नवीन सी. चतुर्वेदी
धौंताएँ (सबेरें-सबेरें) घुटरूमल जी आये। आज विनके संग एक कन्या हु आयी। आँख’न में मौटौ- मौटौ काजर, लम्बे-लम्बे द्वै चुट्टा जिनमें लाल-लाल रिबन, गहरी गुलाबी लिपिस्टिक और सदा-हसन्ती यानि हँसती ही रहै। आते ही घुटरूमल जी नें परिचय दियौ गुरूजी यै हमारी नई भायली मतबल सहेली, बेगम-नस्तर। ये हु सायरा हैं।
एक मिनट कों हमें लग्यौ कि सायद बेगम-अख्तर की तर्ज पै नाम बेगम-नस्तर रखौ होयगौ। त’ऊ पूछ लीनी लाली आपके या नाम के पीछे की कहानी का है? बोली- हमारे पापा छत्तीसगढ़ के बस्तर में पैदा भये, राजमिस्त्री कौ काम, पलस्तर करिवे में मास्टर। अम्मा सिलाई करतीं, अस्तर लगायवे में मास्टरी, नाना की कनस्तर’न की दुकान और मामा सायर कनस्तरी। हमारौ जनम भयौ तौ मामा बोले बस्तर, पलस्तर, कनस्तर और अस्तर के संग नस्तर कौ काफिया एकदम फिट बैठैगौ सो याकौ नाम नस्तर रख देउ। जब नस्तर कौ रहस्य खुल गयौ तौ हमनें पूछी आप जिनकी बेगम हैं वे बादशाह-सलामत कौन सी रियासत के बादशाह हैं? अबकें घुटरूमल बोले नाँय-नाँय गुरूजी अबई तक इनकौ ब्या नाँय भयौ। कुआरी हैं। का है कि ये हमेसा हँसती रहें, इनें काऊ बात कौ गम नाँय नें सो जैसें बे-दम वैसें ही बे-गम, बस, बेगम-नस्तर साहिबा।
नाम बड़ौ ही इंटरेस्टिंग लग्यौ तौ हमनें कही लाली अपनों कोई सेर सुनाऔ। मटक कें बोलीं- बो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन। उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा। सुनकें हम चौंके। पूछ्यौ- लाली यै सेर आपकौ है? आपनें लिख्यौ है? बोलीं- हाँ बिरकुल, मैंनें ही लिख्यौ है। यै देखौ यै मेरी डायरी है, यै राइटिंग हु मेरी है और मैंनें अपनी खुद्द की कलम सों ही लिख्यौ है।
माजरौ समझ में आयौ तौ आगें पूछी लाली आपके उस्ताज कौन हैं? बोलीं- भौतेरे हैं। हमनें पूछी भौतेरे मतबल? बोलीं जा डायरी में जितनी गजल हैं लगभग बितने ही हमारे उस्ताज हैं। बे लिखबाते गये हम लिखत गये। हमारे अचरज कौ ठिकानों नाँय, फिर पूछी- एक उस्ताज नें बस एक ही गजल लिखवाई? बोलीं- बात छुपी थोरें ही रहै जैसें ही पहले कों दूसरे के बारे में पतौ चलै वौ पतरी गली सों निकस लेवै। इनमें सों भौतेरे तौ ऐसे हतें कि विनें उस्ताजी कौ रोग लग्यौ भयौ है। हमनें माँगी नाँय तौ हु न केवल गजल पकराय दीनी, बल्कि पढ़वाय और छपवाय हू दीनी। हमनें कही धन्य हैं आप और आपके ऐसे उस्ताज। हमारौ सन्ध्या-वन्दन कौ टैम है रयौ है चलौ बाकी बात फिर कभू करंगे। जय राम जी की।