मुख्यपृष्ठस्तंभविकास मार्टम : ईवी; ‘बियोंड अवर ड्रीम!’.. ‘सपनों से परे’ इलेक्ट्रिक वाहन?

विकास मार्टम : ईवी; ‘बियोंड अवर ड्रीम!’.. ‘सपनों से परे’ इलेक्ट्रिक वाहन?

अनिल तिवारी मुंबई

आज देश-दुनिया के सामने सबसे बड़ा मुद्दा इलेक्ट्रॉनिक वाहनों, यानी ईवी के भविष्य का है। पर्यावरण की सुरक्षा का है। तेल की निर्भरता का है, मुद्रा भंडार के बोझ का है और इन सबमें सबसे अहम रोजगार के नए अवसर पैदा करने का है। इसे लेकर हम हिंदुस्थानियों के लिए कुछ खबरें अच्छी हैं तो कई बेहद चिंताजनक भी। अच्छी खबर यह कि हिंदुस्थानियों ने ईवी की ओर तेजी से रुख किया है। नतीजे में इसकी बिक्री भी बढ़ी है। कंपनियां हिंदुस्थान में समाधानकारक संख्या में ईवी बेच रही हैं। परंतु इसमें चिंता का विषय यह है कि कार सेगमेंट में इतने अच्छे प्रदर्शन के बावजूद देशी कंपनियां बिक्री में चीनी कंपनियों से धीरे-धीरे पिछड़ने लगी हैं। क्योंकि हिंदुस्थान की नीतिगत कमजोरियां उनके लिए चिंता का विषय हैं। इस सेगमेंट में चीनी कंपनी ‘बियोंड योर ड्रीम’ (बीवायडी) ने तेजी से बढ़त बनाई है और यदि सरकार के रूख में अभी भी बदलाव नहीं आया तो निश्चित तौर हिंदुस्थान में स्वदेशी ईवी का विषय निराशाजनक होगा। ‘बियोंड अवर ड्रीम’ यानी हमारे सपनों से परे साबित हो जाएगा। फिर भी हम लापरवाही क्यों कर रहे हैं? इसे समझने के लिए पहले नीचे दिए गए कुछ आंकड़ों को समझने की जरूरत है।
अभी कुछ माह पहले के ही आंकड़ों पर गौर करें तो वे यह बताते हैं कि इलेक्ट्रिक कार सेगमेंट में देश की सबसे बड़ी ईवी निर्माता टाटा मोटर्स की सालाना बिक्री में गिरावट आई है। हां, देश की सबसे पहली ईवी निर्माता महिंद्रा एंड महिंद्रा का प्रदर्शन कुछ सुधरा जरूर है, फिर भी इन दोनों देशी जायंट से कहीं बेहतर प्रदर्शन चाइना की एक नई नवेली कंपनी ‘बीवायडी’ करती नजर आ रही है। किसी जमाने में खिलौने और नोकिया जैसे सेलफोन्स की बैटरी बनाने वाली यह छोटी सी चीनी कंपनी आज दुनिया की सबसे बड़ी ईवी निर्माता बन चुकी है। इतनी बड़ी कि उसने एलन मस्क की टेस्ला को भी पीछे छोड़ दिया है और अब वह इंडिया का ९० प्रतिशत ईवी मार्वेâट वैâप्चर करने का टारगेट भी सेट कर चुकी है और उसे खुद पर इतना भरोसा हुआ तो केवल इसलिए कि हमारी कंपनियां तकनीक में उससे काफी पीछे हैं। जिस हिसाब से उसने हिंदुस्थान में दस्तक देते ही सालाना १८९ फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की है, उस आधार पर उसकी सफलता में कोई शंका भी नजर नहीं आती। उसकी बेतहाशा बिक्री, टाटा मोटर्स की सालाना १३ फीसदी की गिरावट के मद्देनजर देश के लिए चिंता का विषय है।
