरण प्रत्यारोपित करने का निर्णय लिया, जिसे लीडलेस पेसमेकर (मायक्रा) कहा जाता है। यह एक छोटा गोली जैसा उपकरण है, जिसे हम कमर की नस के माध्यम से हृदय में प्रत्यारोपित करते हैं। चूंकि त्वचा पर कोई चीरा नहीं लगता इसलिए संक्रमण का कोई खतरा नहीं होता। इस उपकरण की लागत सात लाख रुपए है और इस प्रक्रिया के लिए अतिरिक्त उपकरण की कीमत लगभग एक लाख रुपए है। इस तरह इस पर कुल खर्च ८ लाख रुपए खर्च आता है। हालांकि, चांदनी के परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं है। ऐसे में एमएस मेडट्रॉनिक इंडिया लिमिटेड ने सात लाख का लीडलेस पेसमेकर मुफ्त दिया, जबकि डॉक्टरों से शेष एक लाख रुपए का चंदा इकट्ठा किया गया। आखिरकार, सभी बाधाओं को पार करते हुए एक नई डिवाइस से इस किशोरी का ऑपरेशन किया गया। करीब ६ महीने तक अस्पताल में भर्ती रहने के बाद उसे छुट्टी दे दी गई और अब वह अपने परिवार के साथ जीवन की हर खुशी मना रही है। पेसमेकर एक धातु उपकरण है, जिसे एक छोटी शल्य प्रक्रिया के माध्यम से प्रत्यारोपित किया जाता है। इसमें एक छोटा-सा चीरा लगाया जाता है और इसको कॉलर बोन के नीचे की त्वचा के भीतर रखा जाता है। यह हृदय के दाहिनी ओर के कक्षों के बीच दो विद्युत तारों को जोड़ता है। पेसमेकर बैटरी स्वचालित रूप से और लगातार लगभग ६० से १०० प्रति मिनट की दर से हृदय की मांसपेशियों को विद्युत आवेग पहुंचाती है।