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संपादकीय : अडानी सेठ का क्या करें?

अजीत पवार और एकनाथ शिंदे कितना भी शौर्य का और स्वाभिमानी होने का दिखावा करें, लेकिन वे मोदी-शाह के गुलाम हैं। ये सब बंदर हैं और इनके मदारी वहां गुजरात में बैठे हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो अडानी पर अपने बयान को लेकर अजीत पवार २४ घंटे के भीतर ‘यू-टर्न’ नहीं लेते यानी पलटी नहीं मारते। पवार ने खुलासा किया था कि सरकार गिराने के खेल को लेकर जो बैठक हुई थी, उसमें फडणवीस और अन्य लोगों के साथ अडानी सेठ खुद मौजूद थे, इससे उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि महाराष्ट्र की राजनीति पर मोदी-शाह और अडानी की वैâसी पकड़ है, लेकिन अगले २४ घंटे में अजीत पवार पलट गए और अपने बयान से अडानी सेठ का नाम हटा दिया। अब अजीत पवार कह रहे हैं, ‘अडानी सेठ उस बैठक में मौजूद नहीं थे।’ यह दिल्ली-गुजरात में भाजपा की सेठ मंडली के डंडे का कमाल है कि अजीत पवार को पीछे हटना पड़ा। अजीत पवार हमेशा अपने भाषणों में कहते हैं, ‘मैं किसी के बाप से नहीं डरता। मैं हमेशा सच बोलता हूं।’ लेकिन अजीत पवार की मौजूदा हालत और चेहरे को देखते हुए ये बात सच नहीं लगती। शिंदे-अजीत पवार के मदारी डमरू बजाते हैं और उनके हुक्म पर ये नाचते-कूदते हैं। महाराष्ट्र की जनता ये देख रही है। भाजपा की राजनीति पैसे वालों की राजनीति है। जो हमारे विचारों के नहीं हैं उन्हें हम पैसों के बल पर खरीद सकते हैं उनका यह गुरुर महाराष्ट्र को रसातल में डालता दिखाई दे रहा है। शिंदे और अजीत पवार ने दावा किया था कि उन्हें अपने ऊंचे आदर्शों के कारण अपनी-अपनी पार्टियां छोड़नी पड़ीं। शिंदे ने कहा, ‘यह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा कि उद्धव ठाकरे हिंदुत्व से अलग हो जाएं।’ लेकिन क्या गौतम अडानी उनके नए हिंदूहृदयसम्राट हैं? या फिर इन्हीं धनाढ्य हिंदू सम्राटों के मार्गदर्शन में बैठकें कर शिवसेना को तोड़ने और महाराष्ट्र की सरकार को उखाड़ फेंकने के पैâसले किए गए? राज्य में अडानी, लोढ़ा, आशर आदि बिल्डरों और उद्योगपतियों की दलाली करनेवाली सरकार सत्ता में बैठा दी गई है। अजीत पवार ने कह दिया कि महाराष्ट्र सरकार की चाबी अडानी सेठ के हाथ में है। भले ही वे बाद में मुकर गए, लेकिन उन्होंने जो कहा वही सच है। उद्योगपति राज्य के दुश्मन नहीं होते, लेकिन अडानी सेठ जैसे उद्योगपति महाराष्ट्र को ही निगलने पर तुले हैं और इसके लिए उन्हें ऐसी सरकार की जरूरत है जो उनके हुक्म का पालन करें। उद्धव ठाकरे की सरकार गिराने के लिए विधायकों को पचास-पचास करोड़ रुपए दिए गए थे। अजीत पवार के खुलासे से पता चला कि ये सारा पैसा किसने मुहैया कराया! ठाकरे सरकार को गिराने के लिए करीब दो हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए और इसका बडा़ भार अडानी सेठ ने उठाया। तो इस खर्च की भरपाई वैâसे करें? सेठजी बिजनेस करते हैं। उन्होंने चैरिटी शुरू नहीं की है। उनका हिसाब है कि अगर रुपया