प्रेम यादव
‘ये फूल कोई हमको विरासत में नहीं मिले हैं,
तुमने मेरा कांटों भरा विस्तर नहीं देखा।’
बशीर बद्र की ये पंक्तियां डॉ. रवि रमेशचंद्र शुक्ला के जीवन को पूरी तरह परिभाषित करती हैं। वर्तमान में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन संस्थान में सह-प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष के पद पर कार्यरत डॉ. रवि रमेश का जीवन संघर्ष और सफलता की मिसाल है।
अक्टूबर १९८४ में जन्में डॉ. रवि रमेश ने मुंबई और प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश) में संघर्षपूर्ण बचपन बिताया। प्राथमिक से लेकर १२वीं तक की शिक्षा सरकारी हिंदी और मराठी माध्यम के विद्यालयों में पूरी की। वडाला, मुंबई की झोपड़पट्टी में रहते हुए इन्होंने रामनारायण रुईया महाविद्यालय, माटुंगा से राजनीति शास्त्र में स्नातक किया। इनके पिता पहले ट्रक चालक थे और बाद में बेस्ट (ँEएऊ) में चालक रहे। इनकी मां एक गृहिणी थीं। शिक्षा को सर्वोपरि मानते हुए माता-पिता ने इन्हें हर संभव समर्थन किया।
शिक्षा को हर समस्या का समाधान माननेवाले डॉ. रवि रमेश ने विद्या वाचस्पति (पीएचडी), स्नातकोत्तर (राजनीति शास्त्र), विधि स्नातक (एलएलबी), स्नातकोत्तर (अपराध विज्ञान और पुलिस प्रशासन), पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा, मानवाधिकार में स्नातकोत्तर डिप्लोमा जैसे कई पाठ्यक्रम पूरे किए। इसके साथ ही इन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी)-नेट परीक्षा दो बार उत्तीर्ण की।
कम उम्र से ही इन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ काम करना शुरू कर दिया। ११ वर्ष की उम्र में बिस्कुट बेकरी में १५० रुपए प्रति माह की नौकरी की। वडाला नाके पर ऑटोरिक्शा धोने का काम करते थे, जहां इन्हें प्रति रिक्शा ५ रुपए मिलते थे। ८वीं के बाद इन्होंने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया और अपनी मेहनत और माता-पिता के त्याग और आशीर्वाद के बल पर अपनी पढ़ाई जारी रखी।
२३ वर्ष की उम्र में २००८ में इन्होंने उल्हासनगर के सीएचएम महाविद्यालय में पत्रकारिता के प्रवक्ता के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। २००९ में मुंबई के आर.डी. नेशनल महाविद्यालय में सहायक प्राध्यापक बने और २०२३ तक वहां राजनीति शास्त्र विभाग के प्रमुख रहे।
इन्होंने २० से अधिक शोध प्रपत्र लिखे, ५० से अधिक राष्ट्रीय संगोष्ठियों में व्याख्यान दिए और दो पुस्तकों का लेखन किया। इनकी कविताएं और लेख कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। हिंदी साहित्य के प्रति इनके योगदान के लिए इन्हें महाराष्ट्र सरकार के हिंदी साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
डॉ. रवि रमेश ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ जुड़कर राष्ट्रवाद और अंत्योदय के विचारों को आत्मसात किया। ये पश्चिम मुंबई में एबीवीपी के शिक्षक अध्यक्ष भी रहे। मीरा-भायंदर में सफाईकर्मियों के अधिकारों के लिए इन्होंने ‘निर्भय भारत’ संस्था के साथ काम किया और कई आंदोलन किए।
डॉ. रवि रमेश का मानना है कि माता-पिता का आशीर्वाद, संगठन से प्राप्त संस्कार और कठोर मेहनत के बल पर जीवन में हर चुनौती को पार किया जा सकता है। इनका जीवन संघर्षशील युवाओं के लिए एक प्रेरणा है, जो दिखाता है कि समर्पण और मेहनत से हर मंज़िल पाई जा सकती है।