सैयद सलमान
मुंबई
मुस्लिम जगत में इराक से मुसलमानों के लिए शर्मिंदगी का कारण बननेवाली एक बड़ी खबर आई है। दरअसल, इराक में विवाह से संबंधित एक कानूनी संशोधन पारित होनेवाला है, जिसके तहत पुरुषों को ९ साल की उम्र तक की लड़कियों से विवाह करने की अनुमति होगी। इसके अलावा, महिलाओं को तलाक, बच्चे की देखभाल और विरासत के अधिकारों से वंचित करने के लिए भी संशोधन प्रस्तावित किए गए हैं। इराक में पहले भी इसी प्रकार के संशोधन के प्रयास हुए हैं, लेकिन वे असफल रहे हैं। इराक के इस नए कानून की पूरी दुनिया में आलोचना हो रही है। साथ ही महिला अधिकार समूह इसे महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन मान रहे हैं और कड़ी नाराजगी जता रहे हैं। महिला अधिकार समूहों जैसे ‘गठबंधन १८८’ ने सरकार के इस कदम को ‘बच्चियों के साथ बलात्कार’ को वैध बनाने जैसा खौफनाक बताया है। बात भी सही है कि अगर यह कानून लागू हुआ तो यह महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार को बढ़ावा देगा और उन्हें ज्यादा कमजोर बनाएगा। साथ ही यह प्रस्ताव दशकों की सामाजिक प्रगति को नकारात्मक तौर पर प्रभावित करते हुए देश को पीछे धकेल देगा। विश्वभर के मुसलमानों को शर्मिंदगी उठानी होगी वह अलग। वैसे दुनियाभर के ज्यादातर देशों में विवाह के लिए कानूनी उम्र १८ साल या उससे ज्यादा है। ऐसे में यह कहना अनुचित नहीं होगा कि यह विधेयक सीधे-सीधे पितृसत्तात्मकता को बढ़ावा देनेवाला है।
हालांकि, इराकी सरकार का स्पष्टीकरण है कि यह विधेयक नागरिकों को पारिवारिक मामलों पर निर्णय लेने के लिए धार्मिक अधिकारियों या नागरिक न्यायपालिका के बीच चयन करने की अनुमति देगा, लेकिन विधेयक के आलोचकों को चिंता है कि इससे विरासत, तलाक और बच्चे की हिरासत के मामलों में अधिकार सीमित हो जाएंगे। अगर नागरिकों को धार्मिक अधिकारियों के पास जाने की अनुमति दी जाती है तो इससे पारिवारिक मामलों में धार्मिक प्रभाव बढ़ सकता है, जिसे व्यक्तिगत अधिकारों का हनन कहा जा सकता है। आलोचकों का यह भी मानना है कि यह कदम महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में दशकों की प्रगति को कमजोर कर देगा। इराक ही नहीं, बल्कि विश्व के अनेक बुद्धिजीवी और मुस्लिम मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि यह विधेयक संविधान में प्रदत्त समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन करता है। साफ-साफ पता चलता है कि यदि यह प्रस्ताव पारित हो जाता है तो ९ वर्ष की लड़कियों और १५ वर्ष की आयु के लड़कों को शादी करने की अनुमति मिल जाएगी, जिससे बाल विवाह और महिला शोषण का खतरा बढ़ जाएगा। जब विश्व के अनेक देश विज्ञान जगत में तरक्की की ओर अग्रसर हैं तब इराक जैसे देश में इस कानून के पारित होने से यह जाहिर हो जाएगा कि यह देश आगे नहीं, बल्कि पीछे की ओर जा रहा है। इराक में पुरुष संरक्षकता की व्यवस्था नहीं है, जिसके तहत किसी महिला को महत्वपूर्ण जीवन निर्णय लेने के लिए अपने पति- पिता या अन्य पुरुष अभिभावक की अनुमति की आवश्यकता होती है। इस विधेयक के समर्थकों का तर्क तो और भी बचकाना है। उनका दावा है कि इसका उद्देश्य इस्लामी कानून का मानकीकरण करना और युवा लड़कियों को ‘अनैतिक संबंधों’ से बचाना है। हालांकि, यह तर्क बिल्कुल गलत है और बाल विवाह की कठोर वास्तविकताओं को नजरअंदाज करता है। कानून बनाने वालों को समझना होगा कि ९ वर्ष की बच्चियां, घरों में शरारत करती, खेल के मैदान में खेलते हुए और स्कूल में किताबों के साथ अच्छी लगती हैं, शादी की पोशाक में नहीं या फिर इस विधेयक का मसौदा तैयार करनेवालों के घरों में मासूम बच्चियों की हंसी, खिलखिलाहट और बालसुलभ शरारतें नहीं होंगी या फिर उनकी सोच ही बालशोषण वाली होगी। अगर इस विधेयक को किसी इस्लामी नुक्तए-नजर से सही ठहराने की नापाक कोशिश हो रही है तो यह भी गलत है। कुरआन में लड़कियों के बालिग होने तक विवाह करने से साफ मना किया गया है। जाहिर-सी बात है कि ९ वर्ष की बच्ची किसी भी दृष्टिकोण से बालिग नहीं होती है। एक अहम बात यह भी कि इस्लाम में निकाह में पहले लड़की की सहमति जरूरी होती है। यह बहुत बड़ा अधिकार है। क्या इस बात की कल्पना भी की जा सकती है कि कोई ९ वर्ष की बच्ची अपनी शादी का पैâसला कर सके? कम उम्र में शादी से स्कूल छोड़ने, जल्दी गर्भधारण और घरेलू हिंसा का खतरा भी बढ़ जाएगा। विश्वभर के तमाम मानवाधिकार संगठनों को इस विधेयक का विरोध करना चाहिए। इन चिंताओं के मद्देनजर, इराक के हुक्मरान इस विधेयक पर व्यापक चर्चा और समीक्षा करें, ताकि इसके संभावित नकारात्मक प्रभावों से बचा जा सके और विधेयक में उचित संशोधन किया जा सके। ऐसा करके वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों को शर्मिंदगी से बचा लेंगे।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)