टाटा मोटर्स अब तक देश की अग्रणी ईवी निर्माता और विक्रेता रही है। उसके ईवी सेगमेंट में पंच, नेक्सॉन, टियागो, टिगोर और कर्व जैसे सर्वाधिक पर्याय उपलब्ध हैं। फिर भी वो पिछड़ रही है। इस कड़ी में महिंद्रा ने भले ही २८ फीसदी के उछाल के साथ कुछ बेहतर कारोबार किया है तब भी वो चीनी कंपनी बीवायडी की भारी-भरकम बढ़त की तुलना में काफी कमजोर है। क्यों? तो इसलिए कि बीवायडी की बेहतरीन कारें ज्यादा यूनिक फीचर्स, इंप्रेसिव व एलिगेंट लुक और किफायती कीमतों पर उपलब्ध हैं। कंपनी भविष्य की सोच के मामले में हर लिहाज से आगे है। वो देश-विदेश की सभी ईवी जायंट्स की तुलना में तीन गुना से ज्यादा पार्ट्स खुद ही बनाती है। ७० प्रतिशत खुद के बने हुए पार्ट्स इस्तेमाल करती है जबकि दूसरी बड़ी कंपनियां केवल २० से ३० प्रतिशत ही पार्ट्स खुद बना पाती हैं। बीवायडी ने अपनी बैटरी पर रिसर्च और डेवलपमेंट करके उसे काफी किफायती और यूनिक बना लिया है। उसकी रिवॉल्यूशनरी ब्लैड बैटरी दुनिया में धूम मचा रही है। यही कारण है कि बीवायडी से, न केवल देशी कंपनियां पिछड़ रही हैं, बल्कि बीएमडब्ल्यू, हुंडई, मर्सिडीज और सिट्रोएन जैसी विदेशी जायंट भी पीछे रह गई हैं। यहां हिंदुस्थान में एमजी मोटर्स और ऑडी का प्रदर्शन क्रमश: २३ और ८९ फीसदी सालाना के साथ मामूली तौर पर सुधरा जरूर है, पर वो वैश्विक स्तर पर बीवायडी से काफी पीछे है। इसी तरह बीएमडब्ल्यू (३५ प्रतिशत), हुंडई (५५ प्रतिशत), मर्सिडीज (१९ प्रतिशत) और सिट्रोएन (३० प्रतिशत) जैसी विदेशी जायंट इसकी हिंदुस्थान में १८९ फीसदी बिक्री की तुलना में कहीं नहीं ठहरती हैं। यहां महिंद्रा, एमजी और ऑडी तक की संयुक्त बिक्री १४० फीसदी तक सिमट गई है। टाटा मोटर्स, सिट्रोएन, बीएमडब्ल्यू, हुंडई और मर्सिडीज की बिक्री में संयुक्त रूप से १६० फीसदी की गिरावट आई है, जो निश्चित तौर पर भारतीय ईवी कार सेगमेंट में चीनी बीवायडी के बढ़ते वर्चस्व की ओर मजबूत इशारा करती है।
१९९५ में वजूद में आई बीवायडी, २००३ में कहीं जाकर ऑटो सेक्टर में उतरी थी और २०१० तक उसने अपना पहला संपूर्ण इलेक्ट्रिक वेहिकल बाजार में उतार दिया था। आज १४-१५ साल बाद स्थिति यह है कि वह दुनिया की टॉप ईवी निर्माता है। उसने २०२३ में दुनिया भर में ३ मिलियन से ज्यादा ईवी बेची थीं। आज कंपनी कई सेक्टर में उतर चुकी है क्योंकि उसने भविष्य की टेक्नोलॉजी पर निवेश किया है। उसे ‘कॉस्ट इफेक्टिव’ और ‘वेल्यू फॉर मनी’ के तहत लोकप्रिय बनाया है, आम लोगों तक पहुंचाया है। जबकि हमारी कंपनियों के महंगे प्रोडक्ट ८० प्रतिशत लोगों की पहुंच से बाहर हैं। केवल सक्षम लोग ही इन्हें खरीदने की हिम्मत कर पा रहे हैं। हमारे प्रोडक्ट ही हमारे लिए ‘बियोंड अवर ड्रीम’ साबित हो रहे हैं। तो ईवी का निर्माण क्यों ने हो।
असल में, आज ईवी जैसी तकनीक जनता की या ऑटोमोबाइल सेक्टर की जरूरत नहीं है बल्कि यह देश की जरूरत है। चीन इसमें भारी निवेश कर ही रहा है। दुनिया की सड़कों पर दौड़ने वाले आधे से ज्यादा वाहन उसके हैं। खुद चीन हर साल १० मिलियन ईवी सड़कों पर उतारता है। पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा ईवी चीन ही एक्सपोर्ट करता है, उस देश को भी अभी तक ईवी सेक्टर में निवेश की आवश्यकता महसूस हो रही है, ऑटोमोबाइल सेक्टर को प्रोत्साहन की जरूरत महसूस हो रही है और हमारा देश, जिसके पास अभी तक एक प्रतिशत भी ईवी का शेयर नहीं है कार