खुले आसमानों में,
ले चल हमें कहीं दूर
इतना दूर, जितना दूर हो सके
वहां गुजरना है, जहां खुशी मिल सके
पहाड़ हो, झरने हो,
और मौसमी ताजी हवा हो
तुम हो संग, कुछ पल बाहों में,
और वहां फूल की खुशबू हो,
हां, जहां हमारी जिंदगी हो
जीना है इन बहारों में,
खुलके, हां जीना है
कुछ खुशी ले के, कुछ गम
ले के गुजरना है
उम्र भर की रात छोड़ के,
सवेरे के माथ चूमना है
कहीं दूर, बहुत दूर जाना है
खुले आसमानों में,
ले चल हमें कहीं दूर।
-मनोज कुमार
गोण्डा, उत्तर प्रदेश