मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनारात जाए या फिर सहर जाए

रात जाए या फिर सहर जाए

रात जाए या फिर सहर जाए
इश्क लेकिन जरा निखर जाए
तू ही दिखता है रात दिन अब तो
ये नजर जब जिधर-जिधर जाए
दाग दिल का छुपाए बैठे हैं
फिर कहीं दर्द न उभर जाए
शाम हो और साथ तेरा हो
वस्ल की रंगो बू बिखर जाए
तीरगी आसमां पे छाई है
चांद आने से न मुकर जाए
ऐ कनक सोच में पड़ी हूं मैं
कैसे कह दूं सनम को घर जाए।
-डॉ. कनक लता तिवारी

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