मुख्यपृष्ठस्तंभतड़का : चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं!

तड़का : चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं!

कविता श्रीवास्तव

महाराष्ट्र के चुनावी समर का पटाक्षेप हो गया है। राज्य की १५वीं विधानसभा के लिए बुधवार को हुए चुनाव के नतीजे शनिवार को घोषित हो गए हैं। सुबह जैसे ही सारे स्ट्रांग रूम खुले तभी से महायुति की तरफ रुझान बढ़ता गया। एग्जिट पोल पहले ही परिणाम बता चुके थे। अनेक एग्जिट पोल्स की रिपोर्ट आ चुकी थी। वे केवल अनुमान थे, पर मतगणना के बाद निकले असली आंकड़ों ने सारे गणितज्ञों और राजनेताओं को चौंका दिया। प्रत्येक ईवीएम मशीन पर जैसे-जैसे मतपेटियों के नतीजे आने शुरू हुए वैसे-वैसे कौतूहल बढ़ता रहा। खुद चुनाव जीतने वाले दलों के नेता भी अचंभित हैं। इसीलिए शिवसेना नेता संजय राऊत आश्चर्य व्यक्त करते हुए कह रहे हैं कि कुछ तो गड़बड़ है! अब वैâसा गड़बड़ और कहां-कहां है? उसका स्वरूप क्या है? यह बाद की चर्चा का विषय है। क्योंकि राजनीति में बयानों के अर्थ अलग-अलग ढंग से समझे जाते हैं। चुनावी पैâसला एकदम एकतरफा आता है तो शंकाएं भी व्यक्त की जाती हैं। क्योंकि कई बार आपत्तियों से कुछ परिणाम बदले भी हैं। यह चुनाव पार्टियों में बगावत, पैसों के इस्तेमाल, जांच एजेंसियों के डर आदि के आरोपों से भी घिरा रहा। आरक्षण के आंदोलन, किसानों के मुद्दे, युवाओं-बेरोजगारों की समस्याएं, महंगाई, कानून व्यवस्था की स्थिति, पड़ोसी राज्य में शिफ्ट होती योजनाओं व अन्य मुद्दों पर भी चर्चाएं उठीं। सबसे ज्यादा चर्चित रही योजनाओं के माध्यम से लोगों के खाते में पैसे डालने की नीति। यदि चुनाव का परिणाम ऐसी योजनाओं से बदला है तो यह कितना उचित है, यह विचारणीय होगा। एकतरफ ईमानदार टैक्सपेयर हैं जो इन योजनाओं के लाभ से वंचित हैं। वह ईमानदारी से टैक्स भरता है। कितनी विसंगति है कि वह महंगाई का शिकार भी है और वह योजनाओं का लाभ भी नहीं ले सकता है। दूसरी ओर लोगों को काम करके कमाने का अवसर देने की बजाय सीधे टैक्सपेयर के पैसे उन्हें बांटने का खेल देश के कई राज्यों में शुरू हुआ है। इससे तो मुफ्तखोरी को ही बढ़ावा दिया जा रहा है। यह कब तक चलेगा, यह टैक्स भरने वालों का सवाल है। इसकी भी कोई सीमा तय होनी चाहिए। महाराष्ट्र के नए चुनावी परिणाम ने छोटे-छोटे दलों, निर्दलीयों और अनेक बागियों की उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया है। अब उनकी कितनी पूछ होगी यह देखना दिलचस्प होगा। भाजपा, शिंदे गुट और अजीत गुट की महायुति सफल होकर सामने आई है। सबसे बड़ा कौतूहल है मुख्यमंत्री के नाम का। मतगणना से पहले कुछ नामों पर खास फोकस किया गया, पर अब महायुति के नेता सहमें-सहमें से हैं क्योंकि उनके सारे पैâसलों की कमान महाराष्ट्र में नहीं दिल्ली में है। खैर, यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है। पराजित दलों को अब आम जनता के मुद्दे लेकर फिर से संघर्ष करना होगा। आगामी सरकार के समक्ष चुनौतियां होंगी उन घोषणाओं और योजनाओं को पूरा कर दिखाने की जो चुनाव से पहले जनता को बताई गई थीं। नई सरकार आम जनता की उम्मीदों पर कितना खरा उतरेगी, इस पर सभी की निगाहें रहेंगी।

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