प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव के प्रचार में मशगूल हैं और मणिपुर में एक बार फिर हिंसा की आग भड़क उठी है। वहां का जिरीबाम जिला इस समय हिंसा का केंद्र बन गया है। पिछले हफ्ते से ही यहां हिंसा की आग भड़की हुई है। शनिवार को वहां से अपहृत एक ही परिवार की तीन महिलाओं और तीन बच्चों के शव मिलने से हालात और भी गरमा गए हैं। लोगों का गुस्सा इतना बढ़ गया कि उन्होंने मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के साथ स्वास्थ्य मंत्री रूपम रंजन के आवास पर हमला किया। इसके अलावा तीन विधायकों के घरों में आग लगा दी गई। मणिपुर पिछले डेढ़ साल से जातीय हिंसा की आग में जल रहा है। न तो प्रधानमंत्री और न ही केंद्रीय गृहमंत्री को महसूस होता है कि वे वहां जाकर इस आग को बुझाएं। इसलिए वहां कुछ समय के लिए शांति नजर आती है, लेकिन एक घटना के कारण कुकी और मैतेई नामक दो समुदायों के बीच धधकता हुआ ‘लावा’ फूट पड़ता है और मणिपुर बार-बार हिंसा की आग में जलता रहता है। पिछले हफ्ते गुरुवार को हमलावरों ने एक आदिवासी महिला के साथ दरिंदगी की और फिर उसे जिंदा जला दिया। हमलावर इससे संतुष्ट नहीं थे। बाद में उन्होंने १७ घरों में आग लगा दी। ये भयानक हादसा जिरीबाम जिले में हुआ। इस घटना के बाद सुरक्षा बलों ने सोमवार को जिरीबाम इलाके में बड़ी कार्रवाई की। उन्होंने वहां मुठभेड़ में ११ संदिग्ध आतंकियों को मार गिराया। इस मुठभेड़ में सीआरपीएफ का एक जवान भी घायल हो गया। हालांकि सुरक्षा बलों की यह सफलता बड़ी है, लेकिन हम यह वैâसे भूल सकते हैं कि आतंकियों ने सीआरपीएफ वैंâप पर हमला किया था? अब कुकी संगठनों ने आरोप लगाया है कि यह एनकाउंटर फर्जी है। इसलिए इस एनकाउंटर को लेकर भी सवालिया निशान खड़ा हो गया है। इस मुठभेड़ के प्रतिशोध में फिर से मणिपुर में जगह-जगह पर हमले शुरू हो गए हैं। आतंकियों ने जरूरी सामान और अनाज ले जा रहे ट्रकों में आग लगा दी। महिलाओं और बच्चों को बंधक बनाया जा रहा है। शनिवार को इसी तरह अपहृत तीन महिलाओं और तीन बच्चों के शव बरामद किए गए। जिसके चलते लोगों ने सीधे मुख्यमंत्री आवास पर हमला बोल दिया। हालात बिगड़ने से मणिपुर के ६ पुलिस थानों के अधिकार क्षेत्रों में केंद्र सरकार पर सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम ‘अफस्पा’ एक्ट लागू करने की नौबत आ गई है। यह कानून जिरीबाम जिले में भी लागू होगा, जहां इस समय हिंसा भड़की हुई है। शेखी बघारते हुए यह कहने वाले कि मणिपुर से अफस्पा हटा दिया गया है केंद्र सरकार को मणिपुर में फिर से उसे लागू करने की नौबत क्यों आ गई है? मणिपुर में हिंसा ने अब तक २५० से ज्यादा निर्दोष लोगों की जान ले ली है। ७ नवंबर से १७ नवंबर तक सिर्फ दस दिनों में वहां १७ लोगों की मौत हो चुकी है। मणिपुर में सांप्रदायिक हिंसा की आग नए इलाकों में पैâल रही है। लेकिन देश के प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री इसे नजरअंदाज कर महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के प्रचार में मगन हैं। प्रधानमंत्री ‘एक हैं तो सेफ हैं’ जैसे अनुचित नारे लगाते फिर रहे हैं। मोदी साहब, न केवल महाराष्ट्र और झारखंड, बल्कि यह पूरा देश ‘एक’ भी है और ‘सेफ’ भी है। जाति-धार्मिक विभाजन से आप उसे ‘अनसेफ’ बना रहे हैं। यहां तक कि मणिपुर जैसा संवेदनशील सीमावर्ती राज्य भी आज जातीय भेदभाव और उससे होने वाली हिंसा से असुरक्षित है तो सिर्फ आपके शासन के कारण। पहले मणिपुर को ‘सेफ’ बनाएं और फिर महाराष्ट्र-झारखंड में धार्मिक एकता के घड़ियाली आंसू बहाएं!