दीपक तिवारी
विदिशा। श्री दादाजी मनोकामना पूर्ण सिद्ध श्री हनुमान मंदिर रंगई रेलवे पुल विदिशा के महंत गुरुदेव महामंडलेश्वर श्री विश्वंभरदास जी रामायणी महाराज ने कहा कि संसार में सुख केवल भगवान की भक्ति में है और दुख भगवान से विमुख होना है। यह बात उन्होंने रंगई आश्रम में सत्संग में कही।
उन्होंने कहा कि लंका से मां सीताजी का समाचार लेकर हनुमानजी जब लौटे तब भगवान श्री राम पूछते हैं कि कहो हनुमान मेरी सीता किस प्रकार से हैं। चूंकि हनुमानजी ने लंका में अशोक के पेड़ पर बैठकर सारी स्थिति देखी थी। इसलिए हनुमान जी भगवान से कहते हैं कि-
निमिष-निमिष करुनानिधि जाहिं कलप सम बीति।
बेगि चलिअ प्रभु आनिअ भुज बल खल दल जीति॥
हे भगवान ! माता सीता का एक-एक पल कल्प के समान बीतता है। अतः हे प्रभु, तुरंत चलिए और अपनी भुजाओं के बल से दुष्टों के दल को जीतकर सीताजी को ले आइए।
कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई। जब तव सुमिरन भजन न होई॥
हनुमान जी ने कहा- हे प्रभु! विपत्ति तो वही (तभी) है जब आपका भजन-स्मरण न हो।
पूज्य महाराज जी ने कहा कि विपत्ति वही है जिसमें भगवान का भजन ना हो, आराधना ना हो और स्मरण न हो। भगवान के भजन में ही सुख है, बाकी संसार जिसमें हम सुख ढूंढते हैं वहां सुख है ही नहीं। इसलिए अपने जीवन को सफल बनाना है तो हमें अपने-अपने धर्म का पालन कर भगवान का भजन करना चाहिए। गृहस्थ और संत अपने-अपने उत्तरदायित्व निभाएं।
पशु के समान आचरण ना करें
भक्ति पर प्रकाश डालते हुए पूज्य गुरुदेव महाराज ने कहा कि नर शरीर पाकर भी यदि हमने भगवान का भजन नहीं किया तो यह शरीर किसी काम का नहीं है। हम अभागे हैं, हमारा मनुष्य होना बेकार है। क्योंकि कागभुशुण्डि जी ने कौवा का शरीर पाकर भी भगवान को प्राप्त कर लिया। इसलिए उन्हें अपना शरीर प्यारा था। जिस शरीर से भगवान की भक्ति हो वही शरीर पवित्र और सुंदर है। नर शरीर हमें जप, तप, दान, पुण्य और भजन के लिए मिला है। पशु के समान आचरण करने के लिए नर शरीर नहीं मिला है। हम सबको खूब सीताराम जी के भजन में मन लगाना चाहिए। मन न लगे तो जोर-जोर से कीर्तन करना चाहिए। धीरे-धीरे अभ्यास होने पर मन लगने लगता है।