सेगमेंट में, हैवी वेहिकल सेगमेंट में तो वह शून्य के बराबर है, वह इस सेगमेंट में सब्सिडी बंद करने की सोच रहा है। इसलिए सवाल उठता है कि जब आप इंडस्ट्री को प्रोत्साहन ही नहीं देंगे तो वह निवेश करेगी ही क्यों? मारुति मोटर्स इसका जीता जागता प्रमाण है। इस पर चर्चा अगले अंक में जरूर करेंगे, फिलहाल इतना समझ लेना काफी है कि हिंदुस्थान के इन हालातों के लिए देश के नीति नियंता ही जिम्मेदार हैं, जो एक लंबे अर्से के बाद भी देश में ईवी के लिए एक सकारात्मक माहौल, पर्याप्त इंप्रâास्ट्रक्चर और अनुकूल इको सिस्टम तैयार करने में असफल रहे हैं। सत्ता संभालने के दस वर्षों बाद कहीं जाकर अपने तीसरे चुनाव से ठीक पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने ईवी के लिए एक नई पॉलिसी को मंजूरी दी थी, उसमें भी ग्लोबल ईवी मैन्युपैâक्चरर्स को देश में निवेश के लिए आकर्षित करने की योजना है। देशी प्रोत्साहन पर फोकस ही नहीं है। इस योजना के तहत देश में कम से कम ५० करोड़ डॉलर (४,२५० करोड़ रुपयों) के निवेश पर सीमा शुल्क में रियायतें दी जानी हैं। पर देश में आर एंड डी, टैक्स बेनिफिट, सब्सिडी को लेकर अस्पष्टता है।
कुल मिलाकर, हमारी पूरी कवायद टेस्ला जैसी कंपनियों को आकर्षित करने की है, जबकि टेस्ला का पूरा रुझान अब तक चीन की ओर ही रहा है। उसी चीन की ओर जिसकी केवल एक कंपनी ने तमाम तकनीकी और प्रशासनिक अड़चनों के बावजूद हिंदुस्थानी बाजार में जबरदस्त एंट्री मारकर देशी ईवी निर्माताओं के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। चुनौती भी ऐसी कि जिससे पार पाना हमारी कंपनियों के लिए बेहद मुश्किल है। खासकर, तब जब मौजूदा परिस्थितियों में देश की ईवी नीति उन्हें ज्यादा प्रोत्साहन न देती हो। न उन्हें करों में छूट का सहारा मिलता हो, न ही सेगमेंट की ओर रुझान बढ़ाने में उपभोक्ताओं के लिए पर्याप्त पारदर्शी सब्सिडी का पावर। उस पर परिवहन मंत्री नितिन गडकरी कहते हैं, ‘मेरे विचार से ईवी के निर्माण को अब सरकार द्वारा सब्सिडी देने की जरूरत नहीं है। सब्सिडी की मांग अब उचित नहीं रह गई। पहले ईवी के विनिर्माण की लागत बहुत अधिक थी, लेकिन अब मांग बढ़ी है, लागत घटी है।’ पर मांग किसकी बढ़ी है और लागत किसकी घटी है? यह शायद उन्हें पता ही नहीं। ये वही गडकरी हैं जो कोविड काल के दौरान दावा करते थे कि दो-तीन साल में ईवी का इंप्रâा पूरे देश में होगा। तमाम गाड़ियां ईवी में तब्दील हो चुकी होंगी। इन्हें शायद ठीक-ठीक पता ही नहीं है कि अब तक देश में एक प्रतिशत ईवी कार भी नही हैं। भारी वाहनों की तो बात ही छोड़ दो। वहीं चीन पूरी दुनिया पर राज कर रहा है। ऐसी स्थिति क्यों बनी है, क्यों ईवी ‘बियोंड अवर ड्रीम’ साबित हो रही है, कौन इसके लिए जिम्मेदार है और दुनिया आज इंडस्ट्री को रोजगार और रिवेन्यू के लिहाज से वैâसे देख रही है, इसका काफी कुछ अंदाजा आपको हो ही गया होगा, फिर भी इस सब पर विस्तृत चर्चा करेंगे अगले अंक में।

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