सामना संवाददाता / मुंबई
महाराष्ट्र में इंफ्लुएंजा जानलेवा बन गया है। इस साल ३३६ दिनों में न केवल २१,३३,६८५ संदिग्ध रोगी मिले हैं, बल्कि इनमें से २,३२४ मरीजों में बीमारी की पुष्टि भी हुई है। इतना ही नहीं, इस अवधि में ५७ लोगों की जानें भी चली गई हैं। दूसरी तरह इस बीमारी की रोकथाम के लिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं, जिससे आम नागरिकों की चिंताएं बढ़ रही हैं।
उल्लेखनीय है कि मौसम की नम और ह्यूमिड परिस्थितियां इंफ्लुएंजा के फैलने के लिए एकदम सही माहौल पैदा करती है, क्योंकि इस बार बारिश काफी ज्यादा हुई है तो फ्लू फैलने के आसार भी ज्यादा हैं। इससे सभी उम्र के लोग प्रभावित होते हैं। उनमें से कुछ मरीजों की स्थिति गंभीर भी हो सकती है। जिन मरीजों के केस फ्लू के कारण बिगड़ जाते हैं, उन्हें अस्पताल में भर्ती भी करना पड़ता है। कुछ मामलों में ऑक्सीजन देने की भी जरूरत पड़ती है। मामलों में बढ़ोतरी का कारण मौसमी बदलाव और संभावित नए वायरस स्ट्रेन को भी माना जा सकता है।
२५ मरीज हैं भर्ती
स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक, एक जनवरी से १८ नवंबर के बीच संदिग्ध मिले मरीजों में से ५,७५१ संदिग्ध मरीजों को ऑसेलटॅमीवीर दिए गए हैं। इसके साथ ही २,३२४ संक्रमितों में से एच१एन१ से ५६ और एच३एन१ से पीड़ित मरीजों की इलाज के दौरान मौत हो गई। फिलहाल इस समय राज्य के विभिन्न अस्पतालों में २५ मरीजों का इलाज हो रहा है।
स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक, नियमित रोगी सर्वेक्षण, सामुदायिक सर्वेक्षण और इंफ्लुएंजा के लिए दिशानिर्देश जारी किए गए हैं। इसी प्रकार राज्य के सभी जिला स्वास्थ्य अधिकारियों, जिला सर्जनों और चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारियों को वीसी द्वारा निर्देशित किया गया है। वर्गीकरण के अनुसार, फ्लू जैसे मरीजों का इलाज बिना देरी किए किया जाता है। राज्य के सरकारी अस्पतालों में आइसोलेशन रूम बनाए गए हैं। आवश्यक दवाएं और उपकरण मौजूद हैं। बीमारी की रोकथाम और डेथ ऑडिट के संबंध में राज्य स्तरीय निर्देश दिए गए हैं।