अमिताभ श्रीवास्तव
यदि इसे क्रिकेट की साजिश रोकनेवाला हथियार कहें तो गलत नहीं होगा, खासकर टीम इंडिया के खिलाफ रची जानेवाली साजिशों के लिए। अकसर गलत अंपायरिंग का मामला देखा जाता रहा है फिर वो सचिन तेंदुलकर के सामने अंपायर बकनर का वक्त हो या थर्ड अंपायर के तौर पर ऑस्ट्रेलियाई अंपायर का केएल राहुल के खिलाफ निर्णय तक का समय। हर बार अंपायर संदेहास्पद पाए गए हैं, मगर चूंकि खेल में अंपायरों के पास विशेष अधिकार होते हैं इसलिए वे हमेशा बच निकलते हैं। किंतु बात उठने लगी है कि ऐसी साजिशें या मानवीय भूलों को दूर करने के लिए हॉट स्पॉट टेक्निक उपयोग क्यों नहीं की जाती, जो दूध का दूध पानी का पानी कर देती है। जी हां, हॉटस्पॉट तकनीक। ये तकनीक होती क्या है? दरअसल, इसमें दो थर्मल इमेजिंग (इंप्रâारेड) वैâमरे मैदान के दो विपरीत छोर पर लगाए जाते हैं, जो गर्मी के संकेतों को पकड़ लेते हैं। यानी गेंद बल्लेबाज के बल्ले, पैड या शरीर के किसी भी हिस्से को छूती है तो यह तय होता है कि घर्षण होता है। बस इस घर्षण के माध्यम से पकड़ लिया जाता है कि क्या हुआ। यह एक सैन्य टेक्निक है और ब्रॉड कास्टर्स के लिए बहुत महंगी है। इसकी लागत प्रतिदिन लगभग १०,००० डॉलर है। यानी कि लगभग ८ लाख ५०,००० रुपए प्रतिदिन। अब तक आईसीसी ने कभी भी अपने किसी भी टूर्नामेंट के लिए डीआरएस कॉल में उपयोग की जानेवाली तकनीकों में से एक के रूप में हॉटस्पॉट को शामिल नहीं किया है। द्विपक्षीय शृंखलाओं में इसका उपयोग करने का निर्णय पूरी तरह से व्यक्तिगत बोर्डों और प्रसारकों पर छोड़ दिया गया है। तकनीक महंगी होने की वजह से सभी बोर्ड इससे बचते हैं और स्निकोमीटर का ही उपयोग करते हैं। हालांकि, ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड एकमात्र बोर्ड था, जिसने घरेलू मैचों के दौरान बड़े पैमाने पर इस टेक्नोलॉजी का उपयोग किया था, लेकिन अब उन्होंने भी इसका उपयोग कम कर दिया है। बीसीसीआई ने भी लागत और अशुद्धि के कारण इसके उपयोग का विरोध किया है। यानी हॉट स्पॉट को अभी ठंडे बस्ते में ही डाल रखा है। अत्याधुनिक तकनीक है, खर्च भी बहुत है और इतनी मगजमारी करे कौन? शायद यही वजह है कि अब तक साजिश रोकनेवाले हथियार यानी हॉट स्पॉट को लागू नहीं किया गया है।
मुक्केबाज फ्राेच का सिरफिरा दावा
अपोलो मिशन, दुनिया का सबसे बड़ा झूठ!
यह तो सब जानते हैं कि नासा का अपोलो ११ मिशन क्या था? यह था चंद्रमा पर मानव द्वारा उतरना। नील आर्मस्ट्रांग का पैर रखना। दुनिया आज तक मानती आ रही है कि चंद्रमा पर सबसे पहले नील ही उतरा था, मगर एक पूर्व मुक्केबाज कार्ल प्रâोच ने इसे एक झूठ कहा है। उसने एक साक्षात्कार में आश्चर्यजनक रूप से दावा किया है कि चंद्रमा पर उतरने की बात एक धोखा थी।
उसने बताया कि यह एक साजिश थी। वैसे भी नासा के अपोलो ११ मिशन की वैधता पर लंबे समय से बहस चल रही है, जिसमें नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्ड्रिन १९६९ में चंद्रमा पर कदम रखनेवाले पहले व्यक्ति बने थे। अब पूर्व डब्ल्यू बी सी सुपर-मिडिलवेट चैंपियन प्रâोच भी संदेह करनेवालों में से एक बन गए हैं, उन्होंने एक्शन नेटवर्क से कहा, ‘दिलचस्प बात यह है कि हम चंद्रमा पर नहीं गए हैं और न ही हम वहां जा सकते हैं।’
क्या कभी नील आर्मस्ट्रांग को किसी ने पवित्र बाइबल पर अपना हाथ रखने के लिए कहा था? और नील आर्मस्ट्रांग एक बहुत ही धार्मिक व्यक्ति हैं। यदि उसे बाइबल पर हाथ रखने और पवित्र बाइबल की कसम खाने को कहा जाए कि वह चांद पर गया था और वहां पैर रखा था। तो वह ऐसा नहीं करेगा। मैंने उस आदमी से कहा कि मैं तुम्हें अपनी पसंद की किसी चैरिटी को ५,००० डॉलर नकद दूंगा, यदि तुम बाइबल पर अपना हाथ रखकर हमें बताओगे कि तुम चांद पर चले थे और उसने ऐसा नहीं किया।
मुक्केबाज ने दावा किया है कि नील धार्मिक है, बाइबल पर हाथ रखता है, ईश्वर की कसम खाता है और कहता है कि वह चांद पर गया है। जी हां, नील आर्मस्ट्रांग ऐसा नहीं करेंगे। प्रâोच का यह दृढ़ विश्वास कि यह ऐतिहासिक घटना एक धोखा थी, उनके इस विश्वास पर आधारित है कि चंद्रमा पर कोई अन्य मिशन नहीं भेजा गया है, जबकि पृथ्वी के एकमात्र उपग्रह पर इसके अलावा छह और यात्राएं की जा चुकी हैं। उन्होंने आगे कहा, ‘यह एक बात है, हालांकि इस तथ्य का उल्लेख नहीं करना चाहिए कि हम उसके बाद से वहां नहीं गए हैं। तो एक बार फिर चंद्रमा पर पैर रखनेवाली नासा की बात संदेह के घेरे में आ गई है। सवाल अभी भी खड़ा है कि क्या नील आर्मस्ट्रांग ही पहला व्यक्ति था, जिसने चांद को छुआ?
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार व टिप्पणीकार हैं।)