डाॅ. रवीन्द्र कुमार
एक सूबे में सभी थानों में आयोजन किया गया कि पुलिस कर्मी ईमानदारी की शपथ लेंगे, हमारे देश में यदा-कदा शपथ लेने का रिवाज है। हमारे आम जीवन में भी कसम लेने देने की दीर्घ परंपरा है। अदालत से लेकर समाज में हम सुबह-शाम कसम खाते हैं, खिलाते हैं। बॉलीवुड में बहुत सारे गीत इसी कसम पर बने हैं।…हे मैंने कसम ली…हे तूने कसम ली…करवटें बदलते रहे सारी रात हम…आपकी कसम आदि आदि। साथ ही एक ये भी गाना है- ‘कसमें वादे प्यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या ?’ सरकारी अमले को ना जाने क्यूं बार-बार शपथ दिलाई जाती है। कभी ईमानदारी की, कभी राष्ट्रीय एकता की, कभी साम्प्रदायिक सद्भाव की। ये सब शपथें उस से अलग है, जो इंसान नौकरी लगने पर, ड्यूटी जॉइन करते वक़्त लेते हैं।
इसका अर्थ यह हुआ कि आप जो शपथ लेते हैं, उसकी कोई एक्स्पायरी डेट होती है और बार-बार उसको रिन्यू करना होता है। इसीलिए साल में न जाने कितनी बार सबको दफ्तर से बाहर निकाल मैदान में या कॉरीडोर में एकत्रित कर के यह शपथ समारोह किया जाता है। अक्सर यह द्विभाषी होती है। ऐसा न हो कि आपने शपथ तो ले ली हिंदी में और उसका उल्लंघन कर दिया इंग्लिश में। इस बात को ध्यान में रखते हुए ही द्विभाषी शपथ का प्रबंध किया गया है। आप सोचिए हमने ईमानदारी को कितना सुलभ बना दिया है, बस एक शपथ समारोह और हम मान लेते हैं कि आप अब साल भर ईमानदारी और सत्यनिष्ठा से नौकरी करेंगे। बिना किसी सांप्रदायिक भेदभाव के।
जिस केस की मैं बात कर रहा हूं, इसमें एक शहर में सुबह ईमानदारी का शपथ समारोह हुआ। सभी पुलिकर्मियों ने बढ़-चढ़ कर ईमानदारी की शपथ ली। उनका उत्साह और जोश देखने लायक था। ऐसा मालूम देता था कि इस शहर में तो पुलिसकर्मी पहले से ही ईमानदारी को लेकर इतने उत्साहित हैं कि हो न हो ये सब पहले से ही घोर ईमानदार हैं। समारोह हंसी-खुशी से निपट गया। सब भीषण खुश थे, क्या शपथ लेने वाले क्या शपथ दिलाने वाले।
शाम होते होते ईमानदारी वेंटीलेटर पर रखे मरीज की तरह आखिरी सांस लेने लगी। तभी पुलिस ईमानदारी के पैबंद लगे चोले को उतार वर्दी डाट के अपने काम पर निकल पड़ी। एक घर में जहां उन्हें पता था जुआ होता है, दबिश दे दी। सारे जुआरी धर लिए गए। साथ ही दांव पर लगी तमाम धनराशि जब्त कर ली। सबको पकड़ कर थाने ले जाया गया। वहां उन्होंने कुछ शिखर वार्ता की और सभी को चेतावनी देकर छोड़ दिया गया, लेकिन पता चला कि पीछे खेल कुछ और ही हो गया था। आजकल जगह-जगह ये ‘खेला’ खूब चल रेला है।
बाहर आकर सभी जुआरी भाइयों ने बताया कि पुलिस ने ना केवल सारी जुए की धनराशि लूट ली, बल्कि उनको छोड़ने के एवज में सब से एक अच्छी-ख़ासी रकम बतौर रिश्वत ली है। यूं रिश्वत की रकम मिलते ही सभी को ईमानदारी से बरी कर दिया है। उम्मीद तो यही थी कि इसके बाद सब सुख से रहने लग जाएंगे, किंतु जुआरियों ने बाहर आकर शोर मचाना शुरू कर दिया और असल कहानी बता दी। आनन-फानन में बात दूर तक चली गई। परिणामस्वरूप समाचार यह है कि चौकी इंचार्ज और चार पुलिसवाले मुअत्तल कर दिये गए हैं। सुबह ली गई ईमानदारी की शपथ ने शाम होते-होते दम तोड़ दिया।
जरा सोचिए! ईमानदारी की उम्र कितनी कम रह गई है। सुबह का भूखा ईमानदार शाम को रिश्वत खा जाये तो उसे ईमानदार नहीं कहते।