लगाया जाए तो बदले में पांच हजार मिलने चाहिए इसलिए अडानी सेठ ने महाराष्ट्र में सरकार को गिराने के लिए जो दो हजार करोड़ रुपए लगाए उसके बदले में कम से कम डेढ़ लाख करोड़ रुपए मिलेंगे और मुंबई की सारी जमीनें उनकी जेब में डाल दी गयी हैं। धारावी पुनर्वास सबसे बड़ा ‘टीडीआर’ घोटाला है। इससे भाजपा के इन सेठजी को सवा लाख करोड़ मिलेंगे। इसके अलावा मुंबई में साल्ट पैन, टोल नाका और दूध डेयरियों की जमीनें भी मिल जाएंगी। इस तरह सेठजी को सरकार गिराने और विधायकों को खरीदने के खर्च के बदले कम से कम डेढ़ लाख करोड़ मिलेंगे। इस कमाई का बड़ा हिस्सा वे महाराष्ट्र चुनाव में भी लगा रहे होंगे। भाजपा का ये पैसा उन तक दोबारा पहुंच रहा है इसलिए अगर अडानी सेठ भाजपा की राजनीतिक बैठकों में शामिल हो रहे हैं तो इसमें कोई चौंकाने वाली बात नहीं है। साफ दिख रहा है कि अडानी सेठ सीधे तौर पर देश के कामकाज और प्रशासन में दखल दे रहे हैं। अमेरिका के ‘अडानी’ एलन मस्क ने अपना खजाना खाली कर दिया, ताकि ट्रंप राष्ट्रपति चुनाव जीत सकें। अब ट्रंप ने जीतते ही एलन मस्क को अपनी वैâबिनेट में शामिल कर लिया है। यह एक सीधा व्यापार और लेन-देन है। तो चाहे वह मस्क हों या अडानी सेठ, निवेश किया गया पैसा दोगुना ही वसूल करेंगे। अडानी महाराष्ट्र में राजनीतिक बैठकों में भाग लेते हैं और उन्हें मनचाहा परिणाम मिलता है। हमारे राज्य में ऐसा कभी नहीं हुआ। यह सच है कि उद्योगपतियों का बढ़ता हस्तक्षेप राज्य के विकास में बाधक बनेगा, लेकिन अगर राज्य के सूत्र अडानी सेठ जैसे उद्योगपतियों के पास चले जाएं और अगर चीजें उनके मनमाफिक नहीं होंगी, तो वे सरकार को अस्थिर करने में भी संकोच नहीं करेंगे। महात्मा गांधी गुजरात से हैं। वे दक्षिण अप्रâीका से भारत लौटे। गुजरात में रहे। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए अनुकूल वातावरण बनाने की कोशिश की, लेकिन गुजरात की धरती पर स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में ठंडी प्रतिक्रिया मिलते ही उन्होंने गुजरात छोड़कर महाराष्ट्र जाने का पैâसला किया। ‘यहां व्यापार मंडल है। ऐसे लोगों को आजादी से कोई प्यार नहीं। वे अपने व्यापार और धंधे में ही अधिक रुचि रखते हैं।’ गांधी जी को लगा कि वे गुजरात में रहकर आजादी के कार्य को आगे नहीं बढ़ा सकते और वे महाराष्ट्र चले गए। जहां हर चीज तराजू और पैसे में तौला जाता है, यदि सत्ता ऐसे लोगों के हाथ में चली जाए तो देश व राज्य एक बाजार बन जाता है और व्यापार के लिए राजनीति ही हथिया ली जाती है। अजीत पवार ने अडानी सेठ के बारे में सच बताया और २४ घंटे में मुकर गए। इसके पीछे दबाव ही है। महाराष्ट्र में सरकार गिराने के पीछे घाती शिंदे गैंग की कोई सोच और नैतिकता नहीं थी। यह सूरज की रोशनी की तरह सत्य है कि महाविकास आघाड़ी सरकार को इसलिए उखाड़ फेंका गया क्योंकि अडानी सेठ को मुंबई लूटनी है। इन अडानी सेठ का क्या करें? इसका पैâसला महाराष्ट्र की जनता को करना है।

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