विवेक अग्रवाल
हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।
‘भाई, आपको मालूम है क्या… दाऊद जहाज तोड़ रेला ए…’
‘क्या?’…मैं बुरी तरह चौंका। सामने बैठे मुखबिर ने एक बम सा मार दिया। मैंने उस पर दसियों सवाल दाग दिए-
‘दाऊद जहाज क्यों तोड़ रहा है? क्या कोई खतरनाक आतंकी गतिविधि चल रही है? उसका मन मुंबई में बम बरसा कर नहीं भरा जो जहाज तोड़ रहा है?’
‘अरे नहीं भाई… तुम भी क्या बात का जलेबी तलते हो… वैसा कोई लफड़ा नहीं है, जैसा तुम समझ रेले… गुजरात में अपना अलंग है ना… उदर उसका लोक जहाज तोड़ के भंगार में बेचने का… मोटा माल बना रेले हैं भाई लोक… तुम कुछ करो ना…’
‘मैं क्या करूं… उनके साथ बिजनेस डील?’
‘अरे नई भाय… फिर तुम बात का जलेबी बनाया… अरे इसकूं छापे में डालो अपने…’
‘हां… ये काम तो करेंगे ही…’
सैन्य खुफिया सूत्रों से सूचना मिली कि भारत में दाऊद का कारोबार मजे से जारी है। खुफिया अधिकारियों के मुताबिक, दाऊद के कारोबारों में गुजरात के अलंग बंदरगाह में ‘शिप ब्रेकिंग’ भी है। अमदाबाद में इस सिलसिले पर सुरक्षा अधिकारियों की उच्चस्तरीय बैठक हुई। इसमें डी-कंपनी के ‘शिप ब्रेकिंग’ कारोबार में उतरने पर संभावित खतरों को लेकर चर्चा हुई।
बैठक में नौसेना, तटरक्षक दल, सेना, बीएसएफ, डीआरआई, कस्टम्स, स्थानीय पुलिस और केंद्रीय व राज्य खुफिया एजेंसियों के अधिकारी थे। मीडिया को बताया कि ये सामान्य बैठक थी। २६-११ के मुंबई आतंकी हमलों के बाद होने वाली नियमित बैठक थी। इस बैठक में अलंग का मुद्दा छाया रहा। बैठक में उस रपट का जिक्र हुआ, जिसमें कहा गया था कि डी-कंपनी के पाक मूल के कुछ सदस्य, लंदन और खाड़ी देशों में शिप ब्रेकिंग कंपनियां चला रहे हैं। उन्होंने अलंग शिप ब्रेकिंग कारोबार में काफी निवेश किया है।
अधिकारियों के मुताबिक, खराब या हादसे में टूटे जहाज तोड़ने के लिए डी-कंपनी के सदस्य खरीदते हैं। वे नकद में यह कारोबार कर रहे हैं। इसके पीछे उनकी दो मंशा हैं। पहली ये कि इन जहाजों के जरिए बड़ी मात्रा में नशे की खेप बिना किसी की नजर में आए भारत या अन्य किसी देश तक पहुंचा सकते हैं। दूसरी ये कि डी-कंपनी का हथियार व गोला-बारूद खरीदने-बेचने का कारोबार खासा बढ़ चुका है। हथियारों-विस्फोटकों की बड़ी खेप ले जाने के लिए भी ऐसे कबाड़ जहाज मुफीद हैं। अमूमन इनकी जांच नहीं होती है। कबाड़ जहाज नशा या हथियारों की खेप पहुंचाने के लिए सुरक्षित तरीके माने जाते हैं।
दिल्ली में केंद्रीय मंत्रियों और सचिवों की फरवरी २०१२ में हुई बैठक में भी अलंग शिप ब्रेकिंग कारोबार में डी-कंपनी के दखल का मुद्दा उठा। इससे पैदा सुरक्षा व खतरों की बात भी आई। इस मामले में कस्टम्स व गुजरात मैरीटाइम बोर्ड को पूरी तरह अक्षम बताने वाली एक रपट भी ‘स्टैंडिंग कमेटी ऑन शिप ब्रेकिंग यार्ड्स एट अलंग’ ने पेश की। रपट के मुताबिक, अलंग में आए कबाड़ जहाजों के सरकार को जमा दस्तावेज सही है या नहीं, उनकी जांच करने की व्यवस्था दोनों एजेंसियों के पास नहीं है।
पूरी बात कहने के बाद मुखबिर बोला, ‘अब समझ में आया तुमेरे कूं… इतना बड़ा भाय जहाज कायकूं तोड़ रेला ए?’ उसने बात कुछ इस तरह खत्म की-
‘जिस खेल में पईसा, भाय का काम भी वेईसा।’
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)