जीतेंद्र दीक्षित
एक वक्त था, जब गढ़चिरौली का नाम सुनते ही महाराष्ट्र में पुलिसकर्मियों की रूह कांप उठती थी। गढ़चिरौली राज्य के विदर्भ इलाके का वो जिला है, जहां करीब चार दशकों तक नक्सलवादियों का आतंक रहा जो पुलिसकर्मियों को बड़ी बेरहमी से मारा करते थे। आज भी गढ़चिरौली में नक्सली हिंसा की छिटपुट वारदातें होती रहती हैं, लेकिन यहां के ज्यादातर नक्सली खत्म हो चुके हैं। ग़ढ़चिरौली से नक्सलियों के सफाए का श्रेय जिन पुलिस अधिकारियों को जाता है, उनमें से एक थे वसंत सराफ। मुंबई के पुलिस कमिश्नर और महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक रह चुके सराफ का हाल ही में पुणे के एक अस्पताल में निधन हुआ।
१९९० में जब मुंबई पुलिस कमिश्नर के पद से पदोन्नति पाकर सराफ महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक बने तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती पेश हुई नक्सलवाद की। लगातार गढ़चिरौली और आस-पास के जिलों से पुलिसकर्मियों की हत्याओं की खबरें आ रही थीं। नक्सलियों से निपटने के लिए पुलिस की बनाई गई तमाम रणनीतियां नाकाम हो रही थीं। गढ़चिरौली के पुलिस अधीक्षक (एस.पी) डॉ. सत्यपाल सिंह की केंद्र में प्रतिनियुक्ति हो गई थी और वे चौधरी के सचिव बन कर दिल्ली चले गए। उनके जाने के बाद उस जगह किसी और एस.पी की नियुकित की जानी थी। गढ़चिरौली जाने को कोई अफसर तैयार न था। कुछ अफसर जिनको गढ़चिरौली जाने को कहा गया, वे अपने राजनीतिक संपर्कों का इस्तेमाल करके अपना तबादला रुकवा लेते।
सराफ के सामने चुनौती थी किसी ऐसे अफसर को गढ़चिरौली भेजने की, जो न केवल स्वेच्छा से गढ़चिरौली जाने को तैयार हो, बल्कि उसमें नक्सलियों से लड़ने की हिम्मत, जज्बा और ताकत भी हो। तभी उन्हें ख्याल आया कृषिपाल रघुवंशी का। बतौर मुंबई पुलिस कमिश्नर उन्होंने रघुवंशी का काम देखा था। एक बार घाटकोपर में जब रमाबाई नगर के बाहर दंगा हो गया था तो रघुवंशी ने ब़ड़ी बहादुरी से उसे काबू में किया था। घाटकोपर दंगे के वक्त रघुवंशी सशस्त्र बल के डीसीपी थे। सराफ ने उन्हें जोन-६, जिसके तहत रमाबाई नगर आता है, का डीसीपी बना दिया। सराफ ने रघुवंशी को बुलाया और उन्हें ग़ढ़चिरौली के एस.पी के तौर पर चार्ज लेने को कहा।
रघुवंशी भी अचानक गढ़चिरौली जाने का आदेश पाकर सकते में आ गए। उन्होंने तर्क दिया कि उनका बतौर डीसीपी जोन-६ कार्यकाल पूरा नहीं हुआ है और उनके दोनों बच्चे स्कूल में हैं। साल के बीच में परिवार को गढ़चिरौली ले जाना ठीक नहीं। उन्होंने निवेदन किया कि बच्चों की परीक्षा निपट जाने के बाद वे गढ़चिरौली जा सकते हैं। परीक्षाएं ५ महीने बाद थीं। सराफ ने कहा कि ठीक है, वो पांच महीने बाद गढ़चिरौली चले जाएं। पांच महीनों के बाद सराफ ने फिर रघुवंशी को बुलाया और पूछा कि क्या बच्चों की परीक्षा निपट गर्इं। जब रघुवंशी ने हां कहा तो सराफ ने रघुवंशी के हाथ एक किताब पकड़ाई जिसका नाम था-रेड स्टार ओवर चाइना। सराफ ने कहा कि चीन में वामपंथ के उदय पर लिखी गई वो किताब उन्हें नक्सलवाद को समझने में मदद करेगी।
रघुवंशी के लिए ये एक तरह से गर्व की बात थी कि गढ़चिरौली जैसे नक्सल प्रभावित इलाके में भी सराफ ने एस.पी की जगह को उन पर भरोसा रख कर खाली रखा। दूसरी तरफ साथी आईपीएस अफसरों ने रघुवंशी का मजाक भी उ़ड़ाया कि पांच महीने का वक्त मिलने के बावजूद वे राजनेताओं से सांठगांठ करके अपना तबादला नहीं रुकवा सके। रघुवंशी के परिजन भी गढ़चिरौली भेजे जाने की खबर से परेशान हो गए। आखिर रघुवंशी गढ़चिरौली पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने इतिहास रच दिया। गढ़चिरौली में उन्होने स्थानीय आदिवासी युवकों को साथ लेकर सी-६० नाम की एक कमांडो फोर्स बनाई। इस फोर्स का नामकरण भी सराफ ने ही किया। इस फोर्स ने ग़ढ़चिरौली से नक्सलवाद को खत्म करने में बेहद अहम भूमिका निभाई।
कई बड़े नक्सली सी-६० कमांडो की गोलियों से मारे गए या उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया।१९९२ में रघुवंशी का ग़ढ़चिरौली से तबादला हो गया, लेकिन उनकी बनाई गई कमांडो फोर्स आगे भी काम करती रही। नक्सलियों के खिलाफ ये फोर्स आज भी काम कर रही है। अगर गढ़चिरौली से आज नक्सलवाद खत्म सा हो गया है तो उसके पीछे वसंत सराफ की ओर से रघुवंशी को गढ़चिरौली भेजने के फैसले की सबसे अधिक अहम भूमिका है।
(लेखक एनडीटीवी के सलाहकार संपादक हैं।)