डाॅ रवीन्द्र कुमार
पुलिस ने एक किडनी रैकेट को पकड़ा है। (पुलिस एक बंदे को भी पकड़ती है तो नाम उसको रैकेट का ही देती है इससे इज्ज़त बढ़ती है) आप कहेंगे इसमें नया क्या है? यह तो आए दिन हो ही रहा है। जी नहीं ! इस केस में ये पकड़े गए भाई साब एम.बी.ए. हैं। इनका यह किडनी कारोबार अंतराज्यीय है जी हाँ पाँच राज्यों में फैला हुआ है। उनका करोड़ों का टर्न ओवर है। न जाने कितने ही अस्पतालों से उनका कोऑर्डिनेशन है। भाई साब ने बाकायदा बिजनिस कार्ड छपा रखा है। डेजिंग्नेशन की जगह लिखा है के.टी.सी. (किडनी ट्रांसप्लांट कोओर्डिनेटर)। ज़ाहिर है एम. बी.ए. करने के बाद उन्हाेंने मैंनेजमेंट की सब तकनीक सीख ही ली होंगी। मैनेजर की परिभाषा यही है “वह जो अनमैनेजेबल्स को मैनेज कर सके” एम.बी.ए. आजकल केलों की तरह दर्जन के हिसाब से उपलब्ध हैं। इन भाई साब ने भी सोचा होगा डिलीवरी बॉय बनने से अच्छा है क्यों न किडनी कोऑर्डिनेटर बना जाये। फौरन खोल लिया एक दफ्तर और पाँच राज्यों में ब्रांच ऑफिस भी खोल छोड़े।
अब यह किडनी का कमाल है या एम.बी.ए. का ? मैं तो कहूँगा एम.बी.ए. का है। बाकी सभी एम.बी.ए. से भी आव्हान है वक़्त आ गया है कि मैनेजमेंट संस्थान नवीनतम डिसिप्लिन शुरू करें यथा एम. बी.ए. (किडनी) एम.बी.ए. (लीवर) एम.बी.ए.(आईज़) एम.बी.ए. (ब्लड) बहुत चलेंगे। एक एश्योर्ड फ्यूचर उनकी वेट करता है। पक्का 100% प्लेसमेंट और पैकेज इंडस्ट्री में बेहतर से बेहतरीन मिलेगा।
आप अपने बॉस खुद हो। मुझे तो डेजिंग्नेशन खूब भाया। किडनी ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर। इसी तरह लीवर कोऑर्डिनेटर। बी.ए., बी.एड. पुराना हो गया। लेटेस्ट है बी.टी.सी. (ब्लड ट्रान्स्फ्यूजन कोऑर्डिनेटर) अब बी.डी.एस. नहीं चलेगा। अब से कोर्स का नाम होगा जे.आर.सी. (जाॅ रिपलेसमेंट कोऑर्डिनेटर) हिप वाले, घुटने वाले अलग। बहुत सही लाइन है भाई। लोगों को गाइड करना अच्छे से अच्छा सौदा करा कर देना।
इसी कारोबार में आगे आई.एस.ओ. दिये जाया करेंगे। थोड़े दिन और रुको सरकार ने खुद इसे रिकाॅग्नाइज़ कर देना है। फिर लोग धड़ल्ले से बोर्ड पर और विजिटिंग कार्ड पर लिखेंगे गवर्नमेंट रिकाॅग्नाइज (सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त) रजि न. …) भाई ! एक देने वाला (डोनर) है एक लेने वाला है। इस सौदे में चार पैसे कोऑर्डिनेटर को बतौर सर्विस चार्ज मिल जाते हैं तो इसमें ग़ैर कानूनी क्या है। और अगर ग़ैर कानूनी है तो कानून बनाने का काम भी तो आपका है । आप इसे रेगुलेट करें। कानून लाएँ। क्या सेरोगेसी, क्या आई.वी. एफ. क्या लिंग परीक्षण आदि सब अब बिजनिस मॉडल हैं और जहां बिजनिस वहाँ बिजनिस मैनेजेमेंट। क्या आपके बाल (विग), क्या आपकी नाक (रिनोप्लास्टी) सरकार चाहे कानून लाये या नहीं कारोबार तो चल ही रहा है। आप कानून लाएँ, रजिस्ट्रेशन फीस लें, इस क्षेत्र में आने वाले संस्थानों को, कोऑर्डिनेटर्स को, तथा पैरा- मैडिक्स को रिकाॅग्नाइज़ करें। उनसे कर वसूलें।
हैपी ट्रांसप्लांट्स !!