मुख्यपृष्ठस्तंभसमाज के सिपाही : ताउम्र लोगों की सेवा करना चाहते हैं दिलशाद

समाज के सिपाही : ताउम्र लोगों की सेवा करना चाहते हैं दिलशाद

सगीर अंसारी
मेहनती इंसान किसी की चाटुकारिता नहीं करता क्योंकि उसे अपनी मेहनत और ईमानदारी पर पूरा भरोसा होता है। खैर, अपने बलबूते अपना मकाम बनानेवाले इकबाल खान घर की माली हालत को देखते हुए वर्ष १९७० में उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के गांव प्रतापपुर से मुंबई आए। मुंबई आने के बाद अब्दुल रहमान स्ट्रीट पर रहकर हाथ गाड़ी खींचने का काम करनेवाले इकबाल दो-तीन वर्ष बाद गोवंडी स्थित बैगनवाड़ी अपने एक रिश्तेदार के घर आ गए। पारिवारिक जीवन को किसी तरह पटरी पर लाने की कोशिश करनेवाले इकबाल खान अपने बड़े बेटे दिलशाद खान को सातवीं तक शिक्षा दिला पाने में कामयाब रहे। शिक्षा पर लगी लगाम ने दिलशाद खान को तोड़ दिया और पैसा कमाने के उद्देश्य से दिलशाद खान जरी का काम सीखने लगे। तीन वर्षों की लगातार मेहनत के बाद भी हालात को सुधरता न देख दिलशाद ने चप्पल के काम में अपनी किस्मत आजमाई, लेकिन जब उससे भी भला न हुआ तो गली-गली कपड़ा बेचने लगे। ४ साल की लगातार मेहनत के बाद आखिरकार दिलशाद खान ने कंप्यूटर एंब्रॉयडरी का काम सीखा और पिछले १५ सालों से वो इसी कारोबार में जुटे हैं। क्षेत्र के लोगों के हालात को करीब से देखनेवाले दिलशाद खान के दिल में समाज सेवा का जुनून था, जिसे उन्होंने अपने हालात सुधारने के बाद शुरू किया। शिवसेनापक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे से प्रभावित होकर उन्होंने वर्ष २०१५ में पार्टी ज्वॉइन की और शाखा क्रमांक १३६ के पूर्व शाखा प्रमुख कमाल खान के नेतृत्व में लोगों की समस्याओं से जुड़े कामों को लेकर अपनी जद्दोजहद शुरू की। इस दौरान उन्हें काफी तकलीफों का भी सामना करना पड़ा। कोरोना के दौरान जब लोग अपने व अपने परिवार का जीवन बचाने में लगे थे दिलशाद खान अपनी जान की परवाह किए बिना घर से बाहर निकलकर लोगों की सेवा कर रहे थे। लोगों की मदद करने के साथ ही उनको दवा और अनाज पहुंचाना इनका शगल बन गया था। पार्टी के उच्च पदाधिकारियों की मदद से क्षेत्र में रहनेवालों की परेशानियों को दूर करनेवाले दिलशाद खान सामाजिक कार्यों के साथ-साथ धार्मिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेनेवाले दिलशाद खान ताउम्र लोगों की सेवा में जुटे रहना चाहते हैं।

 

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