मुख्यपृष्ठस्तंभसटायर : बाईं के बजाय दायीं आंख का कर दिया ऑपरेशन

सटायर : बाईं के बजाय दायीं आंख का कर दिया ऑपरेशन

 डाॅ रवीन्द्र कुमार

आपने देखा होगा चौराहों, बाज़ार और बस स्टेंड पर टेम्पो रिक्शा और टर्री वाले कैसे पुकार-पुकार के सवारी बुलाते हैं और पकड़-पकड़ के लगभग जबरन ही आपको अपने टेम्पो / रिक्शा और टर्री में बैठा लेते हैं। चालक आपकी हर बात में हामी भर देता है। चाहे वह उस रूट पर जा भी न रहा हो, आपको हां कर देता है और फिर आपको निकटतम ठिकाने पर उतार देता है, ये कहते हुए कि सामने ही है। तब आपको ज्ञात होता है कि आपकी मंज़िल अभी दूर है और आपको एक और रिक्शा लगेगा।

कुछ इसी तर्ज़ पर अब शहर-शहर इतने नर्सिंग होम इतने क्लीनिक खुल गए हैं कि वे पकड़-पकड़ के पेशेंट को दाखिल कर रहे हैं। तरह-तरह की स्कीम ला कर भावी पेशेंट्स को लुभा रहे हैं। दो चीजों के विज्ञापन कभी देखने को नहीं मिले थे, अब वो भी इन आंखों ने देख लिए। एक स्कूल/यूनिवर्सिटी के और दूसरे अस्पतालों और डॉ के। अब दोनों के फुल-फुल पेज के एड धड़ल्ले से दिखते हैं। बस इनका ‘बाई वन-गेट वन फ्री’ स्कीम लाना शेष है। वो भी आती ही होगी, ऐसी ‘लिटरली’ गला काट प्रतियोगिता चल रही है। बीमारी कम हैं, डॉक्टर ज्यादा हो गए हैं और डॉ भी ऐसे-ऐसे जो आप सिर दर्द को भी जाएँ तो आपका सिर खोल कर ऑपरेशन को तत्पर बैठे हैं। आप कहें हाथ-पांव में दर्द है तो वो आपको इतना डरा देंगे कि आप दाखिल हो जाने को सहर्ष तैयार हो जाते हैं ताकि आपका अल्ट्रा साउंड, ब्लड टेस्ट, ईको टेस्ट, यूरिन टेस्ट, एक्स-रे और हो सके तो एम.आर.आई. भी करा कर देख लिया जाए कि आखिर प्रॉब्लम है कहां?

ऐसे ही एक केस में जब एक सात साल के बच्चे की आंखें लाल हुईं और दर्द होने लगा तो वो दौड़े-दौड़े इस क्लीनिक में जा पहुंचे। डॉक्टर साब की बांछें खिल गईं। आ गया ग्राहक ! बोले तो आ गया मुर्गा। उन्होंने बच्चे के अभिभावकों को पूरी तरह डरा दिया कि बच्चे की आंख में प्लास्टिक का टुकड़ा चला गया है और उसे ऑपरेशन द्वारा ही निकाला जा सकता है। फीस होगी पैंतालीस हज़ार रुपए। ग़रीब माता-पिता ने कैसे-कैसे पैसों का इंतज़ाम किया और दाखिल करा दिया। डॉ. साब हिन्दी फिल्मों के डॉक्टर की तरह ऑपरेशन थियेटर से निकले और बोले “बधाई हो! ऑपरेशन सक्सेसफुल रहा। बच्चे को अभी होश आ जाएगा आप ले जा सकते हैं”। अब असली खेल शुरू हुआ। जब पेरेंट्स ने देखा कि दर्द तो बाई आँख में था, प्लास्टिक का टुकड़ा तो बाईं आँख में था ये पट्टी दाहिनी आँख में क्यूँ लगी है। बच्चे को होश आया तो उसे एलर्जी होने लगी। पूरे बदन पर लाल-लाल चकत्ते उभर आए। परेशान माता-पिता भागे-भागे दूसरे अस्पताल में लेकर गए। जहां पता चला ऑपरेशन तो बाईं आंख का भी नहीं हुआ। बस ऐसे ही पट्टी बांध दी है। अब उनका सब्र जवाब दे गया। उन्होंने अस्पताल में जाकर हंगामा कर दिया। टॉप बॉस से मिले उनका जवाब था कि नर्सिंग स्टाफ की लापरवाही की वजह से पट्टी गलत आंख पर लगा दी गई है। दरअसल ऑपरेशन कोई हुआ ही नहीं था। प्लास्टिक का तथाकथित टुकड़ा जो आंख से चिपका हुआ था हटा दिया गया था। बस यही ऑपरेशन था। तो लो जी एलर्जी अलग से ले आए। बच्चे की तबीयत तभी से ठीक नहीं है। जब ऑपरेशन नहीं था तो उसे बेहोश किया ही क्यों गया ?

तो ये कंपीटिटिव संसार है। इस सांसारिक यात्रा में आप बच कर रहें। सवारी अपने ‘जिस्म-ओ-जान’ की हिफाजत खुद करे। यहाँ तो सौदागर आपके खून, गुर्दे, फेफड़े, लीवर आँख सबके पीछे पड़े हैं। अब वे रुमाल गले में बांधे पॉकेट नहीं मारा करते बल्कि मास्क लगाए, सफ़ेद कोट पहन अँग्रेजी बोल के लूटते हैं। ऐसी न जाने कितनी कहानियाँ आपके आसपास बिखरी हुई हैं। यह शहर-शहर की कहानी है। अब टारगेट पूरा करना है, नौकरी बचानी है तो ये सब औटपाए तो डॉ को करने ही पड़ेंगे। वक़्त आ गया है कि वो जो हिपोक्रेटिक शपथ है उसमें संशोधन कर लिया जाये। “…जो आयेगा मैं उसे और उसकी जेब को बिना किसी भेदभाव, करुणा, द्वेष और राग के काट दूंगा…ईश्वर इसमें मेरी मदद करे